महेशचंद्र ने पूछा है –
आज से 41 वर्ष पहले जब मेरे पहला लड़का हुआ तो मैं ने दो वर्ष का होने पर अपना लड़का अपने बड़े भाई को गोद दे दिया, क्यों कि उन के कोई सन्तान नहीं थी। बाद में 10-12 वर्ष बाद एक लड़की हुई। मेर लड़के को मेरे भाई ने अपने लड़के की तरह पाला, उसे पढ़ाया-लिखाया, उस की शादी भी की। अब उस लड़के के दो बच्चे हैं। उस के स्कूल में, राशनकार्ड में, वोटर आईडी आदि में पिता का नाम मेरे बड़े भाई का ही लिखा हुआ है। अब मेरे भाई की लड़की उन की संपत्ति में हिस्सा मांग रही है। वह कहती है कि लड़के को यहाँ से भगा दो और सारी संपत्ति मेरे नाम कर दो। पहले तो वह उसे अपना भाई मानती थी, अब उसे अपना भाई नहीं मानती। जब मैं ने अपना लड़का गोद दिया तब किसी तरह की लिखा-पढ़ी नहीं की थी। मेरा भाई अभी जीवित है, वह उसे बेटा तो मानता है मगर उन की नीति समझ से बाहर है, समझ नहीं आता कि वह क्या चाहते हैं? अब मुझे यह बताएँ कि उस लड़के को उस का हक मिलेगा या नहीं? और उस का हक कैसे मिल सकता है?
उत्तर –
महेश जी,
सब से पहले तो आप का प्रश्न यह है कि आप ने गोद देते समय कोई लिखा पढ़ी नहीं की थी, क्या उस के बावजूद भी आप के पुत्र को आप के बड़े भाई का गोद-पुत्र माना जाएगा?
आप के इस प्रश्न का उत्तर यह है कि किसी संतान को दत्तक देने या दत्तक ग्रहण करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि कोई लिखा-पढ़ी की ही जाए या उस का पंजीयन उप पंजीयक के कार्यालय में कराया ही जाए। हालाँकि आजकल राजकीय सेवा में रहते मृत्यु हो जाने पर आश्रितों की अनुकंपा नियुक्ति के लिए जो नियम बने हैं उन में से अनेक में यह आवश्यक कर दिया गया है कि दत्तक ग्रहण लिखित में तो होना ही चाहिए साथ में उस का पंजीयन भी होना चाहिए। यह इस लिए किया गया है जिस से बाद में कोई व्यक्ति दत्तक संतान होने के दस्तावेज बना कर मृतक कर्मचारी के बदले अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त न कर ले। लेकिन अन्य अधिकारों के लिए दत्तक ग्रहण का दस्तावेज होना और उस का पंजीकृत होना आवश्यक नहीं है।
यदि कोई दत्तक ग्रहण करने वाला पिता या फिर उस के देहान्त के उपरान्त उस का कोई उत्तराधिकारी अथवा अन्य कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के दत्तक ग्रहण को अमान्य कर उस पर आपत्ति करता है तो यह समस्या उत्पन्न हो सकती है कि दत्तक संतान किस तरह स्वयं के दत्तक ग्रहण किए जाने और दत्तक संतान होने को प्रमाणित करे?
दत्तक ग्रहण हिन्दू व्यक्तिगत विधि का एक महत्वपूर्ण अधिकार है। पहले यह परंपरागत विधि से शासित होता था। लेकिन 21 दिसंबर 1956 को हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम, 1956 प्रभावी होने पर उस के प्रावधानों से शासित होने लगा। इस कानून की धारा 5 में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि इस कानून के लागू होने के उपरांत किया गया कोई भी दत्तक ग्रहण इस कानून के उपबंधों के विपरीत होने पर शून्य माना जाएगा।
हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भ