सुप्रीम कोर्ट के इस रुख का आम जनता को स्वागत करना चाहिए जिस में उस ने केन्द्र सरकार को कहा है कि वह यह सुनिश्चत करे कि सार्वजनिक जगहों का अतिक्रमण करके पूजा स्थल नहीं बनाए जा सकें। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि अब यदि सार्वजनिक जगहों पर कोई धार्मिक ढांचा बना तो संबंधित अधिकारी को सज़ा सुनाई जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
जस्टिस एम.के. शर्मा और दलवीर भंडारी की बेंच ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल यह सुनिश्चित करने के लिए हलफनामा दाखिल करेंगे कि सड़कों या सार्वजनिक जगहों पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च नहीं बनेगा। सुनवाई के दौरान बेंच मे कहा कि यह तो समझ में आता है कि पहले से मौजूद धार्मिक संस्थानों को तोड़ने से कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है लेकिन केंद्र को अब यह सुनिश्चत करना चाहिए कि सार्वजनिक जगहों पर नए पूजा स्थल ना बन पाएं। कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए कहा कि सार्वजनिक जगहों पर अब यदि एक भी नए धार्मिक संस्थान दिखे तो संबंधित अधिकारी को सजा सुनाई जाएगी। सुब्रह्मण्यम ने इसके जवाब में गोल-मोल तरीके से कहा कि केंद्र सभी राज्यों से विचार विमर्श करके इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने का प्रयास करेगा।
मैं तीस साल से एक ही रास्ते से अदालत जा रहा हूँ। एक दिन क्या देखता हूँ कि तालाब के किनारे जहाँ से नहर निकल रही है वहाँ नहर के किनारे जा रही सड़क के बिलकुल किनारे पर दो साँप मरे पड़े हैं और कुछ लोग उन का दाहसंस्कार करने के लिए चादर फैला कर चंदा कर रहे हैं। वहाँ किसी ने साँप मार दिया था। तभी एक साँप और आ कर मरे हुए साँप को घेर कर बैठ गया। लोगों ने उसे भी मार दिया। दूसरे दिन वहाँ पूजा पाठ चल रहा था। कहा जा रहा था कि यह बाद में मारी गई नागिन थी जो अपने पति नाग पर सती हो गई। एक सप्ताह में ही वहाँ नाग-नागिन का चबूतरा बन गया और बाद में वहाँ आसपास पेड़ लगा दिए गए फिर मंदिर का निर्माण भी हो गया। यह सार्वजनिक स्थल पर विशुद्ध अतिक्रमण था जिसे कुछ लोगों ने जनता के अंधविश्वास का लाभ उठा कर अपनी कमाई का स्थान बना लिया था।
कोई बीस साल पहले नगर प्रशासन ने इस घटना पर कोई ध्यान नहीं दिया और अतिक्रमण होने दिया। आज उसी मार्ग के बाद विशाल नागरिक बस्तियाँ बस गई हैं और वहाँ जाने के लिए नहर किनारे की सड़क एक मात्र मार्ग है जो हाई-वे से इन बस्तियों को जोड़ता है। इस मोड़ पर अक्सर दुर्घटनाएँ घटती हैं और वहाँ यातायात दिन में कई बार जाम हो जाता है। प्रशासन उस सड़क को चौड़ा करना चाहता है जिस से यातायात सुगम हो सके। लेकिन यह नाग-नागिन मंदिर उस में बाधा बना हुआ है। अतिक्रमण 20 से भी अधिक वर्षों का हो चुका है और प्रशासन के पास उसे हटाने का कानूनी तरीका होते हुए भी लोगों की धार्मिक भावनाओं के भड़कने के भय से कुछ नहीं कर पा रहा है। नागरिक जो असुविधा भुगत रहे हैं वे भी मन मसोस कर जाम में फँसे रहने तक ही उस मंदिर को कोस कर रह जाते हैं।