कस्बे की अदालत में कुछ घंटे -2
मुकदमा मेरे पुराने मुवक्किल कन्हैया की बेटी आशा का था। उसने 2003 में बेटी का ब्याह किया था, साथ ही गौना भी कर दिया था। ब्याह में परंपरानुसार दहेज दिया गया था। सब बराती संतुष्ट थे। आशा ससुराल में पहली बार कुल आठ दिन रही थी। छह माह नैहर में रहने के बाद ससुराल गई तो दो माह रह कर वापस लौटी। तीसरी बार ससुराल गई तो करीब पाँच महीने बाद अचानक फोन आया कि बेटी की हालत ठीक नहीं तुरंत पहुँचो। कन्हैया बेटी की ससुराल पहुँचा। समधियाने में उसे बहुत गाली गलौच की और बहुत बेइज्जत किया गया और कहा गया कि तुम्हारी लड़की बदचलन है, इस ने गांव में उन की इज्जत खराब कर रखी है। इसे अपने साथ ही ले जाओ। उन के एक ही लड़का है और इस हिसाब से उस ने दहेज भी कम दिया है, वह एक मोटर सायकिल और पचास हजार रुपए की व्यवस्था कर ले तो उसे लेने आ जाएंगे। उसे और आशा को धकिया कर घर के बाहर कर दिया गया। वह आशा को ले कर गाँव वापस आ गया। बेटी वापस लौटी तो पहने हुए कपड़ों के साथ बिना गहनों के।
नैहर आ कर आशा ने जो कहानी बताई वह कुछ और ही थी। ससुराल में संयुक्त परिवार था जिस में उस का ताऊ ससुर, ससुर, सास, उस का पति और दो ननदें थीं। ताऊ ससुर परिवार की संपत्ति की देखरेख करता और सास घर रहती। उस का ससुर परिवार की भूमि पर खेती करता और पति व ननदें दूसरे के खेतों में भी मजदूरी करने जाते। एक दिन आशा ने अपने ताऊ ससुर को अपनी सास के साथ पति-पत्नी जैसी हालत में देखा। तो उस का मन वितृष्णा से भर उठा। फिर उसे भी खेतों पर काम करने भेजा जाने लगा। वहाँ गाँव के लोगों के साथ घुली मिली तो पता लगा गाँव में यह बात लगभग सब को पता है। दुबारा फिर देखा तो अपने पति को बताया तो उस ने उस के साथ मार पीट कर दी। फिर यह बात शुरू हुई कि उस के पिता ने ब्याह में दहेज कम दिया कम से कम पचास हजार नगद और मोटर सायकिल तो देनी चाहिए थी, आखिर उस का पति परिवार का इकलौता वारिस है। उस के साथ अक्सर मारपीट शुरू हो गई और उस का औचित्य सिद्ध करने के लिए यह कहना और प्रचारित करना शुरु कर दिया कि आशा बदचलन है। आशा तब तक गर्भ धारण कर चुकी थी।
जिस दिन कन्हैया बेटी की ससुराल पहुँचा था उस से एक दिन पहले ससुराल वालों ने ने आशा को एक कमरे में बन्द कर दिया था और बाहर परिवार आशा को छोड़ने तथा उस के पति का दूसरा ब्याह करने की बातें करने लगे। आशा ने इसका बन्द कमरे से ही चिल्ला कर विरोध किया, तो सब लोग एक साथ कमरा खोल कर अन्दर आ गए। ताऊ ससुर उस के बाल पकड़ कर उसे घसीटते हुए बाहर ले आया और उस की ननदों से कहा कि उस के कपड़े उतार कर नंगा कर के बाहर निकाल दो। आशा ने पैरों पड़ कर, इज्जत बचाई और अपने पिता को खबर भेजी।
सब बात पता लगने पर कन्हैया ने जाति पंचायत में मामले को सुलझाने की कोशिश की पंचायत किसी निर्णय पर पहुँची तो आशा के ससुराल वालों ने पंचायत का निर्णय भी मानने से मना कर दिया। आखिर सब से सलाह कर कन्हैया ने बेटी से थाने में रिपोर्ट करा दी। पुलिस ने पचास ग्राम सोने के और डेढ़ किलो चांदी के गहनों के अलावा सारा दहेज बरामद कर लिया और सब के विरुद्ध मुकदमा कायम कर दिया। आशा से परिवार न्यायालय में खर्चा दिलाने को अर्जी पेश करवाई। इस बीच आशा के बेटा हो गया। उस के पति ने तलाक की अर्जी पेश कर दी। कन्हैया ने अदालत में भी सुलह के सब प्रयास किए। वह चाहता था कि आशा के गहने वापस दे दिए जाएँ और नाती को ससुराल वाले रख लें औरतो वह आशा की दूसरी शादी कर दे। लेकिन आशा का ताऊ ससुर कुछ मानने को तैयार नहीं हुआ और परिवार में कोई उस की राय से कोई इधर उधर न हो। परिवार न्यायालय में मामला खिंचता चला गया। कहीं से कोई राहत नहीं मिली। इधर बेटी और उस के बेटे का खर्च भी उस पर आ गया। उस की आर्थिक स
्थिति डांवाडोल रहने लगी। कन्हैया कहने लगा उस की बेटी और नाती के लिए खर्चा तो उस के ससुराल से मिलना ही चाहिए, जब तक कि मामला निपट नहीं जाता।
2005 में स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा कानून पास हुआ तो आशा ने उस के कानून के अंतर्गत अपने और अपने बेटे के लिए खर्चा दिलाने को अर्जी पेश की। अदालत ने कल्याण अधिकारी को जाँच सौंपी। कल्याण अधिकारी ने जाँच रिपोर्ट में बताया कि आशा का कोई कसूर नहीं, उस के साथ ज्यादती हुई है। लेकिन अदालत ने यह मानते हुए उस की अर्जी खारिज कर दी कि घरेलू हिंसा कानून आशा को ससुराल से निकाले जाने के बाद पारित होने के कारण इस के तहत उसे राहत नहीं दी जा सकती। आशा ने अपील की तो जिला अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत अर्जी दी जा सकती है। मामले को फिर से सुन कर फैसला करने के लिए फिर से निचली आदालत भेज दिया। अदालत को मात्र वकीलों की बहस (तर्क) सुन कर फैसला करना था। हम इसी बहस के लिए इस अदालत पहुँचे थे। (जारी)
बहस का विवरण अगली कड़ी में …