पाठक मनजीत सिंह ने अपनी समस्या को इस तरह रखा है …….
मेरा विवाह फरवरी 1999 में एक लड़की के साथ हुआ था। हम बहुत प्रसन्नता और आनंद के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे। हम अक्टूबर 2000 में कुल्लू, मनाली और गोआ घूमने गए तब एक दुर्घटना में मैं अपंग हो गया। मेरे निम्न अर्धांग में कोई संवेदना नहीं रह गयी। मेरी यौन क्षमता भी इस के साथ समाप्त हो गई है। दुर्घटना के छह माह के उपरांत मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गई। अब छह वर्ष के उपरांत उस ने मेरे विरुद्ध धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत मुझ से अनुरक्षण प्राप्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन किया है। क्या वह अनुरक्षण प्राप्त की अधिकारी है?
उत्तर …
मनजीत सिंह जी!
यह सही है कि धारा 125 दं.प्र.सं. में सब से पहले यह कहा गया है कि ‘यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अनुरक्षण में असमर्थ रहता है ……।’ इस का अर्थ यह है कि पत्नी या कोई भी अन्य आश्रित उसी स्थिति में यह आवेदन प्रस्तुत कर सकता है जब कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध यह आवेदन प्रस्तुत किया गया है वह पर्याप्त साधनों वाला हो और अपने आश्रित का अनुरक्षण करने में असफल रहा हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी द्वारा यह आवेदन प्रस्तुत किया गया है तो पति पर यह साबित करने का दायित्व होगा कि वह पर्याप्त साधनों वाला नहीं है।
आप के मामले में आप की शारीरिक असमर्थता तो समझ में आती है। इस शारीरिक असमर्थता के कारण आप दाम्पत्य अधिकारों को संपन्न करने में भी असमर्थ हो गए हैं यह भी समझ में आता है। इस कारण से आप की पत्नी का आप से पृथक रहना भी समझ में आता है। लेकिन यह तथ्य आप के प्रश्न में कहीं भी नहीं बताया गया है कि आप के स्वयं के साधन क्या हैं? यदि आप अब भी पर्याप्त साधनों वाले व्यक्ति हैं तो आप की पत्नी को आप से अनुरक्षण प्राप्त करने का पूरा अधिकार है। यदि आप पर्याप्त साधनों वाले व्यक्ति नहीं हैं या नहीं रहे हैं तो इसे आप को न्यायालय के समक्ष दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य से साबित करना होगा। इस तथ्य को साबित करने का भार आप पर है। यदि आप न्यायालय में अपनी साक्ष्य से यह साबित कर देते हैं कि आप पर्याप्त साधनों वाले व्यक्ति नहीं रहे हैं तो आप के विरुद्ध प्रस्तुत किया गया यह आवेदन निरस्त हो सकता है , अन्यथा न्यायालय आप को अपनी पत्नी को अनुरक्षण के लिए आवश्यक धन प्रतिमाह देने के लिए आदेश दे सकता है।