दूसरी टिप्पणी श्री सोमेश्वर की थी जो इस तरह है …..
“मात्र अदालतों की संख्या बढ़ जाने से समस्या हल नहीं हो सकती, इसके लिये न्यायिक प्रक्रिया में सुधार तथा वकीलों द्वारा सहयोग भी अपेक्षित है”
मैं श्री सोमेश्वर जी की बात से सहमत हूँ। लेकिन इस बात पर हमेशा जोर देता हूँ और जोर देता रहूँगा कि अदालतों की संख्या पर्याप्त से कुछ अधिक होनी चाहिए। न्याय एक ऐसा काम है जो जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में नहीं होना चाहिए। न्यायाधीश का सारा ध्यान मुकदमे की हर बात पर होना चाहिए। मान लीजिए किसी साक्षी को परीक्षित किया जा रहा है। उस के बयान होने के समय न्यायाधीश का सारा ध्यान गवाह पर होना चाहिए, कि उस के हाव-भाव कैसे हैं? प्रश्न के प्रति उस की प्रतिक्रिया कैसी रही? आदि आदि। इसी तरह जब वकील न्यायाधीश के समक्ष अपने तर्क प्रस्तुत करें तो उन्हें वह ध्यान से ग्रहण करे। बीच में कुछ प्रश्न और शंकाएँ उठें तो उन्हें भी वह वकीलों के सामने रखते हुए उन प्रश्नों और शंकाओं का जवाब प्राप्त करे। न्याय एक तरफा कार्य नहीं है। वह एक द्वंद्वात्मक कार्य है जहाँ न्यायाधीश को वाद और प्रतिवाद के बीच संवाद खोजना पड़ता है। फिर न्याय होने पर वादी और प्रतिवादी, अभियोजक और अभियुक्त को अंदर से यह महसूस होना चाहिए कि वाकई न्याय हुआ है तभी न्याय का सम्मान और गरिमा बनी रह सकती है। यह नहीं कि एक अभियुक्त यह सोचे कि उस ने कैसे न्यायाधीश और न्याय की प्रक्रिया में सम्मिलित लोगों को बेवकूफ बनाया और खुद को बचा लिया। इस से उस की खुद की निगाह में भी न्याय का कोई सम्मान नहीं रहता है।
लेकिन अभी क्या हो रहा है? जिस मुकदमे का निर्णय तीन माह में होना चाहिए उसे बीस वर्ष लग रहे हैं। न्यायालयों पर इतना दबाव है कि न्यायाधीश वकीलों की बहस सुन रहा है। चार वकील पीछे खड़े हैं कि कब न्यायाधीश का ध्यान बहस से हटे और वे अपने मुकदमे की ओर उस का ध्यान आकर्षित करें। रीडर कुछ मुकदॉमों में जवाब आदि ले रहा है और मनमानी तारीखें दे रहा है। एक टाइपिस्ट अलग बैठा किसी गवाह के बयान दर्ज कर रहा है। यदि अदालत को दो टाइपिस्टों की सुविधा है तो दोनों एक साथ गवाहों के बयान दर्ज कर रहे हैं। जिन पर जज का कोई ध्यान नहीं है। जब कि कानून यह कहता है कि गवाही खुद न्यायाधीश को अंकित करनी चाहिए या फिर खुद बोल कर टाइपिस्ट को लिखानी चाहिए। कुछ मामलों में गवाह के बयान का सार न्यायाधीश को खुद या बोल कर टाइपिस्ट को लिखाना चाहिए। जब कि हो यह रहा है कि गवाही कैसे हुई य