उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित कर देने मात्र से बवाल उठ खड़ा हुआ कि अविवाहित वयस्क स्त्री-पुरुष का आपसी सहमति से साथ रहना और यौन संबंध स्थापित करना अपराध नहीं है। हम देखें कि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत विवाह संबंधी अपराध क्या हैं? भा.दं.सं. का अध्याय 20 विवाह संबंधी अपराधों के बारे में है। धारा 493 से 498 तक इस के अंतर्गत आती हैं। हम एक-एक कर के इन का अध्ययन करते हैं ….
493. विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास-
इस तरह हम देखते हैं कि यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से विधिपूर्वक विवाहित न होने पर भी उस के साथ प्रवंचना कर के यह विश्वास दिलाता है कि वह उस के साथ विवाहित है और उस की पत्नी है और उस के साथ सहवास या मैथुन करता है तो उस के लिए दंड की व्यवस्था यह धारा करती है।
494. पति या पत्नी के जीवन काल में पुनः विवाह करना-
जो कोई पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा जिस में ऐसा विवाह इस कारण से शून्य है कि वह ऐसे पति या पत्नी के जीवनकाल में होता है, वह दोनों में से किसकी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेग, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अपवाद- इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिस का पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो।
और न किसी ऐसे व्यक्ति पर है, जो पूर्व पति या पत्नी के जीवन काल में विवाह कर लेता है, यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चातवर्ती विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक निरंतर अनुपस्थित रहा हो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है, परंतु ह तब जब कि ऐसा पश्चातवर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह होने के पूर्व उस व्यक्ति को, जिस के साथ ऐसा विवाह होता है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति की जानकारी, जहाँ तक कि उस का ज्ञान हो, दे दे।
इस धारा के अंतर्गत किसी भी विवाहित व्यक्ति द्वारा द्विविवाह को प्रतिबंधित किया गया है,यदि ऐसा कोई भी दूसरा विवाह व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत शून्य हो। इस तरह मुस्लिम विधि में चार पत्नियों के रहते पाँचवाँ विवाह तथा पत्नी के लिए दूसरा विवाह दंडनीय अपराध होगा। लेकिन यहाँ दूसरे विवाह का अर्थ विधि के अंतर्गत विवाह है। यदि कोई वयस्क पुरुष या स्त्री किसी अन्य वयस्क स्त्री या पुरुष के साथ बिना विवाह किए सहमति के साथ सहवास करता है तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय नहीं होगा।
495. वही अपराध पूर्ववर्ती विवाह को छिपा कर जिस के साथ पश्चातवर्ती अपराध किया जाता है-
इस धारा के अंतर्गत किसी विवाहित व्यक्ति द्वारा दूसरा विवाह किया जाता है और वह भी उस व्यक्ति से छिपा कर जिस से वह ऐसा दूसरा विवाह कर रहा है तो ऐसा अपराध इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है। इसे धारा 494 में दंडनीय अपराध से अधिक गंभीर माना गया है।
496. विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूर्ण कर लेना-
इस धारा के अंतर्गत कोई व्यक्ति बेईमानी से या कपटपूर्वक आशय के साथ किसी भी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा विवाह करने का नाटक करता है जो वास्तव में वैध विवाह नहीं है तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय होगा।
497. जार कर्म-
इस धारा की मूल बात यह है कि यदि कोई भी पुरुष किसी विवाहित स्त्री के साथ उस के पति की अनुमति के बिना या मौनानुकूलता के बिना मैथुन करता है तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडित होगा। लेकिन उस स्त्री जिस के साथ मैथुन किया गया है वह न इस धारा के अंतर्गत और न ही इस धारा के अंतर्गत अपराध करने के लिए दुष्प्रेरक के रूप में दंडित की जा सकेगी।
498. विवाहिता स्त्री को अपराधिक आशय से फुसला कर लेजाना या निरुद्ध रखना-
(धारा 497 व धारा 498 में मुझे आपत्तिजनक बात यह प्रतीत होती है कि इन में विवाहित स्त्री को उस के पति की संपत्ति माने जाने की गंध आती है)