समस्या-
सीहोर, मध्यप्रदेश से देवेन्द्र चौहान से पूछा है-
मैं ने हनमत से 2009 में पंजीकृत विक्रय पत्र से जमीन खरीदी तथा विक्रेता से जमीन का कब्जा भी ले लिया, नामान्तरण भी हो गया। चूंकि भूमि सडक के किनारे थी तो कई लोगों का हित था। वे सभी लोग जमीन बेचने के लिए दबाब बनाने के लिए किसी न किसी प्रकार का विवाद रोज करने लगेा। वे सभी लोग गांव के सम्पन्न तथा राजनीतिक दखल वाले व्यक्ति हैं। फसल मेरे द्वारा बोई गर्इ। काटते समय विवाद किया। मैं थाने गया, धारा 145 का प्रकरण बनाया। पुलिस तथा पटवारी की मिली भगत से कब्जा उनका लिख गया और फसल प्रतिवादी को देने का फैसला किया। एसडीएम द्वारा मुझे ही सलाह दी गई कि धारा 250 भू राजस्व अधिनियम के तहत कब्जा लो। तहसीलदार ने मौके पर कब्जा दिलाया। मैं ने आदेश 39 नियम 1, 2 सिविल प्रक्रिया संहिता का दीवानी वाद दायर किया कि मेरे आधिपत्य में हस्ताक्षेप न करे। पुलिस तथा प्रशासन किसी प्रकार की मदद नहीं करता। मामला अदालत में है। थाने में कोई सुनवाई नहीं करते हैं। राजस्व का मामला है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
फिर भी नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई को नहीं छोड़ना चाहिए। आप ने अब तक जो कानूनी कार्यवाही की है वह बिलकुल सही की है। इसी रास्ते से आप को राहत मिल सकती है। आप ने जो मुकदमा आदेश 39 नियम 1, 2 सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत किया है उस में निषेधाज्ञा जारी करानी चाहिए। इस के बाद पुलिस के लिए आप के कब्जे में दखल करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकना कठिन होगा। इस के अतिरिक्त आप को स्थानीय जन संगठन जो कि मानवाधिकारों और नागरिकों के सिविल अधिकारों के लिए काम करते हैं उन का भी साथ प्राप्त करना चाहिए। जब आप के साथ कोई संगठन खड़ा होगा तो आप के विरुद्ध खड़े लोग भी आसानी से आप के कब्जे में हस्तक्षेप करने से डरेंगे। इस के अतिरिक्त आप अपने विरुद्ध होने वाली प्रत्येक घटना को मीडिया तक अवश्य पहुँचाएँ। मीडिया ने यदि आप के मामले में सचाई को सब के सामने रखना आरंभ किया तो भी आप का पक्ष मजबूत होगा। पुलिस प्रशासन केवल समर्थों की मदद करती है। आप जैसे लोगों के अपने मजबूत जनतांत्रिक संगठन हों तो पुलिस और सामान्य प्रशासन को कानून की पालना करने पर मजबूर होना होगा।