तीसरा खंबा

विवाद होने पर भी पति पत्नी का उत्तराधिाकारी है, यदि उसे वसीयत से उत्तराधिकार प्राप्त करने से वंचित न कर दिया गया हो।

समस्या-

इति श्रीवास्तव ने रांची , झारखंड से समस्या भेजी है कि-

मेरी माता का देहांत 2013 में हुआ, वे माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश में सहायक अध्यापिका के पद पर पिछले 30 सालों से अधिक से कार्यरत थीं। 2015 में वह रिटायर होने वाली थीं। उनकी मृत्यु के बाद उनकी तीन पुत्रियों में से किसी को भी अब तक उनके सेवा से जुड़ी कोई भी राशि प्राप्त नहीं हुई है। जब मैं जे.डी. ऑफिस गई तो मुझे यह बताया गया कि तीनों लड़कियों में से किसी एक को नौकरी मिलेगी और मेरे पिता को पेंशन मिलेगी हालांकि मेरी माता के अन्य बकाया के सम्बंध में कोई बात नहीं की गई। मेरी माता का मेरे पिता से कोई लेना-देना नहीं था, हालांकि दोनों में तलाक नहीं हुआ था, और माँ की सेवा पंजिका में भी उनका नाम है जिसे वो हटाना चाहती थीं लेकिन हटा नहीं सकीं। मेरे पिता कोऑपरेटिव सोसायटी, इलाहाबाद में क्लर्क हैं। मेरी माँ की मृत्यु के समय हम तीनों बहने बेरोजगार थीं और माँ के रिश्तेदारों के घर में रहती थीं। हालांकि 2015 में मुझे केंद्र सरकार में नौकरी मिल गई। पर अन्य दोनों बहनें कम सैलरी पर प्राइवेट जॉब करती हैं और कभी-कभी छोड़ना भी पड़ता है। माँ की जगह पर नौकरी हम तीनों ही नहीं करना चाहते हैं। हम तीनों अविवाहित हैं। अभी हमारी माँ की एक पैतृक अचल सम्पत्ति बिकी उसमें से माँ के रिश्तेदारों, जिनका हिस्सा भी उस सम्पत्ति में था, ने यह कहकर की कानून के अनुसार उनको एक हिस्सा मिलेगा, हमारे शेयर में से पिता को एक हिस्सा दिया जबकि हमलोग उनसे कोई मतलब नहीं रखते। अब मेरे सवाल हैं कि, मेरी माँ के विभाग से नियमतः हम तीनों को किस-किस मद में पैसे मिलने हैं। और एल आई सी तो मुझे पता क्या उनका कोई और भी देय बनता है? उनके पैसे को प्राप्त करने के लिए क्या कागजी कार्रवाई करनी होगी? कैसे मैं अपने पिता को कुछ भी लाभ प्राप्त होने से रोक सकती हूँ, क्योंकि मेरी माँ उनको पैसे नहीं देना चाहती थीं, उनका नाम सेवा पंजिका में सिर्फ इसलिए देना पड़ा क्योंकि हमतीनों नाबालिग थे। और पिता के नाम के नीचे हमतीनों के नाम भी लिखे हैं। एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि क्या मैं माध्यमिक शिक्षा परिषद, इलाहाबाद के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती हूं कि उन्होंने हमारा देय अभी तक नहीं दिया, मेरी माँ की मृत्यु के 4 साल बाद भी! यदि मेरी नौकरी न लगती तो हम तीनों बहनों की हालत दयनीय होती क्योंकि हमारे पिता ने कभी हम पर या माँ पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि हम लड़कियां थे। लेकिन मेरी माँ के सारे पैसे लेने के लिए वो प्रयास कर रहे हैं।

समाधान-

प की समस्या और आप के तर्क वाजिब हैं लेकिन संपत्ति आदि का जो भी निपटारा होना है वह कानून के अनुसार ही होना है। आप की माताजी की मृत्यु के समय तक उन का आप के पिता से तलाक नहीं हो सका था। इस कारण आप की माताजी के उत्तराधिकारियों में आप तीनों बहनों के साथ साथ आप के पिता भी शामिल हैं। उन की जो भी बकाया राशि विभाग, बीमा विभाग, जीवन बीमा, प्रावधायी निधि विभाग और बैंक आदि में मौजूद हैं उन्हें प्राप्त करने का अधिकार आप चारों को है। आप चारों प्रत्येक ¼ हिस्सा प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

यदि आप की माताजी का पिता से विवाद चल रहा था तो उन्हें चाहिए था कि वे अपनी वसीयत लिख देतीं जिस में अपनी तमाम संपत्ति को आप तीनों बेटियों को वसीयत कर सकती थीं और आप के पिता को उत्तराधिकार से वंचित कर सकती थीं। लेकिन उन्हों ने ऐसा नहीं किया जिस के कारण आपके पिता भी उत्तराधिकार प्राप्त करने के अधिकारी हैं। उन्हें यह सब राशियाँ प्राप्त करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं हो सकता है लेकिन वे कानूनी रूप से अधिकारी हैं।

यदि कहीं या सभी स्थानों पर नामांकन आप के पिता का है तो वे यह सारी राशि प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि नोमिनी हमेशा एक ट्रस्टी होता है औऱ उस का कर्तव्य है कि वह राशि को प्राप्त कर के मृतक के सभी उत्तराधिकारियों में उन के अधिकार के हिसाब से वितरित करे। लेकिन अक्सर देखा गया है कि नोमिनी सारी राशि प्राप्त कर के उस पर कब्जा कर के बैठ जाता है और बाकी उत्तराधिकारियों को अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। इस कारण आप को चाहिए कि आप अपनी माताजी के विभाग, प्रावधायी निधि विभाग, कर्मचारी बीमा विभाग और जीवन बीमा व बैंक आदि को तीनों संयुक्त रूप से लिख कर दें कि नोमिनी होने पर भी आपके पिता को किसी राशि का भुगतान नहीं किया जाए क्यों कि ऐसा करने पर वे आप को आप के अधिकार से वंचित कर सकते हैं।

आप स्वयं अपनी माता जी के विभाग में जा कर संबंधित विद्यालय या जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से पता कर सकती हैं कि आप की माताजी की कौन कौन सी राशियाँ विभाग के पास बकाया हैं। उन राशियों का मूल्यांकन भी आप पता सकती हैं। यदि समस्या आए तो आप सूचना के अधिकार का उपयोग कर के विभाग से ये सूचनाएं प्राप्त कर सकती हैं। जब आप को पता लग जाए कि कौन कौन सी राशिया विभाग और अन्यत्र बकाया हैं तो आप उन सब के लिए जिला न्यायालय में उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकती हैं।  इस के साथ ही जिला न्यायालय में आवेदन कर के विभाग/ विभागों के विरुद्ध यह आदेश भी जारी करवा सकती हैं उत्तराधिकार प्रमाण पत्र बनने के पहले किसी को भी आप की माताजी की बकाया राशियों का भुगतान नहीं किया जाए।

इस मामले में उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आप को स्थानीय वकील की मदद लेनी होगी। इस कारण बेहतर है कि किसी अच्छे स्थानीय वकील से सलाह करें और उस के मुताबिक यह काम करें।

आप तीनों अनुकम्पा नियुक्ति नहीं चाहती हैं, आप के पिता की अनापत्ति के बिना आप  में से किसी बहिन को अनुकम्पा नियुक्ति मिल भी नहीं सकती थी। आप की अनापत्ति के बिना आप के पिता को नहीं मिलेगी। वैसे भी वे अब नौकरी प्राप्त करने की उम्र के नहीं रहे होंगे।

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