पिछले आलेख में हमने तनु गौड़ के प्रश्न के उत्तर में अपराधों का प्रसंज्ञान लिए जाने की परिसीमा की बात की थी। वहाँ प्रसंज्ञान शब्द का बहुत प्रयोग हुआ था। आज हम इसी पर बात करेंगे।
यह तो आप पिछले आलेख में जान चुके हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची के कॉलम सं. 4 में भारतीय दंड संहिता में वर्णित प्रत्येक अपराध के लिए यह अंकित किया गया है कि वह अपराध संज्ञेय है अथवा असंज्ञेय। इस से स्पष्ट है कि कोई अपराध संज्ञेय है या नहीं है इस बात को केवल विधि द्वारा ही निर्धारित किया जा सकता है। अब हम देखेंगे कि किसी अपराध के संज्ञेय होने और असंज्ञेय होने से दोनों के चरित्र में क्या अंतर आता है?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 में कुछ शब्दों को परिभाषित किया गया है। इसी धारा की उपधारा (क) में “संज्ञेय अपराध” को इस तरह परिभाषित किया गया है …
(क) “संज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिस के लिए और “संज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिस में, पुलिस अधिकारी प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसार वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है।
संज्ञेय मामलों में पुलिस को सूचना और अन्वेषण
इस तरह यह तो स्पष्ट हो गया है कि किसी भी संज्ञेय मामले में पुलिस किसी भी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है। संज्ञेय मामला ऐसा मामला है जिस में पुलिस किसी संज्ञेय अपराध का अन्वेषण करती है।
यदि किसी भी अपराध की सूचना कोई भी व्यक्ति पुलिस को देता है तो संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी दं.प्र.सं. की धारा 154 के अंतर्गत यदि सूचना मौखिक दी गई है तो वह उस के द्वारा अथवा उस के निर्देश के अनुसार लेखबद्ध की जाएगी और सूचना देने वाले को पढ़ कर सुनाई जाएगी, तदुपरांत उस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर कराए जाएंगे और उस का सार राज्य सरकार द्वारा विहित पुस्तक में रखा जाएगा। इस तरह पुलिस द्वारा लिखी गई सूचना की प्रतिलिपि सूचना देने वाले को तत्काल निशुल्क दी जाएगी।
यदि पुलिस ऐसी रिपोर्ट लिखने से इन्कार करती है तो व्यथित व्यक्ति ऐसी सूचना का सार लिखित में और डाक द्वारा संबद्ध पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है। यदि पुलिस अधीक्षक को समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का घटित होना प्रकट होता है तो वह स्वयं मामले का अन्वेषण कर सकता है या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी को उस अपराध के संबंध में अपराध का अन्वेषण करने का निर्दश देगा। अन्वेषण करने वाले अधिकारी को संबंधित पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी की सभी शक्तियाँ होंगी।
असंज्ञेय मामलों में पुलिस को सूचना और अन्वेषण
लेकिन यदि ऐसी सूचना किसी ऐसे अपराध के मामले में है जो कि असंज्ञेय अपराध है तो वह ऐसी सूचना का सार राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्ररूप और पुस्तक में लिखा जाएगा, और पुलिस अधिकारी सूचना देने वाले को मज