समस्या-
जब घर में पत्नी या बेटी या किसी अन्य महिला के साथ हिंसा का व्यवहार होता है तो वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है। लेकिन यदि कोई महिला या लड़की अपने परिजनों के विरुद्ध हिंसा का व्यवहार करे तो क्या कोई कानून नहीं है क्या? यदि है तो कृपया जानकारी प्रदान करें।
-दीपक कुमार, पानीपत, हरियाणा
समाधान-
लेकिन इस बात को तो आप भी स्वीकार करेंगे कि लगभग सारी दुनिया में मानव समाज पुरुष प्रधान है और स्त्री चाहे घर में रहे या कामकाजी हो उसे घर में पुरुषों की हिंसा का सामना करना पड़ता है। इस कारण से संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में स्त्री के प्रति घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। भारत में भी ऐसा कानून बनाया गया है। लेकिन उस कानून में की गई किसी कार्यवाही में किसी को दंडित नहीं किया जा सकता है लेकिन हिंसा को रोकने के लिए और हिंसा की शिकार महिला को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए आदेश पारित किए जा सकते हैं। यदि इन आदेशों की अवहेलना की जाए तो फिर वह अवहेलना अपराध होगी। इस कानून का यह अर्थ कदापि नहीं है कि कोई स्त्री यदि हिंसा करती है तो उस के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
इस के अतिरिक्त भारत में दहेज प्रथा और उस के या अन्य कारणों से महिलाओं को अपनी ससुराल में क्रूरता का शिकार होना पड़ता है। इस के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा 498-अ जोड़ी गयी है जो एक संज्ञेय अपराध है। ऐसी परिस्थिति पुरुषों के साथ नहीं है इस कारण से यह धारा केवल स्त्रियों के प्रति की गई क्रूरता के लिए है, न कि पुरुषों के प्रति क्रूरता के लिए। यदि कभी यह आदर्श स्थिति भारतीय समाज में उत्पन्न हो जाए कि स्त्रियों को इस तरह की क्रूरता और हिंसा का शिकार न होना पड़े और यह अपवाद स्वरूप रह जाए तो संभव है कि भारत की संसद इन कानूनों और उपबंधों की आवश्यकता न समझे और समाप्त कर दे। लेकिन यह संभावना अभी दूर दूर तक दिखाई नहीं देती।