राजीव ने पूछा है –
एक वकील की फीस कितनी होती है? और वकील के सही काम नहीं करने पर क्या उसे बदला जा सकता है? एक वकील की अपने मुवक्किल के प्रति क्या जिम्मेदारी होती है?
उत्तर –
राजीव जी,
प्राथमिक रूप से किसी भी वकील की फीस बार में उस की स्थिति और मामले की प्रकृति निर्भर करती है। यदि वह एक वरिष्ठ और अनुभवी वकील है तो उस की फीस अधिक होगी। यदि वह कोई नया और कम अनुभव वाला वकील है तो उस की फीस कम होगी। हम यह मान सकते हैं कि किसी भी वकील की फीस का निर्धारण उस की अपनी इच्छा से होता है। किसी भी मुकदमे में पैरवी के लिए अथवा किसी भी कार्य के लिए वकील अपनी फीस स्वयं निर्धारित कर सकता है और उस का प्रस्ताव अपने मुवक्किल के समक्ष रख सकता है। लेकिन कोई भी वकील उस की इच्छित चाही गई फीस के भुगतान पर किसी मुवक्किल के लिए काम करने से इन्कार नहीं कर सकता जब तक कि विशेष परिस्थितियां न हों।
यदि किसी मुवक्किल को लगता है कि उस का वकील सही काम नहीं कर रहा है तो वह उसे बदल सकता है। लेकिन उसे बदलने के लिए मुवक्किल को प्रक्रिया अपनानी होगी। किसी मुकदमे में कोई मुवक्किल न्यायालय को यह आवेदन कर सकता है कि वह अपने वर्तमान नियुक्त वकील को आगे अपना वकील नहीं रखना चाहता है और बदलना चाहता है। न्यायालय इस आवेदन पर आदेश कर के वकील को दिए गए प्राधिकार को समाप्त कर देगा। उस के उपरांत मुवक्किल नए वकील को प्राधिकार प्रदान कर उसे वकालतनामा प्रस्तुत करने को कह सकता है। एक बार किसी को वकील नियुक्त करने के उपरांत जब तक कि नियुक्त किए गए वकील का प्राधिकार किसी मुवक्किल द्वारा समाप्त न कर दिया जाए और न्यायालय उसे अपने रिकॉर्ड से उस मुवक्किल के वकील के रूप में न हटा दे, तब तक कोई भी दूसरा वकील बिना पूर्व वकील की सहमति के उस मुकदमे में जिस में मुवक्किल ने उसे प्राधिकृत किया है अपना वकालतनामा दाखिल नहीं कर सकता। यदि किसी वकील का प्राधिकार किसी मुकदमे में रहते हुए अन्य वकील किसी न्यायालय में उसी मुवक्किल का वकालतनामा दाखिल करता है तो यह नए वकील के लिए व्यावसायिक दुराचरण होगा। जिस की शिकायत राज्य बार कौंसिल को की जा सकती है और पूर्व वकील की सहमति के बिना या उसे रिकॉर्ड से हटाए बिना वकालतनामा पेश करने के लिए उसे दंडित किया जा सकता है।
किसी भी वकील की अपने मुवक्किल के प्रति जिस मुकदमे में उसे वकील नियुक्त किया गया है, उस के संबंध में पूर्ण जिम्मेदारी होती है कि वह अपने मुवक्किल को उस के मुकदमे में पैरवी के लिए सभी तरह की ऐसी सहायता प्रदान करे जो विधि द्वारा निषिद्ध न हो। मुवक्किल के प्रति किसी वकील के विशिष्ठ दायित्व निम्न प्रकार हैं –
1. कोई भी वकील सामान्य रूप से अपने मुवक्किल से प्राप्त प्राधिकार को बिना किसी पर्याप्त कारण के और अपने मुवक्किल को उचित और पर्याप्त अवधि पूर्व सूचना दिए बिना समाप्त नहीं कर सकता। यदि वह किसी मामले से हटता है तो उसे प्राप्त की गई फीस का वह अंश जिस का उस ने काम नहीं किया है अपने मुवक्किल को लौटाना होगा।
2. कोई भी वकील किसी ऐस
े मामले में वकालत करना स्वीकार नहीं कर सकता, जिस में वह स्वयं एक साक्षी हो। जैसे ही वकील को ज्ञान हो कि वह किसी मुकदमे में किसी तात्विक बिन्दु का साक्षी है उसे उस मुकदमे से हट जाना चाहिए।
3. किसी भी वकील को जैसे ही वह किसी मामले में नियुक्त होते ही और मामले के दौरान, उस मामले के पक्षकारों से अपने संबंध और उस मामले से अपने हितों को पूर्ण और स्पष्ट रूप से अपने मुवक्किल के समक्ष उजागर कर देना चाहिए। उसे यह भी बता देना चाहिए कि इन चीजों से मुवक्किल के मामले पर क्या प्रभावा हो सकता है।
4. किसी भी वकील का यह कर्तव्य है कि वह सभी उचित और सम्मानजनक तरीकों से निर्भीकता के साथ अपने मुवक्किल के हितों को बनाए रखने के लिए बिना इस बात की परवाह किए कि इस से उसे या किसी अन्य को असुविधाजनक स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। किसी अपराधिक मामले में किसी अभियुक्त का वकील होते हुए अपने मुवक्किल के दोष के संबंध में अपनी व्यक्तिगत राय को पृथक रखते हुए उस का बचाव करना चाहिए, और सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि उस की प्रतिबद्धता कानून के साथ है, जो यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को बिना पर्याप्त साक्ष्य के दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
5. अपराधिक विचारण में अभियोजन पक्ष की पैरवी करने वाले वकील को ध्यान रखना चाहिए कि उसे निर्दोष व्यक्ति को दंडित नहीं कराना है, उसे ऐसे तथ्यों को छुपाना नहीं चाहिए जो कि किसी व्यक्ति की निर्दोषिता को सिद्ध करते हों।
6. किसी भी वकील को गवाही देते समय अपने मुवक्किल को दी गई राय को अथवा उस की वकालत करते समय उस के ध्यान में आए किसी दस्तावेज आदि को प्रकट नहीं करना चाहिए, जब तक कि वे किसी अवैध काम या अपराध के किए जाने से संबंधित न हों।
7. एक वकील को किसी भी प्रकार से कानूनी विवादों को भड़काने/बढ़ाने का कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
8. किसी भी वकील को अपने मुवक्किल के काम के संबंध में स्वयं मुवक्किल अथवा उस के अधिकृत प्रतिनिधि के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के निर्देशों पर कार्य नहीं करना चाहिए।
9. किसी भी वकील को अपनी फीस मुकदमे के परिणाम या मिलने वाले लाभ के अंश के रूप में निर्धारित नहीं करना चाहिए।
10. किसी भी वकील को अपने मुवक्किल से प्राप्त फीस को उस के किसी अन्य देनदारी के भुगतान के लिए परिवर्तित नहीं करनी चाहिए।
यदि किसी मुवक्किल को लगता है कि उस का वकील सही काम नहीं कर रहा है तो वह उसे बदल सकता है। लेकिन उसे बदलने के लिए मुवक्किल को प्रक्रिया अपनानी होगी। किसी मुकदमे में कोई मुवक्किल न्यायालय को यह आवेदन कर सकता है कि वह अपने वर्तमान नियुक्त वकील को आगे अपना वकील नहीं रखना चाहता है और बदलना चाहता है। न्यायालय इस आवेदन पर आदेश कर के वकील को दिए गए प्राधिकार को समाप्त कर देगा। उस के उपरांत मुवक्किल नए वकील को प्राधिकार प्रदान कर उसे वकालतनामा प्रस्तुत करने को कह सकता है। एक बार किसी को वकील नियुक्त करने के उपरांत जब तक कि नियुक्त किए गए वकील का प्राधिकार किसी मुवक्किल द्वारा समाप्त न कर दिया जाए और न्यायालय उसे अपने रिकॉर्ड से उस मुवक्किल के वकील के रूप में न हटा दे, तब तक कोई भी दूसरा वकील बिना पूर्व वकील की सहमति के उस मुकदमे में जिस में मुवक्किल ने उसे प्राधिकृत किया है अपना वकालतनामा दाखिल नहीं कर सकता। यदि किसी वकील का प्राधिकार किसी मुकदमे में रहते हुए अन्य वकील किसी न्यायालय में उसी मुवक्किल का वकालतनामा दाखिल करता है तो यह नए वकील के लिए व्यावसायिक दुराचरण होगा। जिस की शिकायत राज्य बार कौंसिल को की जा सकती है और पूर्व वकील की सहमति के बिना या उसे रिकॉर्ड से हटाए बिना वकालतनामा पेश करने के लिए उसे दंडित किया जा सकता है।
1. कोई भी वकील सामान्य रूप से अपने मुवक्किल से प्राप्त प्राधिकार को बिना किसी पर्याप्त कारण के और अपने मुवक्किल को उचित और पर्याप्त अवधि पूर्व सूचना दिए बिना समाप्त नहीं कर सकता। यदि वह किसी मामले से हटता है तो उसे प्राप्त की गई फीस का वह अंश जिस का उस ने काम नहीं किया है अपने मुवक्किल को लौटाना होगा।
2. कोई भी वकील किसी ऐस
े मामले में वकालत करना स्वीकार नहीं कर सकता, जिस में वह स्वयं एक साक्षी हो। जैसे ही वकील को ज्ञान हो कि वह किसी मुकदमे में किसी तात्विक बिन्दु का साक्षी है उसे उस मुकदमे से हट जाना चाहिए।
3. किसी भी वकील को जैसे ही वह किसी मामले में नियुक्त होते ही और मामले के दौरान, उस मामले के पक्षकारों से अपने संबंध और उस मामले से अपने हितों को पूर्ण और स्पष्ट रूप से अपने मुवक्किल के समक्ष उजागर कर देना चाहिए। उसे यह भी बता देना चाहिए कि इन चीजों से मुवक्किल के मामले पर क्या प्रभावा हो सकता है।
4. किसी भी वकील का यह कर्तव्य है कि वह सभी उचित और सम्मानजनक तरीकों से निर्भीकता के साथ अपने मुवक्किल के हितों को बनाए रखने के लिए बिना इस बात की परवाह किए कि इस से उसे या किसी अन्य को असुविधाजनक स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। किसी अपराधिक मामले में किसी अभियुक्त का वकील होते हुए अपने मुवक्किल के दोष के संबंध में अपनी व्यक्तिगत राय को पृथक रखते हुए उस का बचाव करना चाहिए, और सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि उस की प्रतिबद्धता कानून के साथ है, जो यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को बिना पर्याप्त साक्ष्य के दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
5. अपराधिक विचारण में अभियोजन पक्ष की पैरवी करने वाले वकील को ध्यान रखना चाहिए कि उसे निर्दोष व्यक्ति को दंडित नहीं कराना है, उसे ऐसे तथ्यों को छुपाना नहीं चाहिए जो कि किसी व्यक्ति की निर्दोषिता को सिद्ध करते हों।
6. किसी भी वकील को गवाही देते समय अपने मुवक्किल को दी गई राय को अथवा उस की वकालत करते समय उस के ध्यान में आए किसी दस्तावेज आदि को प्रकट नहीं करना चाहिए, जब तक कि वे किसी अवैध काम या अपराध के किए जाने से संबंधित न हों।
7. एक वकील को किसी भी प्रकार से कानूनी विवादों को भड़काने/बढ़ाने का कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
8. किसी भी वकील को अपने मुवक्किल के काम के संबंध में स्वयं मुवक्किल अथवा उस के अधिकृत प्रतिनिधि के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के निर्देशों पर कार्य नहीं करना चाहिए।
9. किसी भी वकील को अपनी फीस मुकदमे के परिणाम या मिलने वाले लाभ के अंश के रूप में निर्धारित नहीं करना चाहिए।
10. किसी भी वकील को अपने मुवक्किल से प्राप्त फीस को उस के किसी अन्य देनदारी के भुगतान के लिए परिवर्तित नहीं करनी चाहिए।