कल सुमित राय की अगली जिज्ञासा है – – –
किसी अपराध से प्रभावित वे व्यक्ति जो भय अथवा तथाकथित झंझट के नाम नाम पर अपराधियों के विरुद्ध मुख नहीं खोलते (अर्थात् स्वयं के प्रति भी मूकदर्शक बने रहते हैं), संविधान में ऐसा संशोधन किस प्रकार कराया जाये कि दूसरों अथवा स्वयं पर हुए अन्याय के प्रति मूकदर्शक बने रहने वाले, सब पता होते हुए भी विरोध न करने वाले व्यक्तियों के साथ भी अपराधियों जैसा बरताव किया जाये?
उत्तर – – –
सुमित जी,
सामान्यतया किसी अपराध की सूचना किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देने वाले व्यक्ति का यह दायित्व होता है कि वह ऐसी सूचना के लिए उचित प्रतिहेतु प्रदर्शित करे। लेकिन उक्त धाराओं के अपराधों की सूचना देने के लिए किसी उचित प्रतिहेतु की आवश्यकता नहीं है।
उक्त अपराधों की जानकारी होने पर भी किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को उन की सूचना न देने के दायित्व को पूरा न करना भारतीय दंड संहिता की धारा 176 व 202 के अंतर्गत दंडनीय अपराध घोषित किया गया है जिस के लिए उस व्यक्ति को छह माह के कारावास या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
इस तरह जिस तरह का उपबंध आप कानून में देखना चाहते हैं वह कुछ गंभीर अपराधों के लिए पहले से मौजूद है। सभी तरह के अपराधों के लिए ऐसा उपबंध बनाया जाना संभव नहीं है। हाँ, यह कहा जा सकता है कि कुछ और अपराधों को धारा 39 दं.प्र.सं. की सूची में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इस के लिए मांग उठाई जा सकती है आप भी विधि आयोग को इस संबंध में अपनी राय और सुझाव प्रेषित कर सकते हैं।