तीसरा खंबा

वसीयत को पंजीकृत कराना लाभकारी है, वसीयत वसीयतकर्ता के देहान्त पर प्रभावी होगी।

वसीयत कब करेंसमस्या-

दरभंगा, बिहार से गोपाल कुमार ने पूछा है –

मेरी ममेरी नानी जी ने अपने नाम से 1988 में एक मकान ख़रीदा। 1990 में उनका देहांत हो गया। 1994 में मेरे ममेरे नाना जी का देहांत हो गया। उनकी एकमात्र संतान मेरे ममेरे मामा जी हैं।  मेरे ममेरे मामा जी की पत्नी जो की मेरी ममेरी मामी है। मेरे ममेरे मामा और ममेरी मामी जी की कोई भी अपनी संतान नहीं है उन्होंने सिर्फ एक लड़की को गोद लिया है, जिसकी शादी हो चुकी है और अपने पति के साथ रहती है।  मेरी ममेरी मामी जी का देहांत 2012 में हो गया। अब मेरे ममेरे मामा जी ने मेरी पत्नी के नाम उक्त मकान की रजिस्टर्ड वसीयत एक महिना पहले की है। मेरे ममेरे मामा जी के देहान्त के बाद प्रोबेट के दौरान क्या गोद ली हुई पुत्री अपना हिस्सा मांग सकती है?

समाधान-

प की समस्या अभी काल्पनिक है। मकान आप के नाम वसीयत किया गया है। इस वसीयत को पंजीकृत करा लें तो बेहतर है।

सीयत को आप के ममेरे मामा जी अपने जीवनकाल में कभी भी बदल सकते हैं। यदि वसीयत नहीं बदली गई तो उक्त मकान वसीयत के आधार पर आप को प्राप्त हो जाएगा।

प के ममेरे मामा की पुत्री व आप की ममेरी मामी आप के ममेरे मामा की उत्तराधिकारी हैं और इस आधार पर वे प्रोबेट के दौरान आपत्ति प्रस्तुत कर सकती हैं। आपत्ति प्रस्तुत करने में किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। तब आप को वसीयत को सही साबित करना होगा। यदि वसीयत रजिस्टर्ड होगी तो आप को अपना दावा साबित करने में आसानी होगी।  यदि उस समय आप वसीयत को सही साबित कर सके तो उक्त मकान आप को प्राप्त हो जाएगा।

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