समस्या-
राजेश गुप्ता ने गाँव रामपुर, जिला शहडोल, मध्य प्रदेश से पूछा है-
मेरे नाना की दो सन्ताानें थीं, एक लड़का और एक लड़की। मेरे नाना की 9 एकड़ ज़मीन थी जो की वर्तमान में मेरे मामा की (लड़का ) नाती और मामा की लड़की के नाप पर है। मेरे नाना की मृत्यु 1950 के लगभग हो गयी थी और मेरे माँ की मृत्यु 1956 में हुई है। 1925 से 1956 तक खसरा रिकार्ड में मेरी मां का नाम नहीं है, और न ही 1956 के बाद में रिकार्ड में मेरी माँ का नाम है। क्या मुझे मेरे माँ का हक मिल सकता है?
समाधान-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम अस्तित्व में आने के पूर्व 17 जून 1956 के पूर्व तक भारत में परंपरागत हिन्दू विधि प्रचलित थी। जिसमें स्त्रियों को पुरुष उत्तराधिकारियों के जीवित रहते उत्तराधिकार में कोई सम्पत्ति प्राप्त नहीं होती थी। विवाहित स्त्रियों को केवल अपने ससुराल में आजीवन भरण पोषण और परिवार की सम्पत्ति में रहने का अधिकार प्राप्त होता था।
आपके नाना का देहान्त 1950 में हो गया। आपकी माँ उस समय यदि अविवाहित थी तो उन्हें विवाह तक भरण पोषण का अधिकार मिला था जो विवाह के साथ ही समाप्त हो गया। आपकी माँ को उत्तराधिकार में कुछ नहीं मिला। इस कारण उस 9 एकड़ जमीन में उनका कोई अधिकार / हक ही नहीं मिला। उन्हें कोई हिस्सा प्राप्त नहीं हुआ।
आपकी माँ का कभी कोई हक नहीं था इस कारण आपको वह चीज जो कभी नहीं थी आपको नहीं मिल सकती। आपको सन्तोष रखना चाहिए।