तीसरा खंबा

वैकल्पिक उपाय होने पर रिट याचिका पोषणीय नहीं है।

समस्या-

राजगढ़, मध्यप्रदेश से ममता नामदेव पूछती हैं-

दालत के आदेशानुसार मेरे पति द्वारा मुझे धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भरण-पोषण की राशि 1500/- रुपए प्रतिमाह पिछले 36 माह से प्रदान की जा रही है। धारा 24 में अन्य अदालत द्वारा 30 माह पूर्व स्वीकृत अंतरिम भरण पोषण की राशि 1200/- रुपए प्रतिमाह बार बार मांगे जाने और अदालत के निर्देशों के बावजूद अभी तक नहीं दी गई है।  पेशी पर मेरे पति के हाजिर ना होने और उन के गवाहों के हाजिर ना होने के कारण मेरे पति का धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम विवाह विच्छेद का मुकदमा परिवार अदालत ने 3 माह पहले खारिज कर दिया है। खारिजी आदेश तथा मुकदमा चलने के दौरान दिए गए खर्चे व भरण पोषण व स्थाई पुनर्भरण के आवेदनों को को मेरे पति द्वारा अनुच्छेद 227 सपठित धारा 24/25/28 हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। मुझे उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखना है। मैं कोई नौकरी नहीं करती मेरी कोई आय नहीं है।  क्या धारा 24 अंतरिम भरण-पोषण की राशि को धारा 13 के खारिजी आदेश के साथ 32 माह बाद चुनौती दी जा सकती है? कृपया मार्गदर्शन दें।

समाधान-

प के पति ने सभी आदेशों के विरुद्ध रिट याचिका प्रस्तुत की है। रिट याचिका के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। इस कारण उसे प्रस्तुत किया जा सकता है। हालांकि अत्यधिक देरी कर के प्रस्तुत की गई रिट याचिका को उच्च न्यायालय स्वीकार नहीं करते हैं। इस मामले में 32 माह की देरी अत्यधिक देरी है और रिट याचिका को विचारार्थ भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

कोई भी रिट याचिका तब भी स्वीकार नहीं की जा सकती है जब कि उस मामले में याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो।  परिवार न्यायालय के किसी भी आदेश व निर्णय के विरुद्ध परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत अपील का प्रावधान है। इस तरह आप के मामले में अधिनियम के अंतर्गत अपील का वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है।  किसी भी वैकल्पिक उपाय के उपलब्ध रहते हुए किसी मामले में रिट याचिका स्वीकार्य नहीं हो सकती।  इस के लिए सर्वोच्च न्यायालय का United Bank Of India vs Satyawati Tondon & Ors. के मामले में on 26 July, 2010 को दिया गया निर्णय आप की सहायता कर सकता है। इसे आप यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकती हैं। 

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