समस्या-
विजयेन्द्र मेघवाल, पाली, राजस्थान ने पूछा है-
मेरे एक सेवार्थी मुस्लिम हैं। उन का समाज के सामने 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर तलाक नामा लिखा गया है। अब उन्हें न्यायालय से डिक्री चाहिए। इस के लिए क्या करना होगा?
समाधान-
मुस्लिम तलाक के मामले में भारतीय न्यायालय केवल तीन बार तलाक होने पर ही तलाक को वैध मानते हैं। शमीम आरा के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि तलाक किसी उचित कारण से होना चाहिए तथा पहले तलाक और तीसरे व अंतिम तलाक के बीच में दोनों पक्षों के बीच दो मध्यस्थों के माध्यम से समझौते की वाजिब और ईमानदार कोशिश होना चाहिए जिस में एक एक मध्यस्थ दोनों पक्षों द्वारा चुना गया हो। यदि ऐसा कुछ आप के द्वारा बताए इस मामले में हुआ है तो आप दीवानी न्यायालय में तलाक की घोषणा का वाद प्रस्तुत कर के न्यायालय से तलाक की घोषणा की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं। राजस्थान में जिन जिलों में परिवार न्यायालय स्थापित है वहाँ यह वाद परिवार न्यायालय को ही इस तरह के वाद सुनने और डिक्री पारित करने का क्षेत्राधिकार है।
लेकिन केवल समाज के सामने निष्पादित किए गए तलाकनामे के आधार पर तलाक की डिक्री पारित नहीं की जा सकती है। उस में आप को निश्चित रूप से यह अभिकथन करने होंगे कि वादी ने पहला तलाक किस दिन, किस समय दिया, उस के बाद किस तरह मध्यस्थता के प्रयत्न किए गए और कब दूसरा और तीसरा तलाक हुआ। इन कथनों को दस्तावेजों और मौखिक साक्ष्य से साबित भी करना होगा। इस दावे में तलाकशुदा बीवी आवश्यक पक्षकार होगी। यदि वह इस तलाक से सहमत नहीं है तो उस वाद में अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकती है।