तीसरा खंबा

संपत्ति के विवाद में रिसीवर नियुक्त किया जा सकता है।

समस्या-

गोण्डा, उत्तर प्रदेश से देवेन्द्र नाथ  ने पूछा है –

मारे बाबा शहर के एक बड़े मन्दिर के सरवराकार थे। बाबा की मौत के बाद हमारे पिता और चाचा संयुक्त रूप से मन्दिर के सरवराकार हुए। विगत कुछ सालों से हमारे चाचा मन्दिर पर कब्जा कर लेने की नीयत रखने लगे तो मैनें अदालत में मुकदमा दायर कर स्टे आर्डर लिया जिसके मुताबिक मेरे पिता और चाचा संयुक्त रूप से मन्दिर की पूजा रहे है तथा मन्दिर में आने वाला चढ़ावा ले रहे हैं।  अब मेरे चाचा जो कि आपराधिक किस्म के व्यक्ति है तथा उनके पास गुंडे टाइप रिश्तेदारों की बहुतायत है।  वो मन्दिर को आने वाले नवरात्र में पूर्णतया कब्जा कर लेना चाहते हैं तथा धमकियां दे रहे हैं। जिसकी पूर्ण आशंका है।  रिसीवर नियुक्त करना क्या होता है तथा क्या यह सही होगा या फिर क्या अदालत हमें सुरक्षा मुहैया करा सकती है।

समाधान –

Code of Civil Procedureप ने यह नहीं बताया कि आप को पिता जी ने अदालत में जो वाद प्रस्तुत किया है उस का विषय क्या है? निश्चित रूप से आप के पिता जी ने मंदिर पर अपने अधिकार के बारे में वाद प्रस्तुत करते हुए यही आशंका प्रकट की होगी कि उन के भाई मंदिर पर एकाधिकार करना चाहते हैं और न्यायालय ने इसी बात पर स्थगन आदेश पारित किया होगा कि वर्तमान स्थिति बनाए रखी जाए।

दि कोई स्थगन आदेश है तो आपको चिंता किस बात की है। यदि न्यायालय के आदेश के विपरीत आप के चाचा कब्जा करने की कोशिश करते हैं तो यह न्यायालय के आदेश का उल्लंघन होगा। आप उस के विरुद्ध उसी न्यायालय में कार्यवाही कर सकते हैं।

फिर भी आप को आशंका है कि आप के चाचा बलपूर्वक आप के पिता जी को वहाँ से हटा देंगे तो आप के पिता जी इस आशंका के बारे में पुलिस को लिखित रिपोर्ट कर सकते हैं साथ में न्यायालय के आदेश की फोटो प्रति संलग्न कर के दें।

रिसीवर न्यायालय में चल रहे किसी मुकदमे से संबंधित संपत्ति के संम्बन्ध में नियुक्त किया जा सकता है। आप के मामले में भी रिसीवर की नियुक्ति की जा सकती है। इस के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 40 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। रिसीवर की नियुक्ति हो जाने पर वह मंदिर को अपने प्रबंध में ले सकता है।  वहाँ होने वाली आय का हिसाब रखेगा। आय को न्यायालय के आदेश के अनुसार वितरित किया जाएगा और जब तक रिसीवर कार्य करेगा उसे न्यायालय के आदेश के अनुसार नियमित शुल्क अदा की जाएगी जो कि संपत्ति से होने वाली आय से ही दी जाएगी।

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