तीसरा खंबा

प्रणव दा! सिंह साहब! और सोनिया जी! न्याय के लिए कुछ नहीं, मतलब अन्याय जारी रहेंगे ?

तीसरा खंबा में 26 जनवरी, 2009 की पोस्ट थी, न्याय रोटी से पहले की जरूरत है, ….
जीवन के लिए जितना हवा और पानी आवश्यक है उतना ही न्यायपूर्ण जीवन और समाज भी।  यदि परिवार में खाने को पूरा न हो तो भी परिवार आधे पेट भी प्रेम से जीवन बिता सकता है।  बस लोगों को विश्वास होना चाहिए कि जितनी रोटियाँ हैं, उन का बंटवारा न्यायपूर्ण हो रहा है।   यदि यह विश्वास टूट गया तो परिवार बिखऱ जाएगा।   परिवार के बिखरने का अंजाम सब जानते हैं।  गट्ठर को कोई नहीं तोड़ सकता लेकिन एक एक लकड़ी को हर कोई तोड़ सकता है।  इस लिए न्यायपूर्ण व्यवस्था परिवार के एकजुट रहने की पहली शर्त है। इसीलिए न्याय रोटी से पहले की जरूरत है।  कम रोटी से काम चलाया जा सकता है, लेकिन न्याय के बिना नहीं।   लेकिन हमारी न्याय प्रणाली अपंग है।   वह हमारी जरूरत का चौथाई भी पूरा नहीं करती।  एक न्यायार्थी को उस के जीवन में न्याय मिलना असंभव होता जा रहा है।  यदि इस स्थिति से युद्ध स्तर पर नहीं निपटा गया तो।  समझ लीजिए कि परिवार खतरे में है।  गणतंत्र खतरे में है।
र्तमान में देश में लगभग16000 अदालतें हैं उन में भी 2000 से अधिक अदालतों में  जज नहीं हैं।  स्वयं संसद  में सरकार  द्वारा निर्धारित  क्षमता  के अनुसार प्रत्येक दस लाख जनसंख्या पर पचास अधीनस्थ न्यायालय  होने चाहिए। भारत की  वर्तमान आबादी लगभग एक  अरब बीस करोड़ के लगभग है, इस आबादी की न्याय की जरूरतों को पूरा करने को अदालतों की  संख्या 60 हजार होनी चाहिए। यही हमारी वास्तविक आवश्यकता है।  अधीनस्थ न्यायालयों की स्थापना का  काम राज्य सरकारों का है। लेकिन किसी  भी राज्य सरकार में इस बात पर चिंता और हलचल तक नहीं दिखाई पड़ती  है कि उन के यहाँ न्याय और न्यायालयों की क्या स्थिति है और  वे घोषित लक्ष्य की  प्राप्ति  के लिए क्या कदम  उठाने जा रहे हैं।
भारत का 2011-12 का संघीय बजट संसद में प्रस्तुत किया जा चुका है। देश और समाज में न्याय की स्थापना के लिए सरकार और संसद कितनी चिंतित है इस का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हों ने इस के लिए क्या प्रावधान अपने बजट में किए हैं। विभिन्न संघीय मंत्रालयों और विभागों का कुल खर्च  इस वर्ष 1216575.73 करोड़ रुपए था। जो आगामी वर्ष के लिए 1257728.83 करोड़ रुपयों का रखा गया है। इस तरह इन मंत्रालयों और विभागों के कुल खर्च में चालीस हजार करोड़ की वृद्धि की गई है। लेकिन वस्तुओं के महंगा हो जाने से  यह वृद्धि न केवल बराबर हो जाती है अपितु बजट में बढ़ाई गई इस राशि में पहले जितनी वस्तुएँ और सेवाएँ नहीं खरीदी जा सकेंगी। 
न्याय के लिए इस वर्ष के लिए 944 करोड़ का प्रावधान किया गया था, अब अगले वर्ष के लिए 1432 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस तरह करीब 488 करोड़ रुपयों की वृद्धि की गई है। इस वर्ष योजना खर्च में रुपए 280 करोड़ रुपए रखे गए थे जिन्हें अगले वर्ष के लिए बढ़ा कर 1000 करोड़ कर दिया गया है। इस में से अधिकांश धनराशि कंप्यूटराइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और ग्रामीण न्यायालय स्थापित करने के लिए राज्यों की सहायता के लिए रखी गई है। लेकिन गै