बहू ने कारस्तानी की। दुकान का माल निकाल लिया कर छुपा लिया और खाली डब्बों में आग लगा दी। बड़ी बहू को यह कारस्तानी पता लग गई। धीरे धीरे सास को भी पता लगी। तो सास को ऐसी बहू पर बड़ा गुस्सा आया। उस ने बहू को थप्पड़ मार कर घर से निकाल दिया। बहू मायके पहुँच गयी। तब याद आया कि उस ने किया क्या है? मायके में वह सुख कहाँ जो ससुराल में था। बस सास जरूर कड़क थी। वह जुगत भिड़ाने लगी कि कैसे मायके वापस जाए।
यह कहानी थी स्टार प्लस जैसे प्रतिष्ठित मनोरंजन चैनल पर आने वाले धारावाहिक ‘दिया और बाती हम’ की। इस पर धारावाहिक आरंभ होने के पहले एक डिसक्लेमर दिखाया जाता है। जिस में अंकित है कि “इस कार्यक्रम के सभी चरित्र, चरित्रों के नाम, स्थान, घटनाएँ पूरी तरह काल्पनिक हैं…..” । अब इन दो एपिसोडों के बाद तो इस डिस्क्लेमर के साथ यह भी जोड़ दिया जाना चाहिए कि इस का देश के कानून से कोई लेना देना है। इस में दिखाई गई कानूनी प्रस्थापनाएँ भी पूरी तरह काल्पनिक हैं।
कोई भी प्रथम सूचना रिपोर्ट केवल फोन पर दर्ज नहीं की जाती। केवल फोन कॉल का विवरण रोजनामचे में दर्ज किया जाता है। फिर उस फोन कॉल की जाँच की जाती है यह पाए जाने पर कि कोई संज्ञेय अपराध घटित हुआ है प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की जाती है। उस के बाद अन्वेषण किया जाता है। यदि यह पाया जाता है कि अपराध किसी व्यक्ति द्वारा घटित किए जाने के मजबूत सबूत हैं तभी उसे गिरफ्तार किए जाने की कार्यवाही की जाती है। यहाँ सीरियल में पहले डोमेस्टिक वायलेंस का उल्लेख किया गया। जब कि डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के अंतर्गत कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। बहू के साथ क्रूरता का व्यवहार करने पर धारा 498-ए के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जा सकती है और सबूत मिलने पर अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन उस के लिए पुलिस को कोई वारंट प्राप्त करने की कोई जरूरत नहीं है। वह बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। लेकिन धारा 498-ए के मामलों में सभी पुलिस थानों को स्पष्ट निर्देश हैं कि इस तरह का कोई मामला पाए जाने पर पहले दोनों पक्षों को बुला कर समझौता कराने का प्रयत्न किया जाए। कोई समझौता नहीं हो सकने की दशा में ही किसी की गिरफ्तारी की जाए। लगभग सभी पुलिस थाने इस निर्देश का झूठमूट ही सही पर पालन करते हैं।
इस धारावाहिक में जो कुछ दिखाया गया है वह कानून से बहुत हट कर है। इस तरह इस धारावाहिक ने कानून के बारे में बहुत सी मिथ्या धारणाएँ जनता के मन में स्थापित करने का काम किया है। जो पूरी तरह गलत है। इस तरह के धारावाहिक निर्माता और प्रदर्शक के विरुद्ध तुरंत कानूनी कार्यवाही कर उन्हे भारी अर्थदंड से दंडित किया जाना चाहिए। किसी भी स्थिति में देश के कानून के बारे में साहित्यिक, नाटकीय और फिल्मी रचनाओं अथवा किसी भी माध्यम से मिथ्या धारणाएँ फैलाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। इस से आम लोगों के मन में कानून के प्रति भय की सृष्टि होती है जिसे रोका जाना निहायत आवश्यक है।
स्टार प्लस जैसे प्रतिष्ठित चैनल को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह इस तरह के लोकप्रिय धारावाहिक में इस तरह कानूनी घटनाओं और प्रस्थापना को गलत रीति से प्रस्तुत नहीं करें। यह चैनल की कानूनी जिम्मेदारी के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी है। चैनल को इस गलती के लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगनी चाहिए और वायदा करना चाहिए कि वह आगे से कानूनी घटनाओं को गलत रीति से प्रस्तुत नहीं होने देगा। इस काम को बड़ी आसानी से किया जा सकता है। जब किसी धारावाहिक का ऐसी घटना से संबंद्ध एपीसोड की पटकथा तैयार हो जाए तो उसे किसी कानूनी विशेषज्ञ को दिखा कर कानूनी राय प्राप्त की जाए। उस के बाद ही उस एपीसोड का निर्माण किया जाए।