तीसरा खंबा

यदि पिता के संरक्षण में पुत्र का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित हो तो उसे पुत्र की अभिरक्षा (Custody) प्राप्त करने का पूरा अधिकार है

प्रशान्त वर्मा जी ने पूछा है ….
मेरी पत्नी मुझ से करीब पंद्रह वर्ष से अलग रह रही है। मैं ने उसे लाने की हर सभव कोशिश कर ली। लेकिन मैं नाकामयाब रहा।  मेरा एक पुत्र भी है जो अब करीब चौदह वर्ष का है। मैं उसे अपने पास ला कर अपनी अभिरक्षा में रखना चाहता हूँ। क्यों कि मैं जानता हूँ कि मेरा बेटा यदि अपने ननिहाल में रहा तो निश्चित रुप से गलत आचरण सीखेगा क्यों कि हमारे ससुराल वाले गलत/झूठे सोहबत के आदमी हैं। उस का भविष्य ननिहाल में सुरक्षित नहीं है। मैं चाहता हूँ कि मैं अपने पुत्र को अपने पास पढ़ाने के लिए ले आऊँ। मैं अपने पुत्र को लाने के लिए अदालत की शरण लेता हूँ तो क्या मुझे मेरा पुत्र वापस मिल सकता है? क्या मैं अपने पुत्र को देख सकता हूँ? क्या अदालत मेरे बेटे से भी पूछेगी कि वह किस के साथ रहना चाहता है। मेरा बेटा जिस ने अपने पिता को नहीं देखाहै क्या वह मेरे साथ रहने को तैयार होगा? जब कि स्वाभाविक है कि मेरे पुत्र ने मुझे आज तक नहीं देखा वह मेरे साथ रहने को किसी भी सूरत में तैयार नहीं होगा। इस मामले में मुझे उचित सलाह दें।
उत्तर — 
प्रशान्त जी,
प ने अपनी पत्नी को लाने के सभी संभव प्रयास करना बताया है। लेकिन .यह नहीं बताया कि क्या आप ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत कोई आवेदन न्यायालय को भी दिया था या नहीं। यदि दिया था तो उस का परिणाम क्या रहा? 
प की समस्या अपने पुत्र को ला कर अपने पास रखने की है जिस से उस का भविष्य सुरक्षित हो सके। आप का उद्देश्य सही है, इस मामले में आप को अपनी पत्नी से बात कर के उस की राय जानना चाहिए था। लेकिन लगता है आप उस से बात करने में रुचि नहीं रखते।  निश्चित रूप से आप की पत्नी भी चाहेगी कि उस के बेटे का भविष्य बने। आप को एक बार तो अपनी पत्नी से बात कर के देखना ही चाहिए। 
प अपने पुत्र को अपनी अभिरक्षा में लेने के लिए जिला न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम (Guardians and Wards Act) की धारा-7 के अंतर्गत आप पिता होने के कारण अपने पुत्र के सर्वप्रथम संरक्षक हैं और आप को उस की अभिरक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार है। माता का संरक्षण का अधिकार आप के बाद का है। आप के आवेदन  पर विचार करने के समय न्यायालय यह विचार अवश्य करेगा कि आप के पुत्र का भविष्य किस प्रकार से सुरक्षित और संरक्षित हो सकेगा। निश्चित रूप से आप के पुत्र से भी यह पूछा जाएगा कि वह किस के साथ रहना चाहता है। लेकिन न्यायालय का निर्णय आप के पुत्र के बयान पर ही निर्भर नहीं करेगा। अपितु सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बालक के भविष्य पर विचार करते हुए निर्णय दिया जाएगा। इस के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आप अपने वकील के माध्यम से अदालत के समक्ष वे सभी तथ्य प्रस्तुत करें जिस से यह सिद्ध हो कि बालक का वर्तमान और भविष्य आप के संरक्षण में ही सही हो सकता है। 
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