जयपुर से नरेन्द्र गलछानिया ने पूछा है-
हम तीन भाई हैं, ब्रजेन्द्र गलछानिया, महेन्द्र तथा नरेन्द्र। मेरी माता जी का देहावसान 1996 में हो चुका है, उन के नाम का एक भूखंड है। बड़ा भाई ब्रजेन्द्र भूखंड के खरीदे जाने के पहले से ही अलग अपने भूखंड में निवास करता है। दूसरा भाई भी 1987 में अलग भूखंड में मकान बना कर रहने लग गया था। विवाद नहीं हो इस से हम ने 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर एक समझौता किया जो नोटेरी से सत्यापित है। महेन्द्र ने चार वर्ष के बाद न्यायालय में विभाजन का वाद प्रस्तुत कर दिया। उक्त समझौते को न्यायालय ने पंजीकृत नहीं होने के कारण नहीं माना। ब्रजेन्द्र गलछानिया ने केस होने पर मुझे कहा था इस में हमारा समझौता ही मान्य होगा। मुझे अपने भाई की बात पर पूरा भरोसा था। अब वह कहता है कि मुझे पूरी जानकारी नहीं है तथा मकान में तीन बराबर के हिस्से चाहता है। जब कि समझौते के अनुसार मुझे एक कमरा ज्यादा मिला था। समझौते के अनुसार मैं ने मकान का निर्माण भी करा लिया, जो कि अब टूटेगा। जिससे मुझे बहुत नुकसान होगा। दूसरे नंबर का भाई एक भी गवाह या सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका केस में भी समझौते के बारे में नहीं लिखा, अभी तक मेरे से कोई गवाही नहीं मांगी गई। 2001 से अब तक केस चल रहा है। मेरा शपथ पत्र प्रस्तुत किया जा चुका है। 30 नवम्बर को जिरह होगी। मुझे क्या करना चाहिए। बताएँ?
उत्तर –
नरेन्द्र जी,
आप की माता जी के देहान्त होने के उपरान्त यदि उन्हों ने कोई वसीयत नहीं की थी तो उन का मकान उन के सभी उत्तराधिकारियों, जिन में आप के पिता (यदि जीवित थे तो) और आप के सभी भाई बहिनों का समान हिस्सा था। इस मकान का आपसी सहमति से बँटवारा हो सकता था, लेकिन बँटवारे के विलेख का पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत होना आवश्यक है, अपंजीकृत बँटवारा विलेख को साक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। हाँ, यह हो सकता था कि सभी हिस्सेदार बैठ कर उक्त संपत्ति का बँटवारा कर लेते और बँटवारे के अनुसार संपत्ति पर कब्जे का हस्तांतरण हो जाता। फिर उस बँटवारे का कोई स्मरण पत्र लिखा जाता तो उसे साक्ष्य में स्वीकार किया ज