तीसरा खंबा

भूमि/ संपत्ति विवादों में पहले जानें की वह पुश्तैनी है या नहीं।

rp_land-demarcation.jpgसमस्या-

संजीव कुमार ने समस्तीपुर, बिहार से समस्या भेजी है कि-

मेरे पास 20 कट्ठा पुश्तैनी भुमि है, जो मेरे स्व0 दादाजी (मृत्यु वर्ष 1975) की स्वअर्जित संपत्ति है। मेरे स्व. पिताजी (मृत्यु वर्ष 2003) एंव मेरी बुआ अपने ससुराल में अभी जीवित है। मेरे पिताजी का एक पुत्र मैं स्वंय एंव चार विवाहित पुत्रियॉँ हैं। साथ ही मेरी एक विधवा मॉं भी है जो सरकारी पेंशनधारी महिला है। जब 16 अक्टूबर, 2015 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘‘प्रकाश वर्सेस फुलावती‘‘ एंव अन्य मामलों के संज्ञान में यह निर्णय सुनाया गया कि जिन के पिता की मृत्यु 9 सितंबर, 2005 से पहले हो गई है उनकी बेटियों को पिता की पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा नहीं मिलेगा।‘‘ सर्वोच्च न्यायालय के उक्त फैसले के बाद मेरे दादाजी की पुश्तैनी भुमि में मेरा, मेरी चार विवाहित बहनों, मेरी बुआ एंव मेरी विधवा माँ की क्या हिस्सेदारी होगी, जबकि मेरे पिताजी की मृत्यु वर्ष 2003 में ही हो गई थी?

 

समाधान-

प की यह भूमि पुश्तैनी नहीं है। 17 जून 1956 के पूर्व किसी हिन्दू पुरुष को अपने तीन पीढ़ी पूर्व तक के पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति ही पुश्तैनी है। 17 जून 1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया और उस समय तक जो स्वअर्जित संपत्तियाँ थीं उन का उत्तराधिकार इस अधिनियम की धारा 8 के अनुसार होने लगा। इस अधिनियम से उत्तराधिकार मिलने पर कोई संपत्ति पुश्तैनी नहीं होती। हिस्से पर जिस का स्वामित्व स्थापित होता है वह उस की निजी संपत्ति होती है। उस में पुत्र पौत्र आदि का कोई अधिकार नहीं है। उस का उत्तराधिकार उस हिस्सेदार की मृत्यु पर खुलता है।

प की भूमि दादा जी की स्वअर्जित थी। उन का देहान्त 1975 में हुआ। इस तरह आप के पिता व बुआ दोनों 50-50 प्रतिशत भूमि के हिस्सेदार हुए। आप के पिता जी का देहान्त 2003 में हुआ। इस समय 20 प्रतिशत अर्थात 10 कट्ठा जमीन पर उन का स्वामित्व था। इस समय माँ व चार बहनों सहित आपके पिता के आप छह उत्तराधिकारी थे इस कारण आप का इस जमीन पर 1/6 हिस्सा हुआ। आप का अधिकार सिर्फ 10/6 कट्ठा जमीन पर है।

प्रकाश बनाम फूलवती के मामले का निर्णय उन संपत्तियों के संबंध में है जो 1956 के पूर्व ही पुश्तैनी संपत्ति थीं। वह आप के मामले में प्रभावी नहीं होगा।

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