तीसरा खंबा

पुत्र के देहांत के उपरांत पुत्र-वधु व दोहित्री के साथ कोई विधिक संबंध शेष नहीं

 पंकज ने पूछा है –
मेरे एक अंकल हैं उनकी उम्र 59 वर्ष है और वे आर्म्स फैक्ट्री में अच्छे पद पर हैं। उनके तीन पुत्र हैं उनके सबसे बडे पुत्र की उन्होंने करीब 5 वर्ष पूर्व अहमदाबाद में की थी। शादी तक उनका पुत्र पूर्ण रूप से स्वस्थ था। शादी के करीब दो वर्ष बाद अचानक पता चला की उनकी दोनों किडनी फेल हो गई हैं। बहुत इलाज कराने पर भी ठीक नही हुआ और दिनांक 09.03.2011 को उनका देहान्त हो गया । इस बीच उनका इलाज सास ससुर एवं माता पिता के घर अहमदाबाद और भोपाल में चलता रहा। लडके को कोई व्यसन भी नहीं था। अचानक आई मुश्किल से परिवार जैसे टूट ही गया। पुत्र मृत्यु के तीन दिन बाद ही उनकी पुत्र वधु अपनी 3 वर्षीय पुत्री को लेकर अपने मायके चली गई और तैरहवीं के दिन भी नहीं आई।  पुत्र वधु मायके जाते समय अपना पूरा सामान करीब 5 पेटियों सारे जेवर, कपडे़ सब कुछ अपने फूफा जी के साथ लेकर गई और जाते-जाते पूरे सामान की लिस्ट भी थमा गई कि यह-यह सामान अपने साथ लेकर जा रही हूँ और आज के बाद कभी दुवारा यहाँ नहीं आउंगी। इस से उन्हें अपने पुत्र विछोह के दुःख के साथ-साथ अपनी नातिन के विछोह का भी दुःख सताने लगा, सामाजिक प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुँची।

अंकल ने अपनी पुत्रवधु को पुत्री के समान माना था। पुत्र की अचानक आकस्मिक  मृत्यु से वह बहुत विचलित हैं, वे तो यहॉ तक कह रहे थे कि मै अपनी पुत्रवधु की कहीं दूसरी अच्छी जगह शादी कर दूंगा,  वह भी अकेली कब तक जीवन बितायेगी। नातिन को अच्छी शिक्षा दिलाउंगा। अतः आपसे सलाह चाहिये कि अंकल क्या कर सकते हैं। इस मामले में क्या उनको उनकी नातिन मिल सकती है? पुत्रवधु को वापस लाने का क्या कोई रास्ता है। कृपया मार्गदर्शन कीजिए।
 उत्तर –
पंकज जी,
में आप के अंकल के विधिक अधिकारों के सन्दर्भ में विचार करना चाहिए। आप के अंकल के पुत्र का विवाह के पाँच वर्ष उपरांत देहान्त हो गया। पुत्र वधु का उन से और उन के परिवार से जो भी संबंध था वह पुत्र के कारण ही था। यह सम्बन्ध भी सामाजिक था। उस संबन्ध से कोई भी विधिक अधिकार न तो आप के अंकल को उत्पन्न हुआ था और न ही उन की पुत्र वधु को। पति के देहान्त के उपरांत पुत्र वधु का उस के स्त्री-धन पर अधिकार था। वह अपने समस्त स्त्री-धन को ले कर चली गई, जाते जाते उस की रसीद भी दे गई और लिखित में यह भी घोषणा कर गई कि वह अब यहाँ वापस नहीं लौटेगी। पुत्र वधु का भी वैवाहिक संबंध पति के देहान्त के साथ ही समाप्त हो गया। वह अब स्वतंत्र है और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार कहीं भी रह सकती है और अपने भविष्य के जीवन का मार्ग तय कर सकती है, जिस का उसे अधिकार है। इस मामले में आप के अंकल या उस के पिता कोई भी उसे सलाह तो दे सकते हैं लेकिन उसे बाध्य नहीं कर सकते। 
क अवयस्क के लिए उस के माता-पिता प्राकृतिक संरक्षक होते हैं। उन के अतिरिक्त कोई भी अन्य व्यक्ति प्राकृतिक संरक्षक नहीं हो सकता। उस के पालन-पोषण का दायित्व भी माता-पिता का ही है। पिता के देहान्त के उपरांत आप के अंकल की दोहित्री की एक मात्र संरक्षक उस की माता ही