राजेश कुमार ने बाँसवाड़ा, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरे दादा जी की दो पत्नियां थीं। जिस में से पहली पत्नी की एक पुत्री एव दूसरी पत्नी की दो संताने जिस में एक पुत्र एव एक पुत्री थी। मेरे दादाजी की मृत्त्यु 1982 में हुई। दादाजी की मृत्त्यु के बाद दिनांक 7/2/1983 को पहली पत्नी की पुत्री का नाम काश्तकार भूमि में दर्ज किया गया है जिस की जानकारी दादाजी की दूसरी पत्नी के पुत्र व पुत्री को नही थी। अब मेरे पिताजी एवं माता जी की मृत्यु दिनांक 11/11/2014 व 15/11/2014 को हुई व मेरी बुआजी की मृत्यु भी 2014 में हो गई हे अर्थात् मेरे दादाजी की दूसरी पत्नी के दोनों संतान पुत्र व पुत्री की मृत्यु हो चुकी हे तथा मेरे दादाजी की पहली पत्नी की सन्तान (पुत्री) जीवित है। भू-अभिलेख से रिकॉर्ड निकालने पर पता चला कि मेरे पिताजी एव मेरे पिताजी की सोतेली बहन (दादाजी की पहली पत्नी की पुत्री) का नाम दिनांक 7/2/1983 में दर्ज हे। लेकिन मेरे दादाजी की म्रत्यु 1982 में हो चुकी थी उनकी म्रत्यु के बाद केवल उनके पुत्र का नाम था किन्तु पिताजी की जानकारी के बिना सोतेली बहन का नाम भी दर्ज करवाया गया। क्या उनका इस भूमि में दादाजी की मृत्यु (1982) के बाद बिना किसी को जानकारी के (7/2/1983) को अपना नाम दर्ज करवाना कानूनन सही था। क्या मेरी सौतेली बुआजी का उस काश्तकार भूमि में या उनकी संतानो का हक होगा या नहीं और यदि होगा भी तो किस अनुपात में होगा। मेरे पिताजी की सगी बहन जिनकी भी मृत्यु हो गई हे क्या उनकी संताने भी हक मांग सकती हैं या नहीं जब कि इनका राजस्व रिकार्ड में नाम दर्ज नहीं है ।
समाधान-
आप की समस्या यह है कि आप के पिता की सौतेली बहन का नाम तो राजस्व रिकार्ड में चढ़ा हुआ है लेकिन सगी बहन का नहीं। लगता है सारी भूमि का उपयोग आप के पिताजी करते आ रहे हैं और अब आप करना चाहते हैं। जब भी आप की सौतेली और सगी बुआएँ चाहेंगी अपना हिस्सा मांगेंगी आप को देना न पड़ जाए वरना आप के कब्जे की जमीन एक तिहाई रह जाएगी।
आप का पहला प्रश्न यह है कि आप की सौतेली बुआ का नाम आप के पिता की जानकारी के बिना चढ़ा वह गलत था या सही। अब उसे गलत या सही बताने का कोई अर्थ नहीं है। वह नाम चढ़ा हुआ है।
आप का दूसरा प्रश्न यह है कि उन का और आप की सगी बुआ के हिस्से बनते हैं या नहीं। 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया था। राजस्थान में कृषि भूमि की खातेदारी का उत्तराधिकार इसी अधिनियम से तय होता है। इस अधिनियम की धारा-6 इस प्रकार थी कि यदि कोई पुश्तैनी/ सहदायिक संपत्ति हुई और उस में हिस्सेदार किसी मृतक हिन्दू पुरुष के कोई पुत्री हुई तो उस के हिस्से का उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार होगा। यदि संपत्ति पुश्तैनी नहीं है तो भी धारा 8 के अनुसार ही होगा।
आप के दादा के एक नहीं दो दो पुत्रियाँ थी इस कारण उन का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार होगा। जिस में पुत्रों और पुत्रियों को समान अधिकार दिया गया है। इस तरह आप के दादा जी की भूमि में तीनों संतानों अर्थात आप के पिता और उन की दोनों सौतेली और सगी बहनों को बराबर का हिस्सा प्राप्त हुआ। भले ही उक्त सारी जमीन आप के पिता के कब्जे में रही हो लेकिन उस में उन की दोनों बहनों का भी समान अधिकार है। आप के पिता की सगी बहिन की मृत्यु के बाद बहिन के उत्तराधिकारियों का उस एक तिहाई हिस्से पर हक है वे खातेदार के रूप में नाम दर्ज करवा सकते हैं और जब चाहें तब बंटवारा भी करवा सकते हैं।
आप की सौतेली बुआ का नाम खाते में सही दर्ज हुआ था। गलती यह हुई कि आप की सगी बुआ का नाम दर्ज नहीं हो सका। लेकिन नामान्तरण किसी संपत्ति के हक का दस्तावेज नहीं है। संपत्ति का हक तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से ही तय होगा। यदि सारी जमीन आप के कब्जे में है तो आप की सौतेली बुआ और सगी बुआ के उत्तराधिकारी कभी भी अपना अलग हिस्सा बंटवारे के रूप में मांग सकते हैं। आप के पिता का हिस्सा एक तिहाई ही है। बाकी के व ट्रस्टी थे अब आप ट्रस्टी हैं।