तीसरा खंबा

मेगा लोक अदालतों का सच

बेटी को कल सुबह की ट्रेन से निकलना था। देर रात तक वह अपना सामान दो बैगों में किसी तरह ठूँसने में लगी रही। मैं भी देर तक न सो सका। सुबह जल्दी उठ कर उसे छोड़ने स्टेशन गया। वापस आ कर दफ्तर का कुछ काम किया। शरीर विश्राम मांग रहा था तो कुछ देर के लिए वापस बिस्तर-शरण हुआ तो नींद लग गई। उठा तो दस बजे थे। अदालत के लिए निकलने में काफी देरी हो गई। मुवक्किल का फोन आ गया कि लेबरकोर्ट में मुकदमे की आवाज लग रही है। मैं तुरंत वहाँ पहुँचा। पता लगा किन्हीं वकील साहब का देहान्त हो गया है, एक बजे शोक-सभा है उस के बाद काम नहीं होगा। दो साक्षी आए हुए थे, उन के बयान नहीं हो सके। अदालत ने एक बजे तक काम निपटाया। जज साहब कुछ देर और बैठते तो कुछ काम और निपट सकता था। पर वे यह कहते हुए उठ गए कि तीन-चार फैसले लिखवाने हैं, आज इजलास से फुरसत मिल गई है तो उन्हें ही लिखा देते हैं। मुझे कुछ और अदालतों में जरूरी काम थे मैं भी बाकी मुकदमों की पेशियाँ लिए बिना उधर निकल गया । दूसरी अदालतों का काम निपटा कर वापस लेबर कोर्ट पहुँचा तो वहाँ पेशियाँ दी जा चुकी थीं। रीडर ने पेशी रजिस्टर मेरे सामने सरका दिया।

मेगा लोक अदालत का एक दृष्य
पेशी रजिस्टर की दैनिक सूची के पन्ने में केवल 33 मुकदमे लिखने का स्थान है। लेकिन आज 80 से अधिक मुकदमे लगे हुए थे। ऊपर नीचे और दोनों ओर के हाशियों में महीन शब्दों में मुकदमे लिखे हुए थे। मुझे अपने मुकदमें तलाशने में परेशानी आई। रीडर से बातचीत हुई तो कहने लगा अदालत में 30 मुकदमे लगें तो सब में कुछ न कुछ प्रभावी काम हो सकता है। लेकिन शेष 50 मुकदमों की पेशी बदलने में इतना समय जाया होता है कि मुश्किल से 15 से 20 मुकदमों की सुनवाई हो पाती है। हम चाहते तो यही हैं कि सुनवाई के लिए 30 मुकदमों से अधिक न रखें। लेकिन तब अदालत में लंबित साढ़े चार हजार मुकदमों को खपाने में होगा यह कि हर मुकदमे में अगली पेशी कम से कम सात-आठ महिने बाद की देनी होगी। यह कर पाना कठिन है। हमें वकीलों और उन के मुवक्किलों को संतुष्ट करना कठिन हो जाए। इसलिए इतने मुकदमे लगाने पड़ते हैं। 
मेगा लोक अदालत का उद्घाटन
ह केवल श्रम न्यायालय की स्थिति नहीं, सभी न्यायालयों का यही हाल है। हो यह रहा है कि लंबित मुकदमों की अधिसंख्या मुकदमों के निपटारे में लगने वाले वास्तविक समय में वृद्धि कर देती है और अदालतों की निपटारे की क्षमता घट कर आधी रह गई है। यदि अदालतों की संख्या तुरंत दुगनी कर दी जाए तो दुगनी अदालतें तीन गुना काम आसानी से निपटा सकती हैं। लेकिन सरकारें हैं कि नयी अदालतों के लिए वित्त व्यवस्था करने के स्थान पर लोक-अदालतें और मेगा लोक अदालतें लगा कर समय जाया कर रही हैं। जनवरी के अंतिम सप्ताह में मेगा लोक अदालत लगने वाली है। अदालतें अभी से नियमित काम करने के स्थान पर मेगा लोक अदालत में फैसलों के लिए मुकदमे छाँटने में लगी हैं। ये वही मुकदमे हैं जो इस महिने में वैसे भी अदालतें निपटातीं। अब उन्हें इकट्ठा कर के मेगा लोक अदालत में निपटाएंगी। अब
हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट से कोई जज साहब आएंगे, जलसा होगा, मेला सा लगेगा। एक बड़ा आँकड़ा जुटाया जाएगा। अखबार में खबरें छपेंगी कि मेगा लोक अदालत में इत्ते मुकदमे निपटाए गए और मेगा लोक अदालत के लिए आया वित्त ठिकाने लग जाएगा।
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