समस्या-
मैं वाराणसी, उत्तर प्रदेश में एक निजि कंपनी में काम करता था। उसी कंपनी में वाराणसी की एक लड़की भी काम करती थी। उस ने 17 जनवरी 2010 को देहरी ऑन सोन, बिहार में आ कर पुलिस में रिपोर्ट कराई कि मैंने उस के साथ विवाह किया और क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। पुलिस ने धारा 498-क भा.दं.संहिता के अंतर्गत आरोप पत्र दाखिल कर दिया मामला न्यायालय में लंबित है। फिर 20.01.2010 को पुलिस थाना वाराणसी में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी वहाँ भी मामला अदालत में चल रहा है। जब मैं वाराणसी जेल में था तो वह लड़की मुझ से मिलने आती थी यह पुलिस ने भी लिखा है। उस के बाद भी पुलिस ने वाराणसी में धारा 376 भा.दं.संहिता में आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इस समय लड़की के बयान हो रहे हैं जिस में उस ने कहा है कि बिहार में पुलिस ने अपने मन से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली, उस ने तो धारा 376 भा.दं.संहिता की शिकायत की थी। इस मामले में मुझे क्या करना चाहिए? और अदालत का क्या निर्णय आएगा?
-साधु सिंह, देहरी ऑन सोन, बिहार
समाधान-
कोई भी प्रथम सूचना रिपोर्ट अत्यन्त महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है। वह पुलिस स्वयं तैयार नहीं करती। या तो उसे स्वयं परिवादी अपनी ओर से लिख कर हस्ताक्षर कर के देता है अथवा पुलिस परिवादी के कथनानुसार स्वयं लिखती है और परिवादी के हस्ताक्षर करवाती है। इस तरह एक परिवादी का स्वयं ही अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट से पलटना एक गंभीर बात है। इस का लाभ आप को अवश्य मिलेगा।
न्यायालय का निर्णय हमेशा उस के पास आई साक्ष्य और कानून पर आधारित होता है। गलत निर्णय होने पर उस की अपील की जा सकती है। आप का निर्णय भी न्यायालय में आई साक्ष्य पर आधारित होगा। आप को सभी गवाहों से जिरह करने का अवसर प्राप्त होगा जिस में सिद्ध किया जा सकता है कि लड़की मिथ्या बोल रही है। न्यायालय के निर्णय के बारे में कोई भी राय तभी बनाई जा सकती है जब कि मुकदमे में समूची साक्ष्य रिकार्ड की जा चुकी हो और उस साक्ष्य का अध्ययन किया जाए। बिना समूची साक्ष्य का अध्ययन किए कोई निश्चयात्मक राय दिया जाना संभव नहीं है।