कल्याण सिंह रावत ने भीम, राजसमँद, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
प्रेमिका को हिन्दू रीति से खून से माँग-भर कर पत्नी मानकर पिछले 15 वर्ष से लिव-इन-रिलेशन में रहा। महिला जो तलाकशुदा मुस्लिम होकर 3 बच्चों की माँ है उसे उस के सगे भाई ने घर में बँधक बना कर रखा हुआ है। पिता का साया तो 34 साल पहले ही उठ गया है अब मैं अपनी इस पत्नी-प्रेमिका को कैसे उसके भाई की कैद से मुक्त करा सकता हूँ। उस का भाई मुझे मारने का दो बार असफल प्रयास कर चुका है और मेरी पत्नी-प्रेमिका को किसी और व्यक्ति को सौंप देना चाहता है। क्योंकि वह महिला केवल मेरे पास साथ रहना चाहती है पर भाई बीच में दीवार बन कर खडा है। क्या मैं 97 के वारँट द्वारा उस की कस्टडी ले सकता हूँ यदि महिला कोर्ट में अपनी सहमति से मेरे साथ रहना चाहती है। यदि उसे वहाँ से आजाद नही कराया गया तो कहीं वह अपनी जीवन लीला ही समाप्त न कर दे। सबूत के तौर पर उस के लिखे खत मैंने सँभाल कर रखे हैं जिस में उसने अपनी चाहत प्यार का इजहार किया गया है और हमारे साथ बिताये लम्होँ की खूबसूरत फोटो भी है ।
समाधान-
धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता में यदि जिला मजिस्ट्रेट, उप खंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो जाए कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है जिन में वह परिरोध अपराध की कोटि में आता है तो वह तलाशी वारंट जारी कर सकता है। और यदि ऐसा व्यक्ति मिल जाए तो उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। मजिस्ट्रेट मामले की परिस्थितियों के अनुरूप उचित आदेश पारित कर सकता है। आप के मामले के तथ्यों से ऐसा लगता है कि आप धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता का उपयोग कर सकते हैं।
आप की प्रेमिका परिरुद्ध ही नहीं है अपितु बंदी प्रतीत होती है। ऐसी स्थिति में आप उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी प्रस्तुत कर सकते हैं और वहाँ से उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश जारी करवा सकते हैं। वह धारा 97 से अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है। बाद में जैसा वह महिला चाहेगी वैसा आदेश दिया जा सकता है।