1. लघुवाद न्यायालय
प्रत्येक परगने के मुखिया को ग्राम स्तर पर 10 रुपए तक के मामलों का निपटारा करने के लिए न्यायालय के रुप में काम करने का अधिकार दिया गया, जिस का निर्णय बाध्यकारी होता था।
2. मुफस्सल दीवानी अदालत
दस रुपए से अधिक मूल्य के मामलों के लिए इन न्यायालयों का गठन किया गया जो सभी दीवानी मामलों का निर्णय कर सकती थीं। न्यायालय की अध्यक्षता कलेक्टर करता था। मुसलमानों के मामलों में कुरान की विधि और और हिन्दुओं के मामलों के लिए शास्त्रों में वर्णित विधि का प्रयोग किया जाता था। धार्मिक विधि की व्याख्या के लिए काजी और पंडित नियुक्त किए जाते थे। 500 रुपए से अधिक के मामलों में निर्णयों के विरुद्ध अपील सदर दीवानी अदालत में की जा सकती थी।
3. मुफस्सल निजामत अदालत
प्रत्येक जिले में अपराधिक मामलों के निपटारे के लिए इस अदालत का गठन किया गया था। इस की अध्यक्षता विद्वान काजी करता था। एक मुफ्ती और दो मौलवी इस काम में काजी की सहायता करते थे और सभी मुस्लिम विधि में पारंगत होते थे। कलेक्टर को इस न्यायालय के पर्यवेक्षण करने की शक्तियाँ प्रदान की गई थीं। हालांकि इस अदालत को सभी प्रकार के अपराधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार दिया गया था, लेकिन संपत्ति की जब्ती और मृत्यु दंड के लिए मामले अंतिम पुष्टिकरण के लिए सदर दीवानी अदालत को भेजे जाते थे।
5. सदर दीवानी अदालत
मुख्यतः यह अपील अदालत थी जिस में गवर्नर मुख्य न्यायाधीश के रुप में और उस की कौंसिल के सदस्य न्यायाधीशों के रुप में काम करते थे। यह मुफस्सल दीवानी अदालत द्वारा 500 रुपयों से अधिक के मामलों में निर्णयों की अपीलों की सुनवाई करती थी। अपील निर्णय से दो माह की अवधि में की जा सकती थी और 5 प्रतिशत की दर से न्यायालय शुल्क अदा करना होता था।
6. सदर निजामत अदालत
यह न्यायालय सभी अपराधिक मामलों की अपीलें सुनता था। जिस की अध्यक्षता नवाब द्वारा नियुक्त दरोगा करता था। दरोगा की सहायता के लिए प्रधान काजी, प्रधान मुफ्ती और तीन मौलवी नियुक्त किेए गए थे। इस न्यायालय को मुफस