आप के मामले में जिन लोगों को जिस भूमि से हटाया गया है वे सभी अनधिकृत रूप से उस भूमि पर काबिज थे, अतिक्रमी थे। अतिक्रमी को हटाना राज्य और नगर निगम का कर्तव्य है। उन्हों ने सब को हटा दिया। यह अलग बात है कि नगर निगम ने हटाए जाने वालों को जबरन वहाँ से हटाने के बजाए कोई स्थान रहने को दिया है। वस्तुतः जिन लोगों को वहाँ से हटाया गया है उन का कोई अधिकार नहीं बनता है कि राज्य और नगर निगम उन्हें बसने के लिए भूमि दे। नगर निगम ने भूमि दी है तो यह उपकार है, किसी का अधिकार नहीं है। यह आप अच्छी तरह जानते हैं कि यदि किसी के पास कोई कानूनी या संवैधानिक अधिकार नहीं है तो वह न्यायालय से कोई राहत प्राप्त नहीं कर सकता।
नगर निगम ने जिन लोगों को हटाया है उन में से कुछ को जमीन दे दी और कुछ को नहीं दी। जिन को जमीन मिल गई उन्हें कोई परेशानी नहीं है। परेशानी उन्हें है जिन्हें जमीन नहीं मिली है। नगरपालिका पर जितना हक हटाए जाने वाले लोगों का है उतना ही हक उन लोगों का भी है जिन के पास नगर में रहने को कोई मकान नहीं है, या मकान बनाने को कोई भूमि नहीं है। एक व्यक्ति सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर के मकान बना कर अपराध करता है और फिर हटाए जाने पर बदले में भूमि चाहता है। यदि इस अधिकार को मान भी लिया जाए तो क्या जिन लोगों ने अतिक्रमण न कर के कोई अपराध नहीं किया और जो किराए के मकानों में निवास कर रहे हैं, उन का अधिकार इन अपराध करने वालों से अधिक बड़ा नहीं है? क्या इस तरह सभी बेघर लोगों को आवास हेतु भूमि बिना किसी मूल्य के उन लोगों से पहले नहीं मिल जानी चाहिए जिन्हों ने अतिक्रमण करने का अपराध किया है? कोई व्यक्ति अतिक्रमण करने में महारत हासिल कर लेता है और अतिक्रमण कर के मकान बनाता है फिर उस में निवास करने के स्थान पर उसे किराए पर उठा देता है। तो क्या जिस व्यक्ति ने अतिक्रमण किया है उस से अधिक अधिकार उस व्यक्ति का नहीं है जो किराए पर रहता है? आशा है आप स्वयं इन प्रश्नों का उत्तर अपने मन में खोजने का प्रयास करेंगे।
वैसे तो राज्य का कर्तव्य है कि वह सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण न होने दे। पर राज्य इस कर्तव्य को नहीं निभाता। जब अतिक्रमण लम्बे अर्से तक बना रहता है तो राज्य उस का सर्वे कराता है कि कौन कब से कितनी भूमि पर काबिज है। इस सर्वे में जो लोग किराए से रहते हैं उन का नाम दर्ज हो जाता है क्यों कि मौके पर कब्जा उसी का होता है। यदि कोई उस मकान का स्वयं को मालिक कहता है तो गलत कहता है क्यों कि जो जमीन उस की है ही नहीं उस का मालिक वह कैसे हो सकता है। आप की सारी समस्या सर्वे की है। आप का कहना है कि सर्वे गलत हुआ है। और उस गलत सर्वे के आधार पर गलत भूमि आवंटन हो रहा है। आप ऐसे सर्वे को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। इस के लिए आप को दीवानी न्यायालय में दावा करना होगा। वहाँ आप को साबित करना होगा कि सर्वे गलत है और सही स्थिति क्या है? यदि आप इस तरह न्यायालय से सर्वे को सही कराने में कामयाब होते हैं, तो हो सकता है कि न्यायालय नगर निगम को आप के मामले में उचित निर्णय लेने का आदेश दे। इस से अधिक आप को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिल सकती। आप के और आप के साथियों के साथ वास्तव में अन्याय हुआ है तो आप सभी संगठित होइये। राजनैतिक रूप से आंदोलन कीजिए तो उस का हल निकल सकता है।