समस्या-
मेरी शादी 26 फरवरी 2011 को हिंदू रीति रिवाजों के साथ संम्पन्न हुई थी। मेरे पति और मेरे ससुर दोनो इंडियन एयर फोर्स मे ऑफीसर हैं। जब से मेरा ये रिश्ता पक्का हुआ तब से ही मेरे ससुराल वालों ने मेरे घर वालों (मैके) से मांग करनी शुरू कर दी। मेरे पिता ने उनकी सब मांगें पूरी की क्यों कि मेरी शादी के कार्ड बाँट दिए गये थे। मेरे ससुराल वालों ने हर बात पर अपनी मांग रखी और जब भी मेरे पिता ने असमर्थता जताई तो मेरे ससुराल वालों ने रिश्ता तोड़ने की धमकी दी। समाज में अपनी इज़्ज़त बनाए रखने के लिए उनकी हर मांग को पूरा किया। मेरे पिता ने शादी में 80 लाख से ऊपर का खर्च किया। शादी हो जाने के बाद जब मेरे पति जम्मू कश्मीर चले गये। मुझे कहा कि क्वार्टर मिलने के बाद वे मुझे ले जाएंगे। तब तक में अपने सास ससुर के पास रहने लगी। मेरी सास ने मेरे पति के जाने के बाद ही मेरे उपर ताने कसने शुरू कर दिए। मेरी सास कहने लगी कि मेरे पति और मेरा बेटा दोनों इंडियन एयरफोर्स में ऑफीसर है उसके हिसाब से तुम कुछ भी दहेज नहीं लाई हो। तुम मेरे बेटे के काबिल नहीं हो। अपने मैके जाओ ओर ओर ज्यादा दहेज लेकर आओ। मैं ने अपने मैके में किसी को कुछ नहीं बताया क्यूकी मेरे पिता दिल के मरीज थे। और उन्हों ने बहुत कठिनाई से मेरी शादी की थी। मैं अपनी सास के ताने चुपचाप सुनती रही। महीने बाद मुझे मेरे पति जम्मू ले गये, वहाँ जाकर मैं और मेरे पति अच्छा जीवन काटने लगे। वहाँ पर भी मेरी सास फोन करके मुझे बहुत सुनाती थी। जम्मू जाने के 1 महीने बाद मैं अपने ससुराल वापस आई। वापस आने के 2 दिन बाद मेरी सास फिर से और दहेज की मांग करने लगी और कहने लगी कि अपने पिता को फोन करों और उन्हें और दहेज की मांग करो। जब मेरी सास ने देखा कि मैं अपने पिता को कुछ नहीं बोल रही हूँ तो मेरे ससुर ने मेरे पिता को फोन करके ये कहकर बुलाया की उन्हें मेरे पिता से कुछ काम है। मेरे पिता जब मेरी ससुराल आए तो मेरे सास ससुर ने मिलकर उन्हें बहुत अपमानित किया और धन की माँग करते हुए उनसे उनकी प्रॉपर्टी मे तीसरा हिस्सा मांगा और उन्हों ने धमकी दी की अगर उनकी माँग पूरी नहीं हुई तो वो अपने बेटे को कहकर मुझे डाइवोर्स दिलवा देंगे। ये बात सुनते ही मेरे पिता सदमे में आ गये और चुपचाप घर चले गये। घर पहुँच कर रोने लगे, उनको इतना दुःख पहुँचा कि अगले दिन ही उनको हार्ट अटेक आ गया। मेरे ससुराल वालों को जब ये बात पता चली तो उन्होने मेरी माँ को कहा की ये बात किसी को मत बताना हम तुम्हारी बेटी को लड़के के साथ भेज देंगे। वो बेटे के साथ खुश रहेगी। कुछ महीने ठीक रहा। लेकिन कुछ महीने बाद फिर वही ड्रामा शुरू हो गया। मैं जब भी ससुराल आती या अपने पति के साथ रहती तो हर बार मुझे डाइवोर्स देने की धमकी दी जाती। मेरे ससुराल वाले जब फोन पर मेरे पति से बात करते थे तो मेरे पति बेवजह की बातों पर मुझसे लड़ते और मुझे मारते थे। जब मेरे ससुराल वालों का फोन नहीं आता था और मेरे पति से उन की बात नहीं होती थी तो मेरे पति मुझे खुश रखते थे। अब जब मैं और मेरे पति छुट्टी ले कर मेरे सास ससुर के घर आ रहे थे कि मेरे पति ने कहा की तुम अपने मैके चली जाओ और मैं अपने घर जाता हूँ। मेरी माँ नहीं चाहती कि तुम मेरे साथ घर चलो। मैं उन्हें समझा कर तुम्हे लेने आ जाउंगा। मैं अपने मैके आ गयी। मेरे पति मुझसे फोन पर बात करते थे। जब मैं ने आने की बात की तो उन्हों ने कहा कि मेरी माँ ने मुझे तुमसे बात न करने और तुमसे ना मिलने की कसम दी है। और कुछ दिन बाद ही मेरे पति ने मुझे डाइवोर्स पीटिशन भिजवा दी। मैं डाइवोर्स नहीं चाहती। मैं ये जानना चाहती हूँ कि डाइवोर्स किन आधारों पर हो सकता है अगर डाइवोर्स लड़का पक्ष चाहता है तब? मुझे मेरे अधिकार जानने हैं कि मेरे क्या अधिकार हैं? मैं डाइवोर्स नहीं देना चाहती। साथ ही मुझे ये जानकारी भी चाहिए कि हमारी एयर फोर्स में क्या रूल ओर रेग्युलेशन है इस मैटर को ले कर। मुझे कोई ऐसी हेल्पलाइन नंबर्स भी चाहिए जिसका मैं समय आने पर उपयोग कर अपने लिए मदद पा सकूँ।
