अभिनव ने रीवा मध्यप्रदेश से पूछा है-
हमारे किराएदार जो बहुत पहले से है वह अभी बहुत ही कम किराया देते हैं। ओर खाली करने कीकहने पर 20 लाख रुपयों की मांग कर रहे हैं। दूसरे लोगों को किराए पर दे कर खुद अच्छा किराया वसूल करते हैं। क्या उन से आसानी से हटाया जा सकता है या किराया बढ़ाया जा सकता है। क्या लोक अदालत में इस की कार्यवाही हो सकती है?
समाधान-
हम ने हमेशा कहा है कि किराएदार किराएदार ही रहता है वह कभी मकान मालिक नहीं हो सकता। किराएदार कम किराया देता है तो उस का कारण है कि आप ने किराया बढ़ाने के लिए कभी कानूनी कार्यवाही नहीं की। यदि समय रहते आप ने किराया बढ़ाने की कार्यवाही की होती तो अब तक किराया बढ़ चुका होता। यदि आप किराया बढ़ाना चाहते हैं तो आप को न्यायालय में कार्यवाही करनी ही होगी।
आप के किराएदार आप को कम किराया देता है और उस ने अन्य व्यक्ति को वही परिसर या उस का कोई भाग अधिक किराये पर दे रखा है तो आप को इस बात के सबूत एकत्र करना चाहिए कि आप के किराएदार ने परिसर को शिकमी किराएदारी पर चढ़ा दिया है। यदि आप के किराएदार ने परिसर को शिकमी किराएदार को चढ़ा दिया है तो आप इसी आधार पर अपना परिसर खाली करवा सकते हैं।
किराएदार से परिसर खाली कराने का हर राज्य में अलग कानून बना है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी है। आप को तुरन्त किसी वकील से संपर्क करना चाहिए। आप किराया भी बढ़ा सकते हैं और परिसर खाली भी करवा सकते हैं। वकील आप से जरूरी सारे तथ्य जान कर उपाय बता सकता है।
कई लोग सोचते हैं कि अदालत में मुकदमा करने से बहुत समय लगेगा। तो अदालत में समय तो लगता है। कितना समय लगेगा यह स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि अदालत में मुकदमे बहुत अधिक संख्या में लंबित हैं तो समय भी अधिक लगेगा। मुकदमों में देरी होने का कारण अदालतों की संख्या का बहुत कम होना है। देश के मुख्य न्यायाधीश ने देश भर में 70000 अदालतों की और जरूरत बताई है। जब तक देश में पर्याप्त अदालतें नहीं होतीं तब तक मुकदमों के निर्णय में देरी होना जारी रहेगा। वैसे अधीनस्थ न्यायालय स्थापित करने का दायित्व राज्य सरकार का है। लोगों को चाहिए कि अधिक अदालतें स्थापित करने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाएँ।
लेकिन यह सोच गलत है कि अदालत में मुकदमा करने से देरी होगी इस कारण अन्य उपाय तलाशा जाए। अन्य कोई भी वैध उपाय उपलब्ध नहीं है इस कारण आप को जाना तो अदालत ही पड़ेगा। आप अदालत जाने में जितनी देरी करेंगे उतनी ही देरी से आप को राहत प्राप्त होगी। इस कारण मुकदमा करने में देरी न करें।
लोक अदालत में न्याय बिलकुल नहीं मिलता। वहाँ भी मजबूर पक्ष को ही झुकना पड़ता है और जो कुछ मिल रहा है उस पर इसलिए सब्र करना पड़ता है कि अदालतें समय रहते न्याय करने में सक्षम नहीं हैं। वस्तुतः लोक अदालतें तो लोगों को न्याय प्राप्ति से दूर करने की तरकीब है जो सरकारों और न्यायपालिका ने मिल कर तलाश कर ली है। यह पूरी तरह से न्याय से विचलन है।