तीसरा खंबा

लॉर्ड कॉर्नवलिस की 1787 की न्यायिक योजना : भारत में विधि का इतिहास-44

हेस्टिंग्स की वापसी हुई, और लॉर्ड कॉर्नवलिस को 1786 में बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया। उस ने 1793 तक इस पद पर बना रहा। उस ने अपने सात वर्षों के कार्यकाल में न्यायिक व्यवस्था में सुधार के मजबूत प्रयत्न किए। उस ने स्थाई बंदोबस्त के माध्यम से जहाँ राजस्व प्रणाली को नई दिशा प्रदान की, वहीँ सिविल और अपराधिक न्याय प्रशासन में अनेक सुधार किए। वह पहला व्यक्ति था जो ‘कानून के राज’को प्रशासनिक व्यवस्था का आधार मानता था।  उस ने 1787, 1790 व 1793 में तीन चरणों में न्यायिक सुधारों की योजनाएँ प्रस्तुत कीं और उन्हें लागू किया।
1787 की न्यायिक योजना
कंपनी निदेशक मंडल ने लॉर्ड कॉर्नवलिस को निर्देश दिया था कि न्याय प्रशासन में मितव्ययता, सरलीकरण और शुचिता का व्यवहार किया जाए। इन्हीं निर्देशों के क्रम में उस ने अपनी पहली योजना प्रस्तुत की। पूर्व प्रशासक हेस्टिंग्स ने भू-राजस्व और न्याय प्रशासन का पृथक्कीकरण किया था। लेकिन मितव्ययता की दृष्टि से कॉर्नवलिस ने इन दोनों का एकीकरण किया और जिलों की संख्या 36 से घटा कर 23 कर दी। प्रत्येक जिले में एक-एक कलेक्टर नियुक्त कर उसे दायित्व सोंपे गए।
कलेक्टर के दायित्व
1. कलेक्टर के रूप में उस का दायित्व राजस्व संग्रह का था। 
2. न्यायाधीश के रूप में उसे सिविल वादों का निपटारा करने के लिए मुफस्सल दीवानी अदालत का न्यायाधीश भी बनाया गया जिस के अंतर्गत उस पर दीवानी मामलों का निर्णय करने का दायित्व होता था।
3. मजिस्ट्रेट के रूप में वह अपराध करने वाले व्यक्तियों को बंदी बना कर क्षेत्राधिकार युक्त निजामत अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का दायित्व उसे दिया गया। वह जमींदारों और ताल्लुकादारों के उत्तराधिकार और भूमि सीमा संबंधी साधारण मामलों को स्वयं निपटा सकता था। लेकिन कलेक्टरों को यह हिदायत थी कि वे इस संदर्भ में स्थानीय रीतिरिवाजों के अनुसार अपने निर्णय दें और अपने दीवानी और अपराधिक मामलों के दायित्वों में अलगाव बनाए रखें। 
अपील
लेक्टर द्वारा 1000 रुपए मूल्य तक के दीवानी मामलों में दिए गए निर्णय अंतिम और आबद्धकर कर दिए गए थे। इस से अधिक मूल्य के दीवानी वादों में निर्णयों के विरुद्ध अपील कलकत्ता के सदर दीवानी न्यायालय में की जा सकती थी। सदर दीवानी अदालत गवर्नर जनरल और उस के सदस्यों से मिल कर गठित होती थी। वहाँ स्थानीय विधि के लिए भारतीय विधि अधिकारी नियुक्त किए गए थे। सदर दीवानी अदालत के 5000 पाउंड या अधिक मूल्य के मामलों के निर्णयों की अपील किंग-इन-कौंसिल में की जा सकती थी।
रजिस्ट्रार
न्याय प्रशासन को गतिशील बनाने के लिए कलेक्टर की सहायता के लिए प्रत्येक जिले में एक रजिस्ट्रार की नियुक्ति की गई जो 200 रुपए मूल्य तक के दीवानी मामलों की सुनवाई कर निर्णय दे सकता था जो कलेक्टर के प्रतिहस्ताक्षर होने के उपरांत प्रभावी हो सकता था। 
दंड प्रवर्तन 
लेक्टर को जिले में शांति न्यायाधीश/मजिस्ट्रेट के रूप में अभियुक्तों को बंदी बनाने, लघुवादों के विचारण और अधिक