-खुशबू, नोएडा, उत्तर प्रदेश
समाधान-
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 में वे आधार बताए गए हैं जिन से एक हिन्दू पुरुष विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है। ये निम्न प्रकार हैं-
- विवाह हो जाने के उपरान्त जीवन साथी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक रुप से यौन संबंध स्थापित किया हो।
- जीवन साथी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया हो।
- विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से कम से कम दो वर्ष से लगातार जीवन साथी का परित्याग कर रखा हो। यहाँ परित्याग बिना किसी यथोचित कारण के या जीवनसाथी की सहमति या उस की इच्छा के विरुद्ध होना चाहिए जिस में आवेदक की स्वेच्छा से उपेक्षा करना सम्मिलित है।
- जीवनसाथी द्वारा दूसरा धर्म अपना लेने से वह हिन्दू न रह गया हो।
- जीवनसाथी असाध्य रूप से मानसिक विकार से ग्रस्त हो या लगातार या बीच बीच में इस प्रकार से और इस सीमा तक मानसिक विकार से ग्रस्त हो जाता हो कि जिस के कारण यथोचित प्रकार से उस के साथ निवास करना संभव न रह गया हो।
क. यहाँ मानसिक विकार का अर्थ मस्तिष्क की बीमारी, मानसिक निरुद्धता, मनोरोग विकार, मानसिक अयोग्यता है जिस में सीजोफ्रेनिया सम्मिलित है.ख. मनोरोग विकार का अर्थ लगातार विकार या मस्तिष्क की अयोग्यता है जो असाधारण रूप से आक्रामक होना या जीवन साथी के प्रति गंभीर रूप से अनुत्तरदायी व्यवहार करना है, चाहे इस के लिए किसी चिकित्सा की आवश्यकता हो या न हो।
- जीवनसाथी किसी विषैले (virulent) रोग या कोढ़ से पीड़ित हो।
- जीवनसाथी किसी संक्रामक यौन रोग से पीड़ित हो।
- जीवनसाथी ने संन्यास ग्रहण कर लिया हो।
- जीवनसाथी के जीवित रहने के बारे में सात वर्ष से कोई समाचार ऐसे लोगों से सुनने को न मिला हो जिन्हें स्वाभाविक रूप से इस बारे में जानकारी हो सकती हो।
ऊपर वर्णित आधारों के अतिरिक्त विवाह के पक्षकारों के बीच न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के उपरान्त एक वर्ष या अधिक समय से सहवास आरंभ न होने या वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री पारित होने के उपरान्त एक वर्ष या अधिक समय से वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना न होने के आधारों पर भी विवाह विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकती है।
आप ने अपने अधिकार जानना चाहे हैं। आप के पति ने आप के विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने हेतु आवेदन कर दिया है। आप इस आवेदन के लंबित रहने की अवधि के लिए अपने पति से निर्वाह के लिए प्रतिमाह धनराशि प्राप्त करने तथा न्यायालय व्यय प्राप्त करने के लिए धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पहली सुनवाई के समय ही आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं, जिसे पहले निर्णीत किया जाएगा। आप निर्वाह राशि प्राप्त करने के लिए धारा-125 दंड प्रक्रिया संहिता तथा महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी न्यायालय के समक्ष पृथक से आवेदन कर सकती हैं।
दहेज मांगे जाने और क्रूरता पूर्ण व्यवहार करने के लिए आप अपने पति और उस के रिश्तेदारों के विरुद्ध पुलिस को शिकायत प्रस्तुत कर सकती हैं। आप को या आप के ससुराल वालों को विवाह तय होने से ले कर आज तक जो भी भेंट नकद राशि तथा वस्तुओं के रूप में दी गई हैं वह सभी आप का स्त्री-धन है। आप तुरंत इन्हें लौटाए जाने की मांग कर सकती हैं और न लौटाए जाने पर पुलिस शिकायत कर सकती हैं। पुलिस द्वारा शिकायतें न सुने जाने पर आप न्यायालय में अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकती हैं।