स्वयं अपनी पैरवी करने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
दिनेशराय द्विवेदी
रमेश जी का दूसरा प्रश्न निम्न प्रकार है ….
प्रश्न 2 . क्या हमारे देश किसी नागरिक के पास वकील करने के लिए पैसे नहीं हों तो उसे सरकारी वकील मुहैया कराया जाए? और यदि सरकारी वकील का रवैया विरोधी पक्ष के प्रति झुकाव हो और पक्षकार स्वयं अपने मामले की पैरवी करे, तो उसके लिए शिक्षा योग्यता क्या होनी चाहिए? और उसे कौन सी भाषा आनी चाहिए ?
उत्तर – – –
रमेश जी के पहले प्रश्न के उत्तर में यह स्पष्ट हुआ था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने मामले की पैरवी करने का अधिकार है और वह अपने मामले की पैरवी स्वयं कर सकता है। लेकिन यह उतना आसान नहीं है। एक तो पक्षकार को कानून की जानकारी नहीं होती। वह वादों और प्रार्थना पत्रों में किए जाने वाले अभिवचनों में क्या होना चाहिए इस से अनभिज्ञ होता है। तथ्य क्या हैं और साक्ष्य क्या हैं, इस में भेद करना उस के लिए दुष्कर होता है। किस तरह किसी तथ्य को साबित किया जा सकता है इस से वह अनभिज्ञ होता है। फिर भी यदि कोई व्यक्ति अपनी पैरवी खुद ही करना चाहता है तो उसे किसी भी योग्यता की आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह निरक्षर ही क्यों न हो अपने मामले की पैरवी स्वयं कर सकता है। मेरा स्वयं का अनुभव यह है कि स्वयं पैरवी करने से घातक कुछ भी नहीं है। हम वकील लोग भी जब अपना खुद का मुकदमा होता है तो स्वयं उस की पैरवी करना पसंद नहीं करते। निश्चित रूप से हम अपने मुकदमे में निरपेक्ष रह कर काम नहीं कर सकते, मुकदमे के साथ हमारा भावनात्मक लगाव होता है और हमें अपने पक्ष के तथ्य और तत्व बहुगुणित हो कर दिखाई देते हैं जब कि अपने विरोधी तथ्य और तत्व दिखाई देना बंद हो जाते या फिर मामूली लगते हैं। इस से बहुधा जिस मुकदमे में पक्षकार का मामला मजबूत होता है वहाँ भी हार का नतीजा देखने को मिलता है। इस कारण यह बेहतर है कि वह किसी व्यवसायिक व्यक्ति अर्थात वकील की मदद प्राप्त करे।
फौजदारी मुकदमे में जहाँ अक्सर सरकार द्वारा मुकदमा चलाया जाता है वहाँ आरोप पक्ष की पैरवी सरकारी वकील किया करते हैं और आरोपी अपने लिए वकील की व्यवस्था स्वयं करता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति स्वयं वकील करने में असमर्थ हो तो वह न्यायाधीश से यह प्रार्थना कर सकता है कि उसे वकील प्रदान किया जाए। अनेक वकील स्वेच्छा से सरकारी शुल्क पर अथवा बिना किसी शुल्क के न्यायमित्र का कार्य करने को तैयार रहते हैं। न्यायालय के पास ऐसे वकीलों की सूची होती है। अभियुक्त इस सूची में से अपने वकील का चुनाव कर सकता है। यदि मुकदमे के किसी भी स्तर पर पक्षकार को यह लगता है कि उसे न्यायमित्र के रूप में प्रदान किया गया वकील ठीक से पैरवी नहीं कर पा रहा है या उस का झुकाव विरोधी पक्ष की ओर है तो अभियुक्त न्यायालय से वकील बदलने के लिए प्रार्थना कर सकता है।
दीवानी मामलों में ऐसा कोई नियम नहीं है कि किसी व्यक्ति को वकील सरकार की और से उपलब्ध कराया जाए। लेकिन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं, नाबालिग बच्चों और कम आय वाले लोगों को वकील मुहैया कर