तीसरा खंबा

पिता स्वअर्जित संपत्ति को कैसे भी बाँट सकता है, लेकिन पुश्तैनी संपत्ति को नहीं

अनिता सोनी पूछती हैं —
पिता जीवित हैं, उन के पाँच पुत्र हैं। एक पुत्र की पिता से नहीं बनती है इसलिए वह अलग रहता है। पिता ने कुछ धनराशि का बँटवारा किया लेकिन चार हिस्सों में। जो पुत्र अलग रहता था उसे कोई राशि नहीं दी। क्या यह उचित बात है? क्या इस तरह पिता कानूनी तौर पर अपनी पूरी संपत्ति का बँटवारा चार हिस्सों में अपनी मर्जी से कर सकता है? 
उत्तर —
अनिता जी, 
प का प्रश्न हिन्दू परिवार में बँटवारे के संबंध में है। किसी भी व्यक्ति की स्वयं की आय से अर्जित संपत्ति चाहे वह चल संपत्ति हो या फिर अचल संपत्ति वह उस की निजि संपत्ति है। इस संपत्ति को वह व्यक्ति जैसे चाहे वैसे खर्च कर सकता है या उसे अपने जीवनकाल में अन्य व्यक्तियों को दे सकता है या उस की वसीयत भी कर सकता है। इस पर किसी का भी कोई अधिकार नहीं है। इस संपत्ति के मामले में कोई भी व्यक्ति कोई आपत्ति नहीं कर सकता और न ही कानूनी रूप से कोई दावा आदि कर सकता है। 
दि कोई पुश्तैनी संपत्ति किसी परिवार के पास है तो कोई भी कर्ता उसे केवल संपूर्ण परिवार के हित में ही व्यय कर सकता है, ऐसी सम्पति में संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है। यदि पिता के जीवनकाल में ऐसी संपत्ति का बँटवारा भी होता है तो परिवार के प्रत्येक सदस्य को उस का निर्धारित हिस्सा प्राप्त होगा। कोई भी कर्ता उस का बँटवारा मनमाने तरीके से नहीं कर सकता।
प के मामले में बाँटी गई संपत्ति रुपया है, यदि वह किसी संयुक्त परिवार की संपत्ति का भाग है या उस की आय से प्राप्त हुआ है तो एक पुत्र को उस का हिस्सा नहीं देना उचित नहीं है। लेकिन यदि यह धनराशि पिता की स्वअर्जित संपत्ति है तो वह चाहे जैसे उसे खर्च कर सकता है या औरों को दे सकता है इस पर किसी को आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है।
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