वसीक अहमद का मुकदमा कानपुर की अदालत ने वापस क्यों लौटाया?
दिनेशराय द्विवेदी
वसीक अहमद चाहते थे कि वे विदेश जाएँ, उन्हें विदेश में कोई नियोजन प्राप्त हो जाए। उन्हों ने मुम्बई के एक ऐजेंट से संपर्क किया। ऐजेंट ने उन से आवश्यक दस्तावेज मंगाए। कुछ दिन बाद उस ने वसीक अहमद को वीजा की फोटो प्रति भेजी और उन से एक लाख रुपए भेजने को कहा। वसीक अहमद ने एक लाख रुपया ऐजेंट को भेज दिया। उस के बाद ऐजेंट ने कोई संपर्क नहीं रखा, यहाँ तक कि उन का पासपोर्ट तक उन्हें नहीं लौटाया। वसीक अहमद ने उन के साथ हुई इस धोखाधड़ी के लिए कानपुर की अदालत में एक अपराधिक परिवाद प्रस्तुत किया। लेकिन अदालत ने उन्हें उन का परिवाद इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया कि वे इस परिवाद को मुम्बई की अदालत में पेश करें। वसीक अहमद चाहते हैं कि उन का परिवाद कानपुर में पेश हो। प्रश्न यह है कि उन का परिवाद कानपुर की अदालत ने लौटा क्यों दिया? और मुम्बई की अदालत में पेश करने को क्यों कहा?
यूँ तो भारत के हर राज्य के हर जिले और कुछ अन्य नगरों में अदालतें हैं और इन अदालतों में मुकदमे पेश किए जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी भी अदालत में कोई भी मुकदमा पेश कर दिया जाए। हर मुकदमे के लिए कानून द्वारा यह निश्चित किया गया है कि उसे किस अदालत में पेश किया जाए। इस तरह यह कानून से निर्धारित होता है कि कोई मुकदमा विशेष किस अदालत में चलाया जाएगा। वसीक अहमद का मुकदमा ठगी और धोखाधड़ी के बारे में था। दोनों ही कृत्य अपराध हैं इस लिए अपराधी को दंडित करने के लिए अपराधिक मुकदमा चलाया जाना था। अपराधिक मुकदमे के लिए यह आवश्यक है कि या तो पुलिस को रिपोर्ट की जाए और पुलिस यदि यह समझती है कि यह ऐसा मुकदमा है जिस में वह कार्यवाही करने को सक्षम है और कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त कारण हैं तो वह प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर के अन्वेषण आरंभ कर देती है। अन्वेषण की समाप्ति पर यदि अपराध होना पाया जाता है और अपराधी का पता लग जाता है तो अपराधी के विरुद्ध आरोप पत्र मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत करती है। प्रत्येक पुलिस थाना के लिए एक मजिस्ट्रेट की अदालत निश्चित है जिस में वह गिरफ्तार किए गए अपराधियों को प्रस्तुत करती है और जिस में वह अपराधियों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत करती है। प्रत्येक मजिस्ट्रेट की अदालत को कुछ थाना क्षेत्रों के लिए स्थानीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है। यदि पुलिस किसी मामले में रिपोर्ट दर्ज कर अन्वेषण नहीं करती है तो परिवादी सीधे स्थानीय अधिकारिता वाले न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकता है। वसीक अहमद का मुकदमा किस थाना क्षेत्र से संबंधित था और मजिस्ट्रेट की किस अदालत को उस पर स्थानीय अधिकारिता प्राप्त थी यह जानने के लिए हमें दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय-13 पढ़ना होगा जो जाँचों और विचारणों में दंड न्यायालयों की अधिकारिता के बारे में हैं। इसी अध्याय के उपबंधों से यह तय होता है कि किसी अपराधिक मामले में कौन सा न्यायालय जाँच और विचारण करने में सक्षम है।
दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय-13 का आरंभ धारा 177 से होता है। इस धारा में यह उपबंध किया गया है कि प्रत्येक अपराध की जाँच और विचारण मामूली तौर पर ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिस की स्थानीय अधिकारिता के अन्दर वह अपराध किया गया है। इस के उपरान्त धारा-178 में यह उपबंधित है हे कि जहाँ यह अनिश्चित हो कि कई स्थानीय क्षेत्रों में से किस में अपराध किया था, जहाँ अपराध चालू रहने वाला है और एक से अधिक स्थानीय क्षेत्रों में किया जाना चालू रहता है, जहाँ वह अपराध अंशतः एक स्थानीय क्षेत्र में और अंशतः दूसरे स्थानीय क्षेत्र में किया गया हो तथा जहाँ वह अनेक स्थानीय क्षेत्रो में किये गए कार्यों से बनता है वहाँ उस की जाँच या विचारण ऐसे स्थानीय क्षेत्रों पर अधिकारिता रखने वाले किसी भी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। धारा 179 में यह उपबंधित है कि जब कोई कार्य किसी की गई बात और किसी निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है तो उस की जाँच या विचारण दोनों में से किसी क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। इस के उपरान्त इस अध्याय में धारा-189 तक न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में उपबंध करती है। लेकिन यहाँ वसीक अहमद के मामले के लिए उन्हें पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अब हम वापस वसीक अहमद के मामले की और लौट चलें। वसीक अहमद ने जिस ऐजेंट से संपर्क किया वह मुम्बई में रहता है। वह कभी कानपुर या उत्तर प्रदेश नहीं आया। जब भी वसीक अहमद ने संपर्क किया उस से मुम्बई में ही फोन या डाक या इंटरनेट के माध्यम से संपर्क किया। उस ऐजेंट ने कोई भी कार्य कानपुर में नहीं किया। यहाँ तक कि वसीक अहमद द्वारा भेजा गया एक लाख रुपया भी उस ने मुम्बई में ही प्रा्प्त किया। इस तरह कानपुर के किसी भी मजिस्ट्रेट के न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के क्षेत्र में ऐजेंट ने ऐसा कोई काम नहीं किया जो उस के द्वारा किए गए अपराध से जुड़ा होता। इसी कारण से कानपुर के किसी न्यायालय को उस के मामले पर क्षेत्राधिकार नहीं था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 201 में यह उपबंधित है कि जब कोई परिवाद ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जो कि उस अपराध का संज्ञान करने केलिए सक्षम नहीं है तो वब परिवाद लिखित होने की स्थिति में परिवादी को परिवाद इस तरह का पृष्ठांकन कर लौटा देगा। परिवाद मौखिक होने की स्थिति में परिवादी को उचित न्यायालय में जाने का निर्देश देगा।
इसी स्थिति के अनुरूप वसीक अहमद को कानपुर के न्यायालय ने उन का परिवाद उस पर पृष्ठांकन कर कि वे अपना परिवाद मुम्बई के न्यायालय में प्रस्तुत करें वापस लौटा दिया गया।