तीसरा खंबा

मजदूर समस्याएँ अब पूरी तरह राजनैतिक हो चुकी हैं, मजदूर वर्ग खुद को राजनैतिक ताकत के रूप में उभार कर ही उन्हें हल कर सकता है।

rp_industrial-dispute.jpgसमस्या-

लोकेश ने बाल्को नगर, कोरबा, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-

मैं यूनियन का सचिव हूँ। 1 जुलाई को हमारे लेबर को बिना नोटिस के निकाल दिया गया है। फिर सभी विरोध में हड़ताल कर रहे हैं। आज 10 दिन हो गये लेकिन हल न निकला। मामले को देखते ठेकेदार 10 महिलाओं और 20 पुरुषों को दूसरी जगह कम देने को तैयार हो गया। लेकिन फिर भी लेबर ने वहाँ जाने से इनकार कर दिया है। अब मामला सहायक श्रम आयुक्त के पास है। 7-जुलाई को पहली बैठक हुई। पर प्रबंधन का कोई प्रतिनिधि वार्ता में नहीं आया तो सहायक श्रम आयुक्त ने 9-7-15 का टाइम दिया। तब भी प्रंबंधन से कोई नहीं आया। फिर से हल्ला करने आयुक्त ने 10-7-15 का टाइम दिया.हम क्या करे.ठेकेदार चटनी करने क प्रयास मे ह. जुलाई का समया दिया है। ठेकेदार छंटनी करने के प्रयास में है।

समाधान

ह पूरे देश के मजदूरों की समस्या है। सारे उद्योग अधिक से अधिक ठेकेदार के माध्यम से श्रमिकों को नियोजित करते हैं और जम कर उन से श्रम करवाते हैं। यदि वे यह जबरिया श्रम नहीं करते हैं तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। नौकरी से निकालने में श्रम कानूनों की भी अनदेखी की जाती है। क्यों कि वे ठेकेदार का ठेका समाप्त कर देते हैं। ठेकेदार का ठेका समाप्त होते ही वह उदयोग बंद होने की श्रेणी में आ जाता है जिस के लिए पहले से कोई नोटिस और मुआवजा आदि देने की कोई बाध्यता नहीं है। चाहे तो श्रमिक लड़ कर ले ले। श्रमिक इस मसले पर हड़ताल करते हैं तो उन्हें अनुपस्थित दिखा कर उन का नियोजन समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस कारण ऐसे वक्त में हड़ताल से कोई लाभ नहीं होता। उलटा नुकसान हो जाता है।

श्रमिकों की यह लड़ाई अब नियोजकों और श्रम विभाग के स्तर की नहीं रही है। अब यह वर्गीय लड़ाई हो कर राजनैतिक हो गयी है। अब जब पूर्ण रूप से निजिकरण हो रहा है तो श्रम कानून कड़े होने चाहिए उस के स्थान पर सरकारें उन्हें कमजोर कर रही हैं। सरकार कहती है कि कानून के समक्ष सब बराबर हैं, अरबपति पूंजीपति और न्यूनतम मजदूरी पाने वाला श्रमिक उन के लिए एक समान हैं। सीधा अर्थ यह है कि कानून सिर्फ पूंजीपतियों के लिए है। सरकार श्रमिकों के लिए अदालतें इतनी सी खोलती हैं कि मुकदमे का निर्णय होने में ही 10-20 बरस लग जाएँ। तब न्याय हो भी जाए तो श्रमिक के लिए कोई न्याय नहीं है।

ब जरूरत है कि कानून ऐसे हों कि कोई नाजायज रूप से किसी मजदूर को नौकरी से न निकाल सके। निकाले तो पर्याप्त मुआवजा पहले दे। यदि कोई विवाद हो तो एक साल में अदालत से फैसला हो। इस के लिए मजदूर वर्ग को राजनैतिक लड़ाई लड़नी होगी। जब तक मजदूर पक्षीय सरकारें देश में नहीं होंगी मजदूर को ऐसे ही शोषण और अन्याय का शिकार होते रहना होगा। फिलहाल तो यही रास्ता है कि श्रमिक यदि नए स्थान पर नौकरी करना चाहें तो इस नौकरी को जारी रख सकते हैं अन्यथा वे कोई दूसरा काम तलाशें और इस अवैधानिक छंटनी के विरुद्ध मुकदमा लड़ते रहें। फैसला जब होगा तब होगा। अवैध छंटनी के मामले में समझौता अधिकारी के यहाँ शिकायत प्रस्तुत करने के 45 दिन हो जाने के बाद समझौता अधिकारी से अवैध छंटनी की शिकायत प्रस्तुत करने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर श्रम न्यायालय में सीधे धारा 2 ए (2) औद्योगिक विवाद अधिनियम के अन्तर्गत मुकदमा पेश किया जा सकता है।

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