इस बीच मेरे पास एक महिला अपनी सत्रह वर्षीय पुत्री को साथ ले कर आती है। विवाह को तेईस वर्ष हो चुके हैं। पुत्री ने बारहवीं की परीक्षा दी है और इंजिनियरिंग करना चाहती है। एक बड़ी पुत्री बाहर किसी कॉलेज में पढ़ रही है। पति दुकानदार हैं। विवाह के बाद से ही अच्छा दहेज न लाने के कारण सास ने उस के साथ दुर्व्यवहार किया। पति रोज शराब के नशे में घर लौटता है। महिने में दो-बार पति उस की पिटाई कर देता है। दोनों पुत्रियों के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं है। अब तक वह दोनों पुत्रियों की पढ़ाई का खर्च उठा रहा था। घर खर्च के लिए उतना ही देता है जितने में मुश्किल से खर्च चल जाए। एक छोटे मकान में वे रहते हैं जो महिला के स्वयं के नाम है। एक रात को पति ने महिला और बेटी के साथ मारपीट की। दोनों माँ बेटी ने एक कमरे में बन्द रह कर रात बिताई। अगले दिन माँ बेटी ने खुद को घर में बंद कर लिया और पति को अंदर न आने दिया। पति ने तीन चार दिन चक्कर लगाए लेकिन अब घर आना बंद कर दिया है। दस वर्ष पहले महिला की रिपोर्ट पर 498-ए का मुकदमा पति के विरुद्ध बना था। लेकिन पति ने तब अच्छे व्यवहार का वायदा कर समझौता कर लिया। पति का व्यवहार कुछ महिने ठीक रहा, उस के बाद फिर से मार पिटाई आरंभ। महिला अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती। लेकिन यह भी चाहती है कि पति उस की बेटियों की पढ़ाई, उन के विवाह और उस का व बेटियों के पालन पोषण का खर्च देता रहे। पति ने खर्च देने से हाथ खींच लिया है। वह जानता है कि महिने भर में ही पत्नी और बेटियाँ मोहताज हो जाएंगी। इस महिला के पास भी मायके से कोई संरक्षण नहीं है और वह इस स्थिति में भी नहीं कि इस उम्र में वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। होना भी चाहे तो भी उसे कुछ समय किसी न किसी की मदद मिलना जरूरी है। पति सारे हालात जानता है वह इसी तरह उन्हें ब्लेक मेल करता रहेगा।
कार्रवाई आरंभ करने के दो-तीन माह में ही वे मजबूर हो जाएंगी अपने अपने पतियों से समझौता करने लिए। वे हालात से समझौता कर लेंगी। पति उन्हें फिर से गालियां देने लगेंगे, फिर से उन के साथ मारपीट करेंगे। पत्नियां समझ जाएंगी कि गालियां खाकर, मारपीट सह कर पति की सेवा करते रहना ही उन के जीवन का सच है। नन्दिनी पढ़ी लिखी है वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। लेकिन उस के लिए उसे कुछ समय चाहिए। लेकिन तब तक वह पतिगृह त्याग कर कहां रहे? खुद को और बच्चे को कैसे बचाए रखे? दूसरी महिला के साथ भी यही समस्या है। दोनों महिलाएं जीना नहीं चाहतीं। मन करता है कि अपना जीवन समाप्त कर लें। लेकिन दोनों के बच्चे उन के प्रति ममता उन्हें रोक लेती है।
कानून के पास पतियों के विरुद्ध कार्यवाही करने और परिणाम आने में लगने वाले समय में पत्नियों और बच्चों के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। समाज तो पुरुष प्रधान है ही। वह ऐसी व्यवस्था क्यों करने लगा? किसी सरकार ने भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है जिस से पत्नी और बच्चों को इस काल में सरंक्षण मिल सके, पत्नी और बच्चों का जीवन बना रहे और बच्चों की पढ़ाई जारी रह सके। क्रूरता से महिलाओं और बच्चों के बचाव के सारे कानून इसी कारण से व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं। क्या सरकार और समाज को इस के लिए कोई व्यवस्था नहीं करना चाहिए? क्या इस पर कोई सोच भी रहा है?