नेमीचन्द सोनी ने बीकानेर, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरी दो बहनों की शादी नागौर शहर राजस्थान में 2006 में की थी। मेरे जीजाजी तब से मारपीट करने लग गये। हम लोगों ने समाज के लोगों से सामाजिक मीटिंग करवा के जीजाजी को समझाया। फिर 5 साल में बड़ी बहन के 3 बच्चे ओर छोटी के 2 बच्चे हैं। मेरे जीजाजी दोनों सगे भाई है अभी दो साल पहले बड़े जीजा ने बहुत ज्यादा मारपीट शुरू कर दी। एक बार तेजाब से जलाना चाहा तो मेरी बहन की सास ने बचा लिया। बाद में हमें पता चला तो हम लोग जाकर मेरी बहनों को लेकर आ गये। आज दो साल हो गये मेरे जीजा आज तक लेने नहीं आये हैं। और लोगों को बोलते हैं कि मेरी पत्नी को जरूरत होगी तो वो अपने आप आयेगी और मैं तो मारपीट ऐसे ही करूंगा। हम लोगों को धमकी देता है। मैं घर में अकेला कमाने वाला हूँ। 18 सदस्यों का खर्चा मेरे को चलाना पड़ता है। आप कानूनी राय दो कि हमें क्या करना चाहिए?
समाधान–
आप की समस्या यह है कि आप के परिवार ने आप की बहनों को इस लायक नहीं बनाया कि वे अपने पैरों पर खड़ी हों। अब वह जमाना आ गया है कि केवल उन्हीं लड़कियों और स्त्रियों का जीवन सुरक्षित कहा जा सकता है जो स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हों, आत्मनिर्भर हों। शेष स्त्रियाँ जो माता पिता या पति पर आश्रित हैं उन का जीवन उन के आश्रयदाता की इच्छा पर निर्भर करता है। आप की बहनों के साथ यही हुआ है। यदि आप की बहनें स्वयं भी आत्मनिर्भर होतीं और अपना और बच्चों का पालन पोषण करने में समर्थ होतीं तो आप को बिलकुल परेशानी नहीं होती। अब आप तो अपने जीजाजी की सोच और उन के व्यवहार को बदल नहीं सकते। यदि जीजाजी बदल नहीं सकते और बहनों को उन्हीं पर निर्भर रहना है तो उन्हें वह सब भुगतना पड़ेगा। पहले भी आप की बहनों ने बहुत कुछ भुगता होगा। वे आप को अपने साथ हुए अत्याचारों के बारे में बताती भी नहीं होंगी, यही सोच कर कि वे यदि अपने मायके चली गयीं तो अकेला भाई कैसे इतने बड़े परिवार का पालन पोषण करेगा? वह तो आप लोग ही अपनी बहनों को अपने साथ ले आए। यदि न लाते तो शायद वे कभी आप को शिकायत तक न करतीं। खैर¡
अपनी पत्नी के साथ मारपीट करना और तेजाब डाल कर जला देना हद दर्जे की क्रूरता है और धारा 498ए आईपीसी का अपराध है। हमारी राय में इस तरह की क्रूरता के बाद भी इन विवाहों में बने रहने का कोई कारण नहीं शेष नहीं बचता। ऊपर से यह गर्वोक्ति कि यदि पत्नी को जरूरत होगी तो वह खुद चली आएगी। यह एक दास-स्वामी की सोच है। विवाह हो गया तो पत्नी दासी हो गयी। आज के युग में कौन स्त्री इस दर्जे की दासता को स्वीकार करेगी और अपने ऊपर अमानवीय अत्याचारों को सहन करेगी।
हमारी राय में आप को यह आशा त्याग देनी चाहिए कि आप के जीजा आप की बहनों को लेने आएंगे। वे आ भी जाएँ और आप की बहनों को ले भी जाएँ तो क्या वे उन के साथ उचित व्यवहार करेंगे? हमारे विचार से इस दर्जे की क्रूरता के बाद बहनों के पास पर्याप्त कारण है कि वे अपने पतियों के साथ रहने से इन्कार कर दें और उन से अपने लिए और अपने बच्चों के लिए प्रतिमाह निर्वाह भत्ते की मांग करें। विवाह से आज तक जो भी उपहार आप की बहनों को आप के परिवार से, ससुराल के परिवार से और अन्य परिजनों से प्राप्त हुए हैं वे उन का स्त्री-धन हैं। इस स्त्री-धन में से जो भी उन के पतियों और ससुराल वालों के पास है उसे भी लौटाने की मांग आप की बहनों को उन के पतियों और ससुराल वालों से करना चाहिए। यदि वे स्त्री-धन नहीं लौटाते हैं तो आप की बहनों को पुलिस थाना में धारा 498-ए और धारा 406 आईपीसी की शिकायत दर्ज करानी चाहिए। यदि पुलिस कार्यवाही करने में टालमटोल करती है या इन्कार करती है तो मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर उसे धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस के पास अन्वेषण के लिए भिजवाना चाहिए।
आप की बहनें घरेलू हिंसा अधिनियम तथा धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत अपने व अपने बच्चों के लिए भरण पोषण की मांग कर सकती हैं। उन्हें ये दोनों आवेदन प्रस्तुत करने चाहिए। यदि आप की बहनें हमेशा के लिए इस विवाह को समाप्त कर देने को तैयार हों तो हमारी राय में उन्हें विवाह विच्छेद का आवेदन भी प्रस्तुत करना चाहिए। विवाह विच्छेद के आवेदन की सुनवाई के दौरान परिवार न्यायालय अनिवार्य रूप से पति पत्नी के बीच समझौता कराने का प्रयत्न करते हैं। यदि उस समय तक विवाह विच्छेद के लिए या साथ रहने के बारे में कोई सहमति बने तो न्यायालय में भी समझौता हो सकता है।
विवाह विच्छेद के आवेदन के साथ ही धारा 25 हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत स्थाई भरण पोषण के लिए भी आवेदन देना चाहिए जिस से आप की बहनों को एक बड़ी राशि एक मुश्त मिल सके।
आप के उपनाम से पता लगता है कि आप लोग पेशे से सुनार हैं। सुनार परिवारों में तो बहुत सी महिलाएँ इस तरह के काम करती हैं जिस से वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। इस समस्या का एक मात्र उपाय यही है कि महिलाएँ अपने पैरों पर खड़ी हों। यदि विवाह विच्छेद होता है तो उस के साथ स्थाई भरण पोषण की जो राशि उन्हें मिले उन से वे अपने लिए कोई व्यवसाय खड़ा कर के अपने और अपने बच्चों की सामाजिक सुरक्षा कर सकती हैं। बच्चों का पालन पोषण कर सकती हैं और एक सम्मानपूर्ण जीवन जी सकती हैं।
इन सब कामों को करने के लिए आप की बहनों को किसी स्थानीय वकील से सहायता प्राप्त करनी चाहिए। यदि मुकदमे के लिए खर्चों की परेशानी हो तो अदालत के खर्च और वकील की फीस के लिए आप की बहनें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। प्राधिकरण मुकदमों के खर्चों और वकील की फीस की व्यवस्था कर देगा।