तीसरा खंबा

पुलिस अभिरक्षा और न्यायिक अभिरक्षा में अंतर

लखीमपुर खीरी से मनोज यादव  ने पूछा है-

पुलिस अभिरक्षा (Police Custody) और न्यायिक अभिरक्षा (Judicial Custody)  में क्या अंतर है?

उत्तर-

ब भी पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो गिरफ्तार किए जाने के समय से जब तक उसे किसी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर दिया जाता। गिरफ्तार व्यक्ति पुलिस अभिरक्षा में ही होता है क्यों कि किसी भी न्यायालय को तब तक इस गिरफ्तारी की जानकारी नहीं होती। भारत में पुलिस केलिए यह आवश्यक है कि जब भी वह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करे तो सक्षम क्षेत्राधिकार के मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष गिरफ्तारी से 24 घंटों की अवधि में प्रस्तुत करे। यदि सक्षम क्षेत्राधिकार के मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना संभव न हो तो गिरफ्तार व्यक्ति को किसी अन्य  मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है।

दि पुलिस ने यह गिरफ्तारी किसी अन्वेषण के चलते की होती है तो पूछताछ और वस्तुओं की बरामदगी के लिए उसे उस व्यक्ति को अधिक समय तक पुलिस हिरासत में रखने की आवश्यकता होती है। ऐसी अवस्था में पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने के समय गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तार करने का कारण बताती है और यह निवेदन करती है कि उसे कुछ दिन (निश्चित अवधि) के लिए पुलिस अभिरक्षा में रखने की अनुमति दे। मजिस्ट्रेट किसी भी स्थिति में 15 दिन से अधिक की अवधि के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा में रखे जाने की अनुमति प्रदान नहीं कर सकती है।  आम तौर पर अन्वेषण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए यह अवधि केवल एक-दो दिनों की होती है। बाद में और आवश्यकता होने पर पुलिस अपनी अभिरक्षा को बढ़ाने के लिए पुनः निवेदन कर सकती है।

क बार जब मजिस्ट्रेट पुलिस अभिरक्षा को आगे बढ़ाने से इन्कार कर देता है तो तुरंत ही न्यायिक अभिरक्षा आरंभ हो जाती है। मजिस्ट्रेट यह निर्धारित कर देता है कि अभियुक्त को अगले कुछ दिनों के लिए न्यायिक अभिरक्षा में भेजा जाए। न्यायिक अभिरक्षा में अभियुक्त को जेल भेज दिया जाता है। न्यायिक अभिरक्षा की यह अवधि भी अन्वेषण के दौरान एक बार में 15 दिनों से अधिक की नहीं होती। लेकिन यह न्यायिक अभिरक्षा तब तक जारी रहती है जब तक कि अभियुक्त को जमानत पर अथवा अन्यथा रिहा नहीं कर दिया जाता है। जब अभियुक्त न्यायिक अभिरक्षा में हो तो अन्वेषण अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि वह 10 वर्ष या उस से अधिक दंड से दंडित किए जा सकने वाले मामलों में अन्वेषण 90 दिनों में तथा अन्य मामलो में 60 दिनों में पूरा करे। यदि इस अवधि में अन्वेषण पूर्ण नहीं होता है तो अभियुक्त के जमानत देने के लिए तैयार होने पर मजिस्ट्रेट उसे जमानत पर रिहा कर देता है। इस के पूर्व अभियुक्त की पुलिस अभिरक्षा समाप्त हो जाने और उस के न्यायिक अभिरक्षा में आ जाने पर अभियुक्त स्वयं भी जमानत की अर्जी प्रस्तुत कर सकता है और किसी भी न्यायालय से जमानत पर छोड़े जाने का आदेश होने पर जमानत दे कर रिहा हो सकता है। जमानत पर रिहा होते ही न्यायिक अभिरक्षा समाप्त होजाती है।

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