तीसरा खंबा

मध्यस्थों के माध्यम से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना अथवा सहमति से तलाक के लिए प्रयत्न करें

समस्या-

मेरा विवाह मई 2003 में हुआ था। पत्नी मार्च 2004 में मेरे परिवार वालों पर गलत आरोप लगा कर और मेरे परिवार को बदनाम कर के चली गई तथा मार्च 2004 से उस के मायके में रह रही है।  हम कई बार उसे लेने भी गए पर वह वापिस नहीं आई। अभी जनवरी 2012 में हमारे समाज के कुछ लोग बीच में पड़े और मेरी पत्ती को मेरे घर छोड़ गए।  वह रात भर रही और दूसरे दिन सुबह वापस अपने मायके चली गई। जाते समय बोलती गई कि यदि तुम अपने माता-पिता से अलग रहो तो ही मैं आप के साथ रहूंगी। मैं अपने माता-पिता से अलग नहीं रहना चाहता हूँ। क्या मैं तलाक के लिए अर्जी दे सकता हूँ।

-शैलेष श्रीमाली, अहमदाबाद, गुजरात

समाधान-

प की पत्नी मार्च 2004 से जनवरी 2012 तक स्वैच्छा से आप से अलग रही। आप के कई बार लेने जाने पर भी वह नहीं आई। उस ने किसी तरह की कोई कार्यवाही न्यायालय में भी संस्थित नहीं की। इस का सीधा अर्थ यह है कि वह आप के साथ नहीं रहना चाहती है। यदि वह आप को अपने माता-पिता से अलग कर के आप के साथ रहना चाहती है तो उस के पीछे कोई ठोस कारण होना चाहिए। इस तरह यदि आप की पत्नी के पास इस के लिए कोई ठोस कारण नहीं है तो इस का अर्थ यह है कि उस ने आप को पिछले आठ वर्ष से वैवाहिक संबंधों से दूर रखा है। यह एक आधार है जिस के आधार पर आप उस के विरुद्ध तलाक का मुकदमा दाखिल कर सकते थे। लेकिन आप ने भी उस के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। आप उस के विरुद्ध दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए भी कार्यवाही संस्थित कर सकते थे वह भी आपने नहीं की है।

ब जनवरी में आप की पत्नी एक रात आप के घर में रही है। उस रात आप के संबंध उस के साथ कैसे रहे हैं यह स्पष्ट नहीं है। यदि उस रात आप के साथ उस का कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है तो आप उस के विरुद्ध धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक का मुकदमा इस आधार पर कर सकते हैं कि उस ने विगत आठ वर्षों से आप के साथ दाम्पत्य जीवन का त्याग कर रखा है। आप चाहें तो तलाक का मुकदमा न कर के हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा- 9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं। यदि उस मुकदमे में उस का जवाब नकारात्मक रहता है तो उसी मुकदमे को आप विवाह विच्छेद के मुकदमे में परिवर्तित करवा सकते हैं।

दि आप तलाक के लिए अथवा दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए अपनी पत्नी के विरुद्ध मुकदमा करते हैं तो आप की पत्नी धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत मुकदमे का खर्चा, आने जाने का खर्चा और मुकदमे के दौरान भरण पोषण के खर्चे की मांग कर सकती है, न्यायालय इस आवेदन को सहज ही स्वीकार कर लेगा और आप को न्यायालय के आदेश के अनुसार धन आप की पत्नी को देना होगा। इस के अतिरिक्त आप की पत्नी आप के विरुद्ध धारा 125 दं.प्र. संहिता के अंतर्गत भी भरण पोषण का आवेदन प्रस्तुत कर सकती है जो स्वीकार किया जा सकता है और वह भऱण पोषण राशि भी आप को देनी होगी। इन में से जो भी भरण पोषण आदेश बाद में होगा उस में न्यायालय पिछले आदेश को तब ध्यान में रखेगी जब आप उसे इसे ध्यान में रखने का निवेदन करेंगे। आप की पत्नी आप के विरुद्ध धारा 498-ए व धारा 406  भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत फर्जी या वास्तविक अपराधिक मामला भी चला सकती है। जिस में साक्ष्य प्राप्त होने पर आप को पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किया जा सकता है।

प को इन सभी बातों को ध्यान में रख कर कोई विधिक कार्यवाही करनी होगी।  इस के लिए आप को अपने नजदीक के अच्छे वकील से राय करनी चाहिए। मेरी राय यह है कि आप दोनों के बीच यदि दाम्पत्य की कोई संभावना नहीं है और आप की पत्नी आप के साथ रहने की इच्छुक नहीं है तो आप के समाज के जो लोग आप की पत्नी को आप के घर छोड़ कर गए थे उन की मध्यस्थता का लाभ उठा कर बातचीत करनी चाहिए और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के अंतर्गत दोनों पक्षों की सहमति से विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। यह आवेदन का निर्णय एक वर्ष से कम की अवधि में हो सकता है।

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