समस्या-
सन्नी गुप्ता ने सांबा, जम्मू और कश्मीर से पूछा है-
मेरे पापा ने अपने भाई पर कोर्ट केस किया है अपनी दुकान वापस लेने के लिए। पापा के भाई ने पापा से दुकान 1995 में अपने बेटे के लिए ली थी। लेकिन अब वो खाली नहां करते। कहते हैं कि हम 1979 से दुकान करते हैं और उन्हों ने श्रम विभाग से फार्म ओ बनाया है 1979 से। जब कि वे तब सरकारी कर्मचारी थे। 2005 में रिटायर हुए हैं। हम ने आरटीआई के जरिए उन का रिकार्ड लिया और विजिलेंस में कम्प्लेंट की। लेकिन विजिलेंस वाले कहते हैं कि वे सेवा निवृत्त कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकते। क्या हम उन के इस फ्राड के विरुद्ध कोर्ट में कार्यवाही कर सकते हैं और कोर्ट से कह सकते हैं कि उन की पेंशन बन्द की जाए। क्या ये कार्यवाही उच्च न्यायालय में होगी और क्या ये सिविल पिटीशन होगी।
समाधान-
आप की मूल समस्या दुकान खाली कराना है और आप उलझ रहे हैं अपने चाचा को सजा दिलाने के लिए।
आप ने यह भी नहीं बताया कि दुकान का स्वामित्व किस का है यदि आप के पिताजी दुकान के स्वामी हैं तो आप के चाचा को उन्हों ने दुकान व्यवसाय के लिए दी तो वह एक तरह से लायसेंस पर थी। आप के पिताजी को लायसेंस कैंसल करने का नोटिस दे कर नोटिस की अवधि की समाप्ति पर दुकान के कब्जे का दावा करना चाहिए था। हो सकता है ऐसा ही दावा किया गया हो। पर आपने दावे की तफसील नहीं बताई है।
आपने उन्हें दुकान 1995 में लेना बताया है जब कि वे कह रहे हैं कि यह तो 1979 से उन के पास है। श्रम विभाग से जो लायसेंस बनाया है उस का ध्यान से निरीक्षण करना चाहिए हो सकता है वह 1995 में या उस के बाद पिछली तारीखों से बनवाया गया हो।
आप को किसी स्थानीय अच्छे वकील से राय कर के अपने दीवानी मुकदमे को लड़ना चाहिए। यदि आप यह साबित करने में सफल हो गए कि उन्हों ने दुकान 1995 में बेटे के लिए लायसेंस पर ली थी तो आप अपना मुकदमा जीत जाएंगे। चाचा के श्रम विभाग से प्राप्त लायसेंस को इसी आधार पर फर्जी सिद्ध किया जा सकता है कि उस समय वे सरकारी नौकरी में थे। चाचा के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही अब उन का पुराना विभाग नहीं करेगा। उन्हें पेंशन अपनी सेवाओं के बदले मिलती है वह बन्द होना संभव नहीं है। वैसे भी यदि आप चाचा के विरुद्ध बदले की भावना से कोई कार्यवाही करेंगे तो अपने लक्ष्य से ही भटकेंगे। किसी के भी विरुद्ध कार्यवाही करने के पहले आप को अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। बेहतर यह है कि आप अपने दीवानी मुकदमे की पैरवी ठीक से कराने पर ध्यान दें।