श्री सुमित राय पूछते हैं, कि – – –
क्या पत्रकार को यह वैधानिक अधिकार है कि वह स्वयं अपने प्रमाणों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करा सके (भले ही अपराध से प्रभावित व्यक्ति स्वयं आगे आने से मना कर दें)?
उत्तर – – –
सुमित जी,
हम नहीं जानते कि आप पत्रकार हैं या नहीं। लेकिन किसी भी पत्रकार को किसी भी अपराध के मामले में कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। पत्रकारों को भी वे ही अधिकार हैं जो कि सामान्य नागरिकों को प्राप्त हैं। भारतीय दंड संहिता में अपराधों को संज्ञेय औऱ असंज्ञेय अपराधों की दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर उसे लेखबद्ध करे और सूचना देने वाले को पढ़ कर सुनाए और उस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर करवाए तथा इस सूचना का सार प्रथम सूचना रिपोर्ट की पुस्तक में दर्ज करे। इस तरह पंजीकृत की गई सूचना की एक प्रतिलिपि तुरंत सूचना देने वाले व्यक्ति को निशुल्क प्रदान करे। यदि किसी भी पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी इस तरह की सूचना को पंजीकृत करने से इन्कार करता है तो वह व्यक्ति ऐसी सूचना को डाक द्वारा लिखित में पुलिस अधीक्षक को प्रेषित कर सकता है। यदि पुलिस अधीक्षक यह समझता है कि सूचना में वर्णित अपराध घटित हुआ है तो वह वह स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को ऐसा अन्वेषण करने को निर्देशित करेगा।
इस तरह संज्ञेय अपराधों के मामले में कोई भी व्यक्ति चाहे वह भारत का नागरिक हो या नहीं पुलिस को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है। इस के लिए यह भी आवश्यक नहीं है कि उस व्यक्ति के पास कोई प्रमाण है अथवा नहीं है। यदि प्रमाण हैं तो वे प्रमाण भी वह पुलिस को दे सकता है, जिन का उपयोग पुलिस अन्वेषण में कर सकती है। संज्ञेय अपराध के सम्बंध में यह आवश्यक नहीं है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने वाला व्यक्ति स्वयं उस अपराध से पीड़ित है अथवा नहीं।
आप ने साथ ही कुछ अन्य प्रश्न भी पूछे हैं जिन का उत्तर आगे अन्य आलेखों में दिया जाएगा।