आज बारी थी, चिकित्सकीय लापरवाही से हुई हानि के विरुद्ध उपायों पर चर्चा करने की। आज सुबह अदालत पहुँचे तो पता लगा आज पूरे राजस्थान के वकीलों ने राजस्थान राज्य बार काउंसिल के आव्हान पर न्यायालय का बहिष्कार कर दिया है। मैं तुरंत ही अदालत के कामों से तनाव मुक्त हो गया। मैं अपनी मुकदमा डायरी पर निगाह दौड़ाता उस के पहले ही मोबाइल एक सायरन बजा कर चुप हो गया। मैं ने उस कॉल पर की गई पूछताछ का उत्तर दे दिया। लेकिन एक मुवक्किल की तीन मिस्ड कॉल्स भी थीं, जिस के विरुद्ध एक फौजदारी मुकदमा था और सुबह ही उस ने मुझे निर्देश दिया था कि वह दिल्ली में है और उस की आज की उपस्थिति माफ करने के लिए आवेदन दे दिया जाए। मैं ने इस तरह के आवेदन का छपा हुआ प्रोफोर्मा निकाला और उस में मुकदमे का शीर्षक,मुवक्किल का नाम और अनुपस्थिति का कारण भरता कनिष्ट वकील कमल सामने दिखाई दिया। वह चार वर्ष पहले दो-तीन माह तक मेरे पास काम कर चुका था। फिर एक कारखाने में नौकरी पर चला गया। वहाँ स्थाई न किये जाने के कारण नौकरी छोड़ कर वापस आया और एक अन्य वकील साहब के पास काम करने लगा था। पूछने पर वह बता चुका था कि उन का दफ्तर उस के घर के निकट होने के कारण वह वहाँ काम कर रहा है। मैं ने उस से पूछा -काम कैसा चल रहा है? तो उस ने बताया कि वहाँ वकील साहब के मुंशी से पटरी नहीं बैठी और वह मेरे साथ ही आने को इच्छुक है।
इतनी बात होने तक मैं आवेदन का फार्म भर चुका था उस पर कोर्ट फीस का टिकट लगाना शेष था। -टिकट खरीद कर लाऊँ, कमल ने पूछा। तब तक मैं ने पर्स से टिकट निकाल कर आवेदन पर चिपका दिया। वह तुरंत उसे न्यायालय में प्रस्तुत करने दौड़ गया।
श्रम न्यायालय में चल रहे चार श्रमिकों की सेवामुक्ति के एक मुकदमे में एक श्रमिक की मृत्यु हो गई थी। उस का पुत्र आया हुआ था। मैं ने मृत्यु की सूचना प्रस्तुत करने का आवेदन तैयार किया। श्रम न्यायालय 10 बजे के उपरांत प्रारंभ होता है यह सोच कर अपनी डायरी देखने लगा। इधर दीवानी और फौजदारी अदालतों में पाँच मुकदमे थे। कमल वापस लौटा तो एक को छोड़ कर सब की तारीखें नोट कर लाया था। एक के बारे में उस ने बताया कि इस केस की फाइल ही नहीं निकली है। मैं उस के साथ अदालत पहुँचा तो रीडर ने इस समाचार को सही बताया। अदालत के दफ्तर गया तो पता लगा दफ्तर से फाइल सुबह ही अदालत में भेज दी गई है। वापस आ कर रीडर से पूछा और मुकदमे की पूरी तफसील बताई तो उस ने फौरन फाइल पकड़ ली और उस में तारीख बदल दी।
अब हम श्रम न्यायालय पहुँचे, वहाँ मृत्यु की सूचना का आवेदन दिया एक को छोड़ कर सब मुकदमों में तारीखें नोट कीं। एक मुकदमे में गवाह आया हुआ था। पता लगा उस में गवाह का शपथ पत्र पेश होगा। आप को कल जिरह करनी है। मैं मुवक्किल को वहाँ छोड़ कर बाहर आया तो वहाँ कई न्यायार्थी बैठे थे। मैं ने उन से पूछा कि आज तो तारीखें हो गई हैं, अब वे क्यों रुके हैं? उन्हों ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। बदले में पूछने लगे। हमें पाँच पाँच, दस दस वर्ष हो गए। हमारे मुकदमे का फैसला कब होगा? अब तो हम ने केन्द्र और राज्य में दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें बना दीं हैं। मुझे उन का सोच अच्छा लगा कि वे अदालतों के कामकाज को सरकारों से जोड़ कर देख रहे थ