तीसरा खंबा

प्रेस, मीडिया और राजनेता इतनी जल्दी में क्यों हैं?

लगता है मीडिया और प्रेस बहुत जल्दी में है।  उस से भी अधिक जल्दी में हैं हमारे राजनेता और संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख।  वे जानकारी करने की जहमत नहीं उठाते।  उन के पास तथ्य एकत्र करने की फुरसत नहीं है। तथ्य आ जाएँ तो फिर उन्हें समझने और गुनने की फुरसत नहीं है। ऐसा लगता है जैसे सड़क से सवारी उठाने के लिए बसों या टैक्सियों की दौड़ चल रही है। ट्रेफिक के नियम जाएँ भाड़ में। किसी ने पकड़ लिया तो माफी मांग लेंगे या कुछ ले-दे कर निपट लेंगे। चालान हुआ तो क्या? भर देंगे। इस के लिए क्या सवारी छोड़ देंगे? 

27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भास्कर लाल शर्मा बनाम मोनिका के मुकदमें में निर्णय दिया कि मोनिका ने जो एफआईआर अपने ससुर और सास के विरुद्ध धारा 498-ए और धारा 406 भारतीय दंड संहिता में दर्ज कराई है उस में जो सास ससुर द्वारा जो कुछ करना लिखाया गया है उस से कोई और अपराध का आरोप बन सकता है लेकिन धारा 498-ए भा.दं.सं. में कोई अपराध नहीं बनता है, हाँ, धारा 406 भा.दं.संहिता का अपराध अवश्य बनता है।
इस निर्णय को पढ़ कर प्रेस और मीडिया ने खबर बनाई कि सास द्वारा पुत्र-वधू को लात मारने और यह ताना देने से कि तुम्हारी माँ बहुत झूठी है, धारा 498-ए का मुकदमा नहीं बनता। यह खबर अदालत ब्लॉग पर भी थी। मैं ने वहाँ खबर पढ़ कर टिप्पणी की थी “इस खबर के मूल निर्णय को तीन दिनों से खोज रहा हूँ मिल ही नहीं रहा है।” 
इस टिप्पणी को करने का एक ही कारण था, कि मैं उस मूल निर्णय को पढ़े बिना अपनी कोई भी राय उस मामले में अभिव्यक्त नहीं करना चाहता था। लेकिन शायद मीडिया और प्रेस को बहुत जल्दी थी। उन्हों ने उस निर्णय में से कुछ तथ्यों को जोड़ा जिन से कुछ मसालेदार खबर बनाई जा सकती थी। उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं थी कि वे निर्णय के सार को नहीं बल्कि उस के विपरीत कुछ कहने जा रहे हैं। उन्हें तो ताल में पत्थर फैंकना था। उन्हों ने फैंक दिया और फिर देखने लगे कैसी लहरें उठती हैं? 
लहरें जल्दी ही राजनेताओं तक पहुँच गईं। बयान देने में देरी करने के लिए प्रसिद्ध दल सीपीआई(एम) के महासचिव प्रकाश करात ने तुरंत बयान दे डाला कि यह निर्णय एक गंभीर बात है,  और इसे बदलने के लिए पुनरावलोकन याचिका प्रस्तुत की जानी चाहिए। ये वे ही राजनेता हैं जो अपने बयानों को न छापने और उन्हें तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने का आरोप लगाते रहते हैं। यह वही दल है जिस का महामंत्री पोलिट  ब्यूरो में राय किए बिना एक शब्द भी नहीं बोलता। महासचिव ने उस निर्णय को पढ़ने की जहमत तक नहीं की समझने की बात तो दूर थी, केवल मीडिया और प्रेस को सही मानते हुए अपना बयान थर्रा दिया। 
 
 फिर हमारा राष्ट्रीय महिला आयोग कैसे चुप रहता।  उस ने आनन फानन में विधि मंत्रालय को खड़का दिया। विधि मंत्री श्रीमान वीरप्पा मोईली ने उन से क्या कहा यह तो पता नहीं पर राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि उन्हें यह आश्वासन मिला है कि सरकार उस निर्णय के पुनरावलोकन करने के लिए कदम उठाएगी।
असल में मामला क्या है?  पुत्रवधू मोनिका और उस के पति के बीच इस प्रथम सूचना रिपोर्ट के दर्ज होने क