तीसरा खंबा

सहदायिक संपत्ति की आय से निर्मित संपत्ति भी सहदायिक है।

rp_Hindu-Succession-199x300.jpgसमस्या-

राहुल ने अजमेर राजस्थान से पूछा है-

मेरे दादा जी के दो लड़के और तीन लड़कियाँ हैं। दादा जी के पास जो जमीन थी उसमें आधी पुस्तैनी थी  और आधी स्वअर्जित थी।|  दादा जी ने दोनों लड़को के बीच मे मार्च 1998 मे आपसी राजीनामे से जमीन का बँटवारा एक सादे कागज पर किया जिसमें दोनों लड़को का हिस्सा रखा और लड़कियों का हिस्सा नहीं रखा।  और इस कागज पर मेरे दादा जी के और उनके दोनों लड़को और दो गवाहों  के हस्ताक्षर हैं| और इस बटवारे के अनुसार जो दादा जी की पुस्तैनी जमीन  थी वो उनके बड़े लड़के को दी और जो स्वअर्जित थी उसको छोटे लड़के को दी। और इस बटवारे के अनुसार ही दोनों भाई कब्ज़ा करके कास्त करने लग गए।  फिर लगभग 3 माह बाद ही मेरे दादा जी को उनके छोटे बेटे ने बातो मे बहकाकर उस स्वअर्जित जमीन की वसीयत करा कर उसको रजिस्टर्ड करवा लिया।  इस बात से उनका बड़ा लड़का (मेरे पिताजी) बिलकुल अनजान था। मेरे दादा जी का देहांत 2012  में होने के बाद इस बात का पता चला। अब मेरे दादा जी के देहांत के पश्चात मेरे पिताजी के हिस्से की जमीन में दूसरे भाई और तीनो बहनो का नाम भी लग गया है।  जबकि मेरे चाचा के हिस्से में वसीयत के अनुसार केवल मेरे चाचा का नाम ही लगा है।  अब मेरा चाचा मेरे पिताजी के हिस्से की जमीन में से भी बँटवारा करना चाहता है।  मेरे पापा के पास केवल सबूत के रूप में वो सादा कागज ही है।  अब मेरे पापा को अपना हिस्सा पाने के लिए क्या करना होगा?  क्या मेरे बुआजी (पिताजी की बहने) उनका हिस्सा मेरे पापा के पक्ष में कर सकती हैं? और अगर ऐसा हो सकता हैं तो  इसमें लगभग कितना खर्च आएगा | कागज के बटवारे के अनुसार मेरे पिताजी के हिस्से में लगभग 22  बीघा जमीन है।  प्लीज  मेरे पिताजी के साथ हो रहे इस अन्याय से बचाने का रास्ता बताइये।

 

समस्या-

मारा उत्तराधिकार का कानून ही न्याय की अवधारणा के विपरीत है। इसी कारण अक्सर लोगों के साथ अन्याय होता है और वे न्याय प्राप्त करने के लिए सारा जीवन अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं। जो पुश्तैनी जमीन है उस में जन्म से ही पुत्रों का अधिकार बन जाता था। जब कि पुत्रियों का भरण पोषण के अतिरिक्त कोई अधिकार नहीं होता था। फिर उस में पुत्रियों को भी उत्तराधिकार प्राप्त होने लगा। 2012 में जब आप के दादा जी का देहान्त हुआ तब पुत्रियों को भी जन्म से ही पुश्तैनी संपत्ति में वही अधिकार प्राप्त हो चुका था जो कि पुत्रों को है। इस कारण से पुश्तैनी संपत्ति में तो दोनों पुत्रों और पुत्रियों को समान अधिकार प्राप्त है। उस के सीधे सीधे पाँच हिस्से होंगे। तीन पुत्रियों के और दो पुत्रों का। 1/5 हिस्सा आप के चाचा का होगा और इतना ही आप के पिता का और आप की बुआओं के। यदि तीनों बुआएँ अपना हिस्सा आप के पिता जी को दे दें तो उन के पास पुश्तैनी जमीन का 4/5 हिस्सा हो सकता है।

सहदायिक संपत्ति की आय से निर्मित संपत्ति भी सहदायिक है। इस कारण स्वअर्जित भूमि पर यह आपत्ति उठायी जा सकती है कि आप के दादा जी के पास पुश्तैनी भूमि की आय के सिवा और कोई आय नहीं थी। स्वअर्जित भूमि उसी पुश्तैनी से हुई आय से खरीदी गयी। यदि कोई संपत्ति पुश्तैनी भूमि की आय से खरीदी जाती है तो वह भी पुश्तैनी ही होती है। इस तरह आप के दादा जी के पास कोई स्वअर्जित भूमि नहीं रह जाती है। आप के पिताजी को इसी तरह का प्रतिवाद अपने पक्ष में खड़ा करना होगा। आप के पिता जी के पास यदि पूरी भूमि का आधा हिस्सा है तो वे इस विवाद के चलते अपने कब्जे की भूमि पर काबिज रह सकते हैं। इस तरह के मुकदमे बहुत लंबे चलते हैं। लड़ने वाले थक जाते हैं और एक ही परिवार के होने के कारण किसी न किसी स्तर पर आपसी समझौता हो जाता है।

हमारी राय है कि आप इस मामले में किसी अच्छे स्थानीय वकील से राय कर के आगे बढ़ें। बहुत कुछ आप के वकील की काबिलियत और मेहनत पर ही आप की लड़ाई का परिणाम निर्भर करेगा।

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