अक्सर ही मैं यह कहता हूँ कि ‘जब भी आप को कभी किसी वकील की आवश्यकता हो तो आप वकील का चुनाव करने में सावधानी बरतें।’ यह ठीक वैसे ही है जैसे आप मकान का निर्माण कराने के लिए एक अनुभवी और प्रतिष्ठित बिल्डर का चुनाव करते हैं। यूँ तो कानून की व्यवसायिक डिग्री हासिल करने के बाद किसी राज्य की बार कौंसिल में अपना पंजीयन कराते ही एक व्यक्ति वकालत करने का अधिकार प्राप्त कर लेता है। लेकिन वकालत के व्यवसाय में पैर जमा पाना इतना आसान नहीं। कानूनन किसी वरिष्ठ वकील के पास ट्रेनिंग जरूरी न होते हुए भी एक नए वकील को जल्दी ही यह पता लग जाता है कि उस के पास के ज्ञान के भरोसे वकालत कर पाना संभव नहीं है, उसे जल्दी ही किसी वरिष्ठ वकील के कार्यालय में स्थान बनाना पड़ता है। कोई भी वरिष्ठ वकील अपने कार्यालय में नए वकील को सहज स्वीकार नहीं करता क्यों कि इस तरह वह अपने ही कार्यालय में अपने ही एक प्रतिस्पर्धी को स्थान दे रहा होता है। लेकिन हर वरिष्ठ वकील को भी जिस के कार्यालय में पर्याप्त काम है, अपनी सहायता के लिए हमेशा ही कुछ सहयोगी वकीलों की जरूरत होती है। यही जरूरत नए वकीलों के वरिष्ठ वकीलों के कार्यालयों में प्रवेश को सुगम बनाती है। नए वकील को किसी भी वरिष्ठ वकील के कार्यालय में पहले छह माह तक न तो कोई काम मिलता है और न ही कोई आर्थिक सहायता। इस काल में वह केवल कार्यालय और अदालत में अपने वरिष्ठ वकील के काम का निरीक्षण कर सीखता है और खुद को इस काबिल बनाता है कि वह वरिष्ठ वकील के काम में कुछ सहायता करे। इस बीच उसे केवल वही काम करने को मिलते हैं जो एक वरिष्ठ वकील का लिपिक (मुंशी) करता है। इस बीच वह अपने वरिष्ठ वकील का अनुसरण करते हुए काम करना सीखता है और उस की पहचान बनने लगती है। छह माह में उसे अदालत के न्यायाधीश, लिपिक, अन्य वकील, उन के मुंशी और वरिष्ठ वकील के मुवक्किल उसे नए वकील के रूप में पहचानने लगते हैं। इस बीच वह जितना काम करने के लायक हो जाता है उतनी ही आर्थिक सहायता उसे वरिष्ठ वकील के माध्यम से प्राप्त होने लगती है जो अक्सर अनिश्चित होती है।
अपना वकील सावधानी से चुनें
उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करते करते किसी भी युवक की उम्र 17-18 वर्ष हो जाती है। उस के बाद तीन वर्ष स्नातक बनने में और तीन वर्ष विधि-स्नातक बनने में कुल 23-24 वर्ष की आयु का होने पर ही कोई व्यक्ति वकालत के व्यवसाय में पैर रखता है। यह वह उम्र है जब वह विवाह कर चुका होता है या करने वाला होता है। उसे अपने भावी जीवन की चिंता सताने लगती है। इस उम्र में आते-आते उस पर यह दबाव बन जाता है कि वह अपने परिवार (पत्नी और बच्चे) को चलाने के लायक आमदनी अवश्य करने लगे। यह दबाव ही एक नए वकील को शीघ्र कमाने लायक बनने को प्रेरित करती है। अगले छह माह के दौरान वह यह पता लगाने का प्रयत्न करता है कि शीघ्र कमाई के साधन क्या हो सकते हैं। नए वकीलों में पाँच प्रतिशत ऐसे व्यक्ति भी होते हैं। जो सुदृढ़ आर्थिक स्थिति आते हैं या जिन के पास कोई अन्य आय का साधन होता है। इन में वे वकील भी सम्मिलित हैं जिन के पिता या परिवार का कोई सदस्य पहले से वकालत के व्यवसाय में होता है। इस श्रेणी के वकीलों पर कमाई का दबाव नहीं होता है। वे आराम से अपना अभ्यास जारी रखते हैं। उन की कमाई धीरे धीरे आरंभ होती है। उन का काम भी अच्छा होता है और वे विश्वसनीय वकील साबित होते हैं।
शेष लोग जिन पर कमाई का दबाव होता है। उन में से अधिकांश शीघ्र कमाई का जुगाड़ करने के चक्कर में छोटे-छोटे काम करने लगते हैं और जल्दी ही वरिष्ठ वकील के कार्यालय से पृथक अपना अस्तित्व कायम कर लेते हैं। लेकिन उन का अभ्यास कमजोर रह जाता है। वे जो भी काम मिलने का अवसर उन्हें मिलता है उसे नहीं छोड़ते, चाहे उस काम को करने में वे स्वयं सक्षम हों या नहीं। वे ऐसे कामों को करने में बहुधा ही त्रुटियाँ करते हैं जो कभी बहुत गंभीर होती हैं और जिन्हें किसी भी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। ऐसे वकील अक्सर मुवक्किल के लिए खतरा-ए-जान सिद्ध होते हैं। इस श्रेणी के वकील भले ही अपने काम में सिद्ध हस्तता हासिल न कर सके हों लेकिन किसी मुवक्किल को यह विश्वास दिलाने की कला सीख लेते हैं कि वे ही उस के काम के लिए सब से उपयुक्त वकील हैं। इस तरह के वकीलों से सावधान रहने की सब से अधिक आवश्यकता है। इन वकीलों के मुवक्किल को जल्दी ही पता लग जाता है कि वह गलत स्थान पर फंस गया है। वह वहाँ से जान छुड़ाने की कोशिश करता है। अक्सर ही उसे अपनी अदा की जा चुकी वकील फीस का मोह त्याग कर अपने मुकदमे को किसी काबिल वकील को देना पड़ता है। किसी भी काबिल वकील के लिए ऐसा मुकदमा लेना आसान नहीं होता। पहली अड़चन वह नियम है जिस के अंतर्गत किसी भी मुकदमे में कोई भी वकील पूर्व में नियुक्त किए गए वकील की अनुमति के बिना अपना वकालत नामा प्रस्तुत नहीं कर सकता जब तक कि न्यायालय स्वयं ही परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस की अनुमति न दे दे। इस कारण से दूसरा वकील नियुक्त करने के पहले किसी भी शर्त पर मुवक्किल को पहले वाले वकील से नए वकील के लिए अनुमति प्राप्त करनी पड़ती है। जो काबिल वकील इस तरह बिगड़े पुराना लेना स्वीकार करता है, वह पहले यह देख लेता है कि जो नुकसान उस के मुवक्किल को हो चुका है उस में से कितना सुधारना संभव है? और वह यह बात अवश्य ही अपने मुवक्किल को बता भी देता है। इस तरह के बिगड़े हुए मुकदमों में काबिल वकील को अतिरिक्त श्रम करना होता है। इसी कारण से वह अपनी शुल्क भी अधिक ही लेता है।
आप समझ ही गए होंगे कि किसी भी काम के लिए किसी वकील का चुनाव करना क्यों आवश्यक है?