तीसरा खंबा

राजस्थान की मीणा जाति में विवाह विच्छेद

समस्या-

हितेश मीणा ने निवाई, राजस्थान से पूछा है-

मैं मेरी पत्नी से 1 साल से अलग रह रहा हूँ। इस दौरान कई बार सामाजिक पंचायत हुई, लेकिन तलाक़ अस्वीकार कर दिया गया। पंचायत द्वारा तलाक़ अस्वीकृत होने पर क्या अस्वीकृति की कोई लिखावट की आवश्यकता होती है। क्या इसके बाद कोर्ट में तलाक़ हेतु पंचायत द्वारा अस्वीकृति की लिखित के आधार पर कोर्ट से तलाक की डिक्री प्राप्त की जा सकती है? माना पंचायत हुई हो लेकिन कोई लिखावट न हुई हो तब?

समाधान-

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 (1) (ग) के अनुसार जिन राज्य क्षेत्रों में इस अधिनियम का विस्तार है उन में अधिवासित मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी या यहूदी न हो तो जब तक यह साबित नहीं कर दिया जाए कि इस अधिनियम के पारित न होने पर वह हिन्दू विधि से शासित न होता तब तक उन पर यह अधिनियम प्रभावी होगा। इस तरह हम मान सकते हैं कि उक्त चार धर्मावलम्बियों के अतिरिक्त सभी भारतवासियों पर यह अधिननियम प्रभावी है। किन्तु राजस्थान में मीणा जाति एक अनुसूचित जनजाति है और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 2 की उपधारा (2) निम्न प्रकार है-

         (2) उपधारा 1 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हए भी इस अधिनियम में अंतर्विष्ठ कोई भी बात किसी ऐसी जनजाति के सदस्यों को जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड 25 के अंतर्गत अनुसुचित जनजाति हो, लागू न होगी जब तक कि केंद्रीय सरकार शासकीय राजपत्र की अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ठ न कर दे।

इस तरह इस अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 2 के उपबंधों के कारण राजस्थान में निवास कर रहे मीणा जाति के सदस्यों पर यह अधिनियम प्रभावी नहीं है। इस तरह विवाह के संबंध में राजस्थान की मीणा जाति के सदस्यों के लिए अभी तक कोई संहिताबद्ध विधि नहीं है। वैसी स्थिति में राजस्थान के मीणा जाति के सदस्यों पर केवल और केवल परंपरागत रूप से जो भी विधि प्रचलित चली आ रही है वह आज भी प्रभावी है। राज्य उस में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करता, हमारी न्याय व्यवस्था भी राज्य का ही एक अंग है। इस तरह भारत में विधि द्वारा स्थापित न्यायालयों को भी मीणा जाति अथवा सभी अनुसूचित जनजातियो की विवाह संबंधी विधि के मामले में किसी तरह का निर्णय प्रदान करने का कोई अधिकार नहीं है। मीणा जाति का कोई भी सदस्य विधि द्वारा स्थापित न्यायालयों के समक्ष केवल अपनी वैवाहिक प्रास्थिति के बारे में घोषणा का वाद संस्थित कर सकता है कि घोषित किया जाए कि वह अविवाहित, विवाहित, या तलाकशुदा व्यक्ति है।

इस स्थिति में यदि आप न्यायालय के समक्ष कोई वाद संस्थित कर सकते हैं तो केवल यह कर सकते हैं कि न्यायलय घोषणा करे कि आप का विवाह विच्छेद हो गया है। जब कि स्थिति यह है कि आप का विवाह विच्छेद पंच पटेलों ने स्वीकार नहीं किया है। आप को साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा जाएगा। जो पंच पटेलों द्वारा लिखित कोई तहरीर हो सकती है। लेकिन उसे प्रमाणित कराने के लिए भी आप को कम से कम दो पंचो को जिस के उस पर हस्ताक्षर हों न्यायालय में गवाह के रूप में प्रस्तुत कर बयान कराने होंगे। यदि कोई तहरीर नहीं है तो आप पंच पटेलों की अंतिम बैठक में हुए निर्णय के बारे में कम से कम दो पंचों को गवाह के रूप में प्रस्तुत कर यह बयान करा सकते हैं कि पंच पटेलों ने विवाह विच्छेद कर दिया है। लेकिन आप की पत्नी भी गवाह पेश कर साबित कर सकती है कि पंच पटेलों ने विवाह विच्छेद की अनुमति नहीं दी है। वैसे भी यह सर्वमान्य तथ्य है कि मीना जाति के पंच पटेल बहुत ही कठिनाई के उपरान्त विवाह विच्छेद की सहमति प्रदान करते हैं। इस तरह वर्तमान में आप विवाह विच्छेद की घोषणा के लिए कोई वाद न्यायालय में संस्थित नहीं कर सकते। यदि आप कर सकते हैं तो यह कि पंच पटेलों की जिस पंचायत में आप अपना फैसला कराने जा चुके हैं, उस पंचायत से बड़ी अर्थात तालुका या जिला स्तर की पंचायत आप बुलाएँ और उस में विवाह विच्छेद का निर्णय कराएँ। यह भी हो सकता है कि आप पत्नी से बात करें और किसी समझौते पर पहुँच कर पंच पटेलों से दोनों पक्षों की सहमति से विवाह विच्छेद अनुमत कराएँ।

राजस्थान की मीणा जाति की विवाह से संबंधित विवादों का हल केवल उन की परंपरागत व्यक्तिगत विधि में ही संभव है। पर वह क्या है? इस पर न तो बहुत अधिक शोध हुए हैं और न ही कोई साहित्य इस संबंध में मिलता है। कोई भी वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने पर और उस का हल जाति पंचायतों में न निकलने पर लोग परेशान होते रहते हैं लेकिन कोई हल नहीं निकल पाता है। यह जरूरत महसूस की जाती है कि इस जाति के लिए भी कोई संहिताबंध व्यक्तिगत विधि हो और उस में यह निर्धारित हो कि विधि द्वारा स्थापित न्यायालय उस में कहाँ तक हस्तक्षेप कर सकते हैं। आज राजस्थान की मीणा जाति संगठित है, पढ़े लिखे लोग कम नहीं हैं, और बड़ी संख्या में राजकीय सेवाओँ में उच्च पदों पर आसीन हैं। उन की ग्राम पंचायतें, तहसील या क्षेत्रीय पंचायतें और राज्य संगठन हैं। मेरी राय में इस जाति के पढ़े लिखे लोगों को चाहिए कि ऐसा कुछ किया जाए जिस से कुछ लोग इस विषय पर शोध करें, शोध के बाद निकल कर आई विवाह संबंधी विधि के संबंध में तमाम पंचायतों में बहस चलाएँ, जिस से आपकी जाति के लिए एक सर्वमान्य विधि का एक लिखित स्वरूप सामने आए। उस के बाद तमाम ग्राम स्तर की जाति पंचायतों में उस पर सहमति ले ली जाए।

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