भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री केजी बालाकृष्णन ने महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देशित किया है कि 26 नवंबर को आतंकी हमले में मारे गए लोगों के आश्रितों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाए। यह पहला अवसर है जब उच्चतम न्यायालय ने स्वतस्फूर्त तरीके से इस तरह का निर्देश दिया है। विधि एवं न्याय मंत्रालय को भी विधिक सेवा प्राधिकरण कानून 1987 की धारा 12 को इस तरह संशोधित किये जाने की सलाह दी गई है जिस से उस के अंतर्गत विधिक सहायता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की श्रेणी में वरिष्ट नागरिकों, सशस्त्र सेनाओँ और अर्ध सेनिक बलों के के सदस्यो के आश्रितों को शामिल किया जा सके।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव जीएम अकबर अली ने कहा है कि वे इस के लिए किसी वर्तमान या निवर्तमान न्यायाधीश को मुम्बई के राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण में नियुक्त कर रहे हैं। आतंक से सताये व्यक्तियों को वकीलों के एक पैनल, मनोवैज्ञानिक सलाहकारों और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से भी पुनर्वास में सहायता प्रदान की जाएगी।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की एक बैठक में ये सब निर्णय किए गए हैं। प्राधिकरण के जनसूचना सचिव ने विवरण देते हुए कहा है कि बहुत से रक्षा कर्मियों और अन्य लोग इन आतंकी हमलों में हताहत हुए हैं राष्ट्रीय प्राधिकरण उन सभी लोगों को क्षतिपूर्ति, चिकित्सीय सहायता, मृत्यु प्रमाणपत्र, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, खोये हुए व्यक्ति की पहचान करने, बीमा दावे, कर्मकार क्षतिपूर्ति आदि प्राप्त करने के लिए सभी तरह की सहायता प्रदान करेगा।