समस्या-
जयपुर, राजस्थान से हेमन्त यादव ने पूछा है –
मैं लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर एक लड़की के साथ करीब ३ साल रहा। फिर हमने आर्य समाज में 2009२००९ में अन्तरजातीय विवाह कर लिया। मेरे परिवार वालों ने इस शादी को स्वीकार लिया, पर पत्नी के घर वाले इस शादी को स्वीकार नहीं कर पाए। हमारे कोई संतान नहीं है। अगस्त 2011 में पत्नी अपने मायके गई, उसके बाद वापस नहीं आई। उसने तलाक का नोटिस भेजा। मैं ने धारा 9 मे जयपुर मे केस किया, पत्नी के लगातार नहीं आने के कारण। 26 फरवरी 2013 को एक तरफ़ा कार्यवाही करते हुए धारा 9 की डिक्री मेरे हक़ में कर दी। पत्नी ने तलाक धारा 13 में जो केस अजमेर में लगा रखा है उस में मैं ने धारा 9 की डिक्री पेश कर दी। तब पत्नी ने जयपुर में धारा 9 की डिक्री को अपास्त करने तथा पुनः सुनवाई करने के लिए अर्जी लगा दी है। अब मुझे क्या करना चाहिए? क्या मैं पत्नी के पापा के विरुद्ध कोई केस कर सकता हूँ? धारा 13. में दिनांक 12.03.2013 को निर्णय होना था, लेकिन पत्नी ने तलाक के आवेदन में संशोधन की अर्जी लगाई है और निर्णय को अटका दिया है। अब मैं क्या कर सकता हूँ?
समाधान-
आप को अब भी आप की पत्नी से व्यक्तिशः बात करनी चाहिए। यदि वह वास्तव में तलाक लेना चाहती है, आप के साथ नहीं रहना चाहती और उस पर कोई दबाव नहीं है, तो आप को तलाक ले लेना चाहिए। इस से बेहतर पति धर्म और क्या हो सकता है? यदि आप की पत्नी किसी तरह की अनिच्छा से आप के साथ आ कर रहने भी लगती है तो भी आप का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं रह सकेगा। क्यों कि उस में आप के ससुराल वालों का दखल हो चुका है। अनेक बार ऐसा होता है कि इन परिस्थितियों में पत्नी वापस आ कर पति के साथ रहने लगती है लेकिन बहुत सी शर्तें लाद दी जाती हैं जो कभी पूरी नहीं की जा सकतीं। वह वापस चली जाती है बाद में जिस तरह का अविराम युद्ध चलता है उस में सब कुछ बरबाद हो जाता है। यह अच्छी बात है कि आप की पत्नी आप से सिर्फ तलाक चाहती है।
आप के ससुर का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्हों ने आप की पत्नी को बहकाया। लेकिन इस का कोई प्रमाण नहीं हो सकता। यह सिर्फ आप का कथन है। आप से तलाक आप की पत्नी चाहती है। उस का समर्थन उस के पिता कर रहे हैं। इसे कोई दोष नहीं कहा जा सकता। यदि आप अपने ससुर पर कोई मुकदमा करेंगे तो वह पूरी तरह से मिथ्या होगा। यह मुकदमा करने के बाद फिर जवाब में जो मुकदमे आप के विरुद्ध होंगे उन का कोई हल आप नहीं कर सकेंगे।
आप की पत्नी ने धारा-9 की डिक्री को अपास्त कराने को जो अर्जी दी है वह उस का अधिकार है और उस ने समय से उस के लिए अर्जी लगा दी है। संभावना यह है कि वह अपास्त हो जाएगी और पत्नी को सुनवाई का अवसर मिल जाने पर दुबारा पारित होना असंभव लगता है। वैसे आप की पत्नी उस प्रकरण को उस अदालत में भी स्थानान्तरित करवा सकती है जिस में अभी तलाक का मुकदमा चल रहा है। आज आप की पत्नी आप से तलाक चाहती है। मेरी राय है कि आप विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करवा कर स्वतंत्र हों और आगे का जीवन अपने हिसाब से जीने की इच्छा पैदा करें। वरना समय निकलता जाएगा और उस के साथ ही आप के जीवन का बहुमूल्य समय नष्ट होता चला जाएगा।