तीसरा खंबा

वसीयत का पंजीकृत होना आवश्यक नहीं।

Willसमस्या-

राजीव ने देहरादून, उत्तराखण्ड से पूछा है-

मैं ने एक मुकदमे में तहसील में मेरे दादाजी की अपंजीकृत वसीयत प्रस्तुत की है लेकिन तहसीलदार ने मुझे कहा कि 2002 के बाद अपंजीकृत वसीयत को स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन उन्हों ने मुझे यह भी कहा कि यदि मैं किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय प्रस्तुत कर दूँ जिस में 2002 के बाद की वसीयत को स्वीकार किया गया हो तो मैं उसे स्वीकार कर के निर्णय दे दूंगा। कृपया ऐसा कोई निर्णय हो तो मुझे बताएँ।

समाधान-

देश के कानून के अनुसार वसीयत का पंजीकृत होना आवश्यक नहीं है, उस का किसी स्टाम्प पेपर पर होना भी आवश्यक नहीं है, उसे सादा कागज पर लिखा जा सकता है। यहाँ तक कि वसीयत का लिखित होना भी आवश्यक नहीं है, वह मौखिक भी हो सकती है। लेकिन जब भी वसीयत की जाए तो उसे प्रमाणित करना जरूरी है। इस के लिए यह आवश्यक है कि वसीयत करने वाले ने वसीयत दो गवाहों के सामने की हो और उन दो गवाहों की गवाही से यह साबित हो जाए कि वसीयतकर्ता द्वारा की गई वसीयत सही की गई थी।

हाँ तक आप का मामला है, मद्रास उच्च न्यायालय ने धनलक्ष्मी बनाम करुप्पुसामी के मुकदमे में दिनांक 19.02.2013 को निर्णय पारित किया है। इस मामले में वसीयत दिनांक 02.07.2003 को निष्पादित की गई थी जो अपंजीकृत थी। इस वसीयत को दो निचली अदालतों ने साबित नहीं माना था। किन्तु उच्च न्यायालय ने कहा कि दोनों निचली अदालतों ने इस वसीयत को साबित न मान कर त्रुटि की है। उच्च न्यायालय ने इस वसीयत को स्वीकार किया है। ऊपर मुकदमे के शीर्षक को क्लिक करने पर प्राप्त हो जाएगा आप इसे प्रिंट कर के न्यायालय में तहसीलदार को प्रस्तुत कर सकते हैं।

